तल्ला नागपुर महोत्सव को राजकीय मेला बनाने का प्रयास, सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रही धूम।
"औद्योगिक, कृषि एवं पर्यटन" नाम के बावजूद महज़ राजनीतिक और गीत-संगीत का मेला।
रुद्रप्रयाग। पाँच दिवसीय तल्ला नागपुर औद्योगिक, कृषि एवं पर्यटन महोत्सव के दूसरे दिन सांस्कृतिक रंगों की छटा बिखरी, जिसमें स्थानीय कलाकारों और विभिन्न गांवों के महिला मंगल दलों की शानदार प्रस्तुतियों ने समां बांध दिया। दर्शकों ने देर शाम तक इन मनमोहक कार्यक्रमों का भरपूर लुत्फ उठाया।
रविवार को मेले के दूसरे दिन मुख्य अतिथि के रूप में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद महेन्द्र भट्ट ने शिरकत की। अपने संबोधन में उन्होंने संस्कृति के संरक्षण में महिला शक्ति के योगदान को सबसे महत्वपूर्ण बताया और मांगल गीतों को जीवित रखने के लिए सामूहिक प्रयासों पर जोर दिया। इस दौरान, उन्होंने महोत्सव को राजकीय मेला घोषित कराने के लिए मुख्यमंत्री से बातचीत करने का आश्वासन दिया। साथ ही, महोत्सव के सफल आयोजन हेतु उन्होंने एक लाख रुपये देने की घोषणा भी की।
मेले का उद्देश्य: कलाकारों को मंच और समाज को जोड़ना
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद रुद्रप्रयाग नगर पालिका अध्यक्ष संतोष रावत ने ऐसे मेलों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये उभरते कलाकारों को मंच प्रदान करते हैं और इनका मुख्य उद्देश्य समाज को आपस में जोड़ना होता है। कार्यक्रम का संचालन लक्ष्मण बर्त्वाल और जयवीर नेगी ने संयुक्त रूप से किया। इस दौरान महोत्सव संरक्षक नत्था सिंह मेवाल, पूर्व जिला पंचायत सदस्य सुनीता बर्त्वाल, मंडल अध्यक्ष अर्जुन नेगी, प्रधान आजाद खत्री, क्षेत्र पंचायत सदस्य दिनेश नेगी, सहित बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधि, समिति पदाधिकारी, व्यापारी, विभिन्न गांवों की महिलाएँ और ग्रामीण उपस्थित रहे।
"औद्योगिक, कृषि एवं पर्यटन" नाम के बावजूद महज़ राजनीतिक और गीत-संगीत का मेला?
मेले की भव्यता और उत्साह के बावजूद, यह तथ्य विचारणीय है कि इसका नामकरण "औद्योगिक, कृषि एवं पर्यटन महोत्सव" है, लेकिन शुरुआती दो दिनों की रिपोर्ट में उत्कृष्ट किसानों को मंच दिए जाने, किसान संगठनों, अगस्त्यमुनि विकासखण्ड की सहकारिताओं, या विभागीय FPO (किसान उत्पादक संगठन) के सदस्यों की समस्याओं या सुझावों पर कोई चर्चा नहीं हुई है। मंच पर केवल राजनीतिक घोषणाएं और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम ही हावी रहे, जिससे यह प्रश्न उठता है कि क्या यह महोत्सव अपने मूल उद्देश्यों, विशेषकर कृषि और औद्योगिक विकास को पूरा कर रहा है, या फिर यह महज़ एक राजनैतिक एवं गीत संगीत का मेला बनकर रह गया है, जहाँ वास्तविक हितधारकों, यानी किसानों को, उनके मुद्दों के साथ मंच नहीं मिल पाया है।


