सिंचाई विभाग रुद्रप्रयाग के द्वारा बनाई गयी नहर का न हेड न टेल

सिंचाई विभाग रुद्रप्रयाग के द्वारा बनाई गयी नहर का न हेड न टेल,
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सिंचाई विभाग रुद्रप्रयाग के द्वारा बनाई गयी नहर का न हेड न टेल ।

आखिर बजट को ठिगाने लगाने के लिए बनाई जा रही हैं नहरें। ऐसे स्थानों पर सिंचाई विभाग रुद्रप्रयाग के द्वारा नहर बनाई गयीं हैं जहां बंजर खेत हैं।

सिंचाई विभाग रुद्रप्रयाग के द्वारा मयाली गुप्तकाशी मोटरमार्ग पर पटगाड़ गदेरे से शिवालय प्रवेश द्वार तक पूर्व में नहर का निर्माण करवाया गया था जो कि अच्छी गुणवत्ता के चलते जीर्णशीर्ण स्थिति में घास और झाड़ियों के बीच सिंचाई विभाग रुद्रप्रयाग के अधिकारियों से अपने वजूद को बचाने की मांग कर रही है जिसपर विभाग ने नहर की पीड़ा को अपना हित देखकर मरहम लगाने की कोशिस की पर ये मरहम ऐसे जगह लगाया गया जहां दर्द ही नहीं था। यह नहर ऐसे जगह पर बनाई गयी है जिससे इसमें न गदेरे को जोड़ा गया है न खेत को इसका कारण सिंचाई विभाग के साईट इंचार्ज को पूछने पर बताया गया कि हेड की तरफ पिछले वित्त वर्ष में काम हुआ है और हम दुबारा करेंगे तो वित्तीय अनियमितता की बात होगी और इस नहर को नाबार्ड की योजना में आगे बनाया जाएगा जिसके लिए डीपीआर तैयार है। इन महोदय को ये डांगसेरा में जो बंजर जमीन के लिए नहर बनी है के लिए भी जबाब तैयार रखना होगा कि किस कारण ये नहर यहां पर बनाई गयी है ऐसे ही और उदाहरण भी हैं जिनके स्पष्ट उत्तर सिंचाई विभाग को देने होंगे इसकी एक श्रृंखला हिमालय की आवाज़ जारी करेगा।

पटगाड़ गदेरे से शिवालय प्रवेश द्वार तक यदि यह नहर बन जाती तो लगभग 45 हैक्टेयर कृषि भूमि की सिचाई करने के काम आती जो कि अभी नहर न होने के चलते कास्तकार एलडीपीई पाइप या अन्य व्यवस्थाओं से खेती को रोपाई के लिए तैयार करते हैं जबकि कुछ जमीन बिना पानी के बंजर हो गयी है और कुछ सिंचाई वाले खेतों में काश्तकार मण्डुवा बुवाई पिछले 3 वर्षों से कर रहे हैं इस संबंध में कई बार सिचाई विभाग के ऑफिस के मठाधीशों को अवगत कराया गया पर सुने कौन।  जबकि इसी क्षेत्र से 2 किलोमीटर आगे पांजना पैदल पुलिया के नजदीक डांगसेरा तोक में जहां की पूरी जमीन एक दशक से ऊपर समय से बंजर पड़ी हुई में नहर का निर्माण किया गया है।

  गेहूं के खेत सूखे पड़े हैं पर अरबों रूपये खर्च करने के बाद भी लस्तर नदी से बजीरा तक जाने वाली नहर पर पानी नहीं चलाया जा रहा है। इसका कोई कारण भी नहीं है क्योंकि इस नहर पर सिर्फ मरोम्मत ही चलती है जबकि सिंचाई का पानी कितने दिन चला सावन के महीने जब रोपाई का काम पूरा हो गया। 

एक तरफ सरकार का प्रयास है कि पहाड़ी उत्पादों को अधिक प्रोत्साहन दिया जाए जिसके लिए कई योजनाएं और परियोजनाएं चलायी जा रही हैं कृषि विभाग और उद्यान विभाग बीज पर इतना बजट खत्म कर रहा है जब बीज को पानी नहीं मिलेगा तो होगा क्या।  जिला प्रशासन इस खबर पर जरूर संज्ञान लेंगे और इसपर जो कार्यवाही बनती हो वो करेंगे क्योंकि मनमानी के चलते खेतों को बंजर बनाना और दशकों से बंजर पड़ी जमीनों में सिंचाई नहर बनाना क्या सरकारी धन का दुरप्रयोग है या नहीं यह स्पष्ट करना होगा। 

 

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