केदार घाटी मेँ धूमधाम से मनाया गया प्राचीन लाई मेला, भाद्रपद की 5 गते को मेला मनाने की परंपरा।
केदार घाटी मैं 6 माह सुरम्य मखमली बुग्यालों में प्रवास करने वाले भेड़ पालकों का लाई मेला धूमधाम से मनाया गया।
लाई मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद की पांच गते को मनाने की परम्परा है। लाई मेला सीमान्त गांवों के ऊंचाई वाले बुग्यालों में मनाने के बाद भेड़ पालक और अधिक ऊंचाई वाले इलाकों के लिए रवाना हो जाते हैं तथा नन्दा अष्टमी, दीपावली के बाद बुग्यालो से वापस निचले इलाकों को लौटते हैं। लाई मेले में भेड़ पालकों के परिजन व ग्रामीण बढ़-चढ़ कर भागीदारी करते हैं।
भेड़पालक लाई मेंले को त्योहार के रुप में मनाते है। भेड़ पालकों के दाती त्यौहार व लाई मेला प्रमुखता से मनाया जाता है। लाई मेले में भेडों के ऊन की छटाई की जाती है ।
जबकि दाती त्यौहार रक्षाबंधन के निकट कुल पुरोहित द्वारा निर्धारित तिथि पर मनाया जाता है तथा दाती त्यौहार में भेड बकरियों के सेनापति नियुक्त करने की परम्परा है। लाई मेला पवाली कांठा, टिंगरी, मदमहेश्वर, विसुणीताल, शिला समुन्द्र, कुल वाणी, सहित सीमान्त गाँव त्रियुगीनारायण, तोषी, चौमासी, चिलौण्ड, रासी के ऊपरी हिस्सों में मनाया जाता है।


