उद्गम से संगम तक अध्ययन पदयात्रा का आगाज।
माउंट वैली डेवलपमेंट एसोसिएशन और ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय के संयुक्त प्रयास से भिलंगना नदी के उद्गम क्षेत्र से बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों को समझने के उद्देश्य से छह दिवसीय “स्रोत से संगम अध्ययन पदयात्रा” की शुरुआत गंगी गाँव से हुई। इस यात्रा का उद्देश्य गंगा के उद्गम से संगम तक पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अध्ययन करना है।
गंगी गाँव में चौपाल और संवाद
13 सितंबर 2025 को पदयात्रा के प्रथम दिन गंगी गाँव में ग्रामीणों के साथ चौपाल का आयोजन किया गया। इसमें स्थानीय किसानों और पशुपालकों ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि बदलते मौसम और जलवायु परिवर्तन ने पारंपरिक खेती को प्रभावित किया है।
• चौमासे की फसलें अब पहले जैसी पैदावार नहीं दे रही हैं।
• कीटों का प्रकोप बढ़ा है, जिससे खेती और पशुपालन पर असर पड़ा है।
• गांव की संस्कृति, खानपान और जीवनशैली में भी बदलाव देखने को मिल रहा है।
विशेषज्ञों के विचार
ग्राफिक एरा शैक्षणिक संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. वी.पी. उनियाल और माउंट वैली डेवलपमेंट एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक नवप्रभात ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि इस पदयात्रा का मुख्य उद्देश्य लोगों को नदियों, जंगलों और पर्वतों के संरक्षण के लिए जागरूक करना है। उन्होंने कहा-
“नदी का उद्गम स्थल हो या संगम क्षेत्र, हर जगह सामूहिक भागीदारी के माध्यम से स्वच्छता और संरक्षण बेहद जरूरी है।”
स्थानीय नेतृत्व का समर्थन
ग्राम प्रधान गंगी, श्रीमती अंगूरा देवी, और ग्राम प्रधान चक्कर गाँव, श्री शिव सिंह राणा, ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि यह यात्रा न केवल जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों पर गंभीर अध्ययन का अवसर देगी, बल्कि युवाओं में पर्यावरण संरक्षण की चेतना भी जगाएगी।
प्रमुख प्रतिभागी और संस्थान
इस पदयात्रा में विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक संस्थानों से लगभग 30 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। इनमें शामिल रहे:
• डॉ. वी.पी. उनियाल, अमर डबराल – ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय
• नवप्रभात – माउंट वैली डेवलपमेंट एसोसिएशन
• विजय सिंह नेगी – डायरेक्टर , आईआरडी फाउंडेशन।
• आंचल, वर्तिका – वेटलैंड अथॉरिटी ऑफ इंडिया।
• हिमालय की आवाज़ डिजीटल न्यूज पोर्टल।
• चिन्मय शाह – इनहेर (Inhere)
• विपिन झरडारी – बीज बचाओ आंदोलन।
• रवि गुसाईं – हेनवालवाणी कम्युनिटी रेडियो।
• मीना कैंतुरा, वैषाली, अदिति, रिंकिता।
• आनंद राज, सौरभ वर्मा, विकास, नवल, कुंवर, धीरेंद्र, उमेद।
व्यापक भागीदारी
इस पदयात्रा में देशभर के विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक संस्थानों से लगभग 30 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। आने वाले दिनों में यह यात्रा अलग-अलग गाँवों और क्षेत्रों से गुजरते हुए लोगों के अनुभव और पर्यावरणीय चुनौतियों को दस्तावेज़ी रूप में संकलित करेगी। इस यात्रा के अनुभवों को भविष्य में शोध व विकास कार्यों की रूप रेखा को तैयार करने में मील का पत्थर साबित होगा। युवाओं की इस अभिनव पहल को राज्य एवं देश के विकास हेतु प्रयास समझा जाना चाहिए जिसे आम आदमी समझता तो है कि पर्यावरणीय समस्या हो या मानवजनित समस्या इनका क्या प्रतिकूल प्रभाव जल, जंगल, जमीन, जन और जानवर पर पड़ता है। देखा गया है कि पारम्परिक अनुभव व ज्ञान जो मूल निवासियों द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप में संजोया गया है वो वर्तमान परिस्थितियों में लुप्तप्राय हो गया है। जिसकी वजह से नीतियों, जो उस क्षेत्र के विकास के लिए बन रही हैं उनमें स्थानीय परम्पराओं या रीति व नीतियों का समावेशन न होने के चलते विकासात्मक कार्यों का परिमाण सामने नहीं आ रहा है। स्थानीय समस्याओं का विकेन्द्रीकरण जब तक नहीं होगा तबतक उस क्षेत्र विशेष के लिए तैयार योजनाओं का परिणाम आशानुरूप हो ही नहीं सकता है।




