क्रांति ही रह गयी उत्तराखण्ड तो कबका निकल गया था, दल से निकल रहे युवा।
सपने थे आसमान छूने के पर दो कदम चलने में ही सांसे फूल गयी।
कुर्सी के लिए सामंजस्य बिठाने के चक्कर मे उत्तराखण्ड के वर्तमान और भविष्य से खिलवाड़ करने वालों ने सबक नही लिया।
उत्तराखण्ड क्रांति दल जिसका नाम ही उत्तरप्रदेश से विलग एक पहाड़ी राज्य के सपने देखने वाले महान क्रांतिकारियों के द्वारा रखा गया था और कितने शहीद उत्तराखंड राज्य निर्माण की लड़ाई ने शहीद हुए उनके सपने सच कितने हुए यह गौरतलब है कि जिस राज्य की लड़ाई ओर राजधानी को गैरसैण के लिए लड़ाई लड़ी गयी थी राज्य तो बन गया पर राजधानी दलों के दलदल में फँसकर रह गयी।
अब बात उत्तराखंड क्रांतिदल की है तो इस दल की कुर्सी तो छिन गयी थी कारण था जनता में स्वीकार्यता न होना। आखिर कुर्सी क्यो छीनी जबाब स्पष्ट है कि कुर्सी के लिए सामंजस्य बिठाने के चक्कर मे उत्तराखण्ड के वर्तमान और भविष्य से खिलवाड़ करने वालों ने सबक नही लिया।
अपने चरम पर पहुंच चुकी उत्तराखंड क्रांति दल का एक समय था जब छोटे बड़े सब उत्तराखंड क्रांतिदल को चाहते थे। चुनाव हुए जीतकर विधानसभा गए और वही से उत्तराखंड क्रांतिदल का पतन शुरू हुआ और आज स्थिति क्या है आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है।
इस विधानसभा चुनाव की सुगबुहाहट शुरू हुई तो कुछ अच्छे लोग क्रांति दल में सम्मिलित होकर जनता के बीच गए उनकी स्वीकार्यता बढ़ी जो मठाधीशों को नागवार गुजरी ओर फिर से पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफों की झड़ी लगनि शुरू हुई जो अनवरत जारी है। एक दिन ऐसे भी आएगा जब उत्तराखंड क्रांति दल के संगठन में घोषित पदों के लिए भी कोई नही मिलेगा।