जखोली मेले की 'औपचारिकता' और सरकारी दावे

जखोली में आयोजित 'कृषि औद्योगिक एवं पर्यटन विकास मेला,
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जखोली मेले की 'औपचारिकता' और सरकारी दावे।

 योजनाओं की जमीनी हकीकत और अधिकारियों की गैर-जिम्मेदारी।

एक भी किसान को मंच न मिलना या किसानों के लिए बने विभाग के अधिकारियों को मंच न देना आयोजकों की मंशा पर उठते सवाल ।

आयोजक ओर अधिकारियों की बेरुखी से मायूस काश्तकार: जखोली मेला बना औपचारिकता।

रुद्रप्रयाग। जखोली में आयोजित 'कृषि औद्योगिक एवं पर्यटन विकास मेला' एक बार फिर सरकारी दावों और जमीनी हकीकत के बीच की खाई को उजागर करता है। प्रधानमंत्री 'किसान की आय दोगुनी' करने की बात करते हैं, मुख्यमंत्री किसानों को आधुनिक खेती के गुर सिखाने की योजनाएँ बनाते हैं, लेकिन जब योजनाओं को किसानों तक पहुंचाने का वक्त आता है, तो जिले के आला अधिकारी अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ लेते हैं।

मेला जिसका नाम 'कृषि, औद्योगिक एवं पर्यटन' है, वहाँ न खेती-बाड़ी की तकनीक पर बात हुई, न स्वरोजगार के लिए बैंकों से ऋण की व्यवस्था पर और न ही पर्यटन के माध्यम से रोज़गार पर। पांच दिन का भव्य आयोजन, जिसके पीछे सरकार का पैसा और किसानों की उम्मीदें लगी थीं, केवल राजनीतिक मंच और सांस्कृतिक कार्यक्रम की भेंट चढ़ गया।


गीत-संगीत और राजनीति के नाम हुई 'इतिश्री'

मेले का नाम 'कृषि औद्योगिक एवं पर्यटन विकास मेला' है, लेकिन पूरे पाँच दिनों तक यहाँ किसानों को खेती-बाड़ी, उन्नत तकनीक या स्वरोजगार से संबंधित कोई विशेष जानकारी नहीं मिल पाई। मेला केवल राजनीतिक मंच बनकर रह गया, जहाँ आयोजक अपनी वाहवाही में व्यस्त रहे और मंच से केवल गीत-संगीत की ही गूंज सुनाई दी।

विडंबना यह है:

  • मुख्य विभागों की गैर-हाजिरी: कृषि विभाग, उद्यान विभाग और पर्यटन विभाग जैसे प्रमुख विभागों के अधिकारी, जिन पर योजनाओं के प्रचार-प्रसार की सीधी जिम्मेदारी है, पाँच दिवसीय मेले में अनुपस्थित रहे। सरकार जहां किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है, वहीं ये अधिकारी योजनाओं की जानकारी देने के मंच से पूरी तरह नदारद रहे। अर्थात न्याय पंचायत प्रभारी तक उपस्थित नही थे। सिर्फ स्टोल लगाकर कर्तव्य की इतिश्री की गई।

  • किसानों को नहीं मिला मंच: मंच पर किसी भी विभाग के अधिकारियों को योजनाओं के बारे में स्पष्ट जानकारी देने का मौका नहीं दिया गया। साथ ही, विकासखंड के उत्कृष्ट किसानों को भी अपने अनुभव साझा करने के लिए नहीं बुलाया गया।

  • संगठनों की उपेक्षा: NRLM व REAP (अब ग्रामोत्थान) के अंतर्गत गठित सहकारिताओं और संगठनों को भी मेले में प्रतिभाग की सूचना नहीं दी गई, या उनके अनुभव साझा करने के लिए मंच उपलब्ध नहीं कराया गया।

  • चाय उत्पादकों की अनदेखी: जखोली क्षेत्र में बड़े पैमाने पर चायपत्ती का उत्पादन हो रहा है, जिसके काश्तकार मेले में मौजूद थे, लेकिन चाय उत्पादन और उत्पादकों को मेले में कोई स्थान नहीं मिला।

  • सक्रिय संगठनों की अवहेलना: एप्पल मिशन और कीवी मिशन में किसानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे 'पर्वतीय कृषक बागवान उद्यम संगठन' के किसी भी सामान्य सदस्य को भी मंच नहीं मिला।

 सरकारी प्रयासों पर अधिकारियों ने फेरा पानी।

सरकार नई-नई तकनीकों से किसानों को जोड़ने के लिए प्रयासरत है, लेकिन रुद्रप्रयाग के कृषि अधिकारी, उद्यान अधिकारी, और जिला पर्यटन अधिकारी ने इस मेले में आना उचित नहीं समझा। यहां तक कि स्थानीय तहसील पर कार्यरत अधिकारियों ने भी मेले से दूरी बनाए रखी। मेले का मुख्य उद्देश्य ही इन तकनीकी अधिकारियों की उपस्थिति में किसानों को खेती और आजीविका से संबंधित तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराना था। अधिकारियों की इस लापरवाही ने सरकार की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया।

 काश्तकारों और जनप्रतिनिधियों का आक्रोश

जिम्मेदार अधिकारियों की इस बेरुखी से स्थानीय काश्तकार और जनप्रतिनिधि खासे आक्रोशित हैं। काश्तकार हयात सिंह राणा, महावीर सिंह राणा, पूर्व प्रधान शंभू प्रसाद उनियाल, पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य लौंगा देवी पवांर, पूर्व प्रधान बिजेन्द्र प्रसाद थपलियाल और सामाजिक कार्यकर्ता रमेश सिंह पवांर कुन्याली सहित अनेक लोगों ने स्पष्ट शब्दों में कहा:

"जब इन अधिकारियों को मेले में आकर काश्तकारों को खेती-बाड़ी से संबंधित जानकारियां देनी ही नहीं हैं, तो सरकार को मेले के नाम के आगे से 'कृषि औद्योगिक एवं पर्यटन' का नाम हटा देना चाहिए।"

उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि उन्हें संदेह है कि ये अधिकारी जिले में हैं भी या नहीं। लोगों ने जखोली तहसील पर कार्यरत अधिकारियों के भी मेले में न पहुंचने को जखोली ब्लॉक का दुर्भाग्य करार दिया। किसान अधिकारियों का इंतजार करते रहे, पर कोई भी अधिकारी उनकी सुध लेने नहीं पहुंचा।

पर्वतीय कृषक बागवान उद्यम संगठन के जिलाध्यक्ष सतीश भट्ट का कहना है कि "यदि योजनाओं की जानकारी नहीं देनी, सक्रिय संगठनों और उत्कृष्ट किसानों को मंच नहीं देना, और स्थानीय समस्याओं  को उठाना नहीं है, जिसमें कृषि और उद्यान विभाग स्वयं के माध्यम से बीज खरीद कर किसानों को दे रहे जबकि किसान खुद अपना कृषि यंत्र या बीज लेकर विभाग को बिल जमा कर सकता है इसका शासनादेश  कृषि सचिव उत्तराखंड  शासन के पत्रांक 535/X11-2/2021-5(28/2014 दिनांक17 मई 2021से राज्य के कृषकों को देय अनुदान आधारित योजनाओं को डीबीटी द्वारा क्रियान्वयन के आदेश निर्गत किए गये थे जिसका अनुपालन नही हो रहा है।  यह समस्या किसान मेले के माध्यम से जनप्रतिनिधियों को बताते पर आयोजकों की मंशा क्या थी यह समझ नही आया ऐसे में इस मेले को 'कृषि औद्योगिक एवं पर्यटन' का नाम क्यों दिया जा रहा है? इसे केवल 'सांस्कृतिक एवं राजनीतिक समागम' क्यों न कहा जाए?"

"जखोली मेले की यह 'औपचारिकता' बताती है कि ज़िले के आला अधिकारी कितने उदासीन हैं। यह सरकार की नेक मंशा पर सवाल नहीं खड़ा करता, बल्कि उन अधिकारियों की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगाता है, जो अपनी लापरवाही से सरकारी प्रयासों पर पानी फेर रहे हैं।"

"आयोजन से पहले आयोजकों को ध्यान में रखना होगा कि कृषि, औद्योगिक एवम पर्यटन मेले में किसानों को ही सम्मिलित किया जाए बाकी लोक संस्कृति के कार्यक्रम भी अच्छे हैं जिन्हें प्रोत्साहित किया जाना अच्छा है।

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