रामरतन पवांर/गढ़वाल ब्यूरो।
रूद्रप्रयाग जैविक जिला होते हुए भी उद्यान व कृषि विभाग मे नही आ रही जैविक खाद, रासायनिक खाद का खुले आम हो रहा है प्रयोग। - (हयात सिह राणा) राज्य आदोंलनकारी।
काश्तकारों की चिंता न अधिकारियों को और नाही सरकार को।
जखोली - उत्तराखंड राज्य बने हुये आज 23 साल हो चुके है लेकिन अभी तक इस प्रदेश ने केवल मुख्यमंत्रियों की फौज तैयार की है।
वर्तमान समय मे राज्य सरकार उद्यानीकरण की बात कर रही और कीवी,सेब, नाशपाती जैसे अनेक फलदार पेड़ो की बात पहाड़ों मे लगाने की बात कर रही है जो केवल देहरादून तक ही सीमित है।
आज रूद्रप्रयाग जिले का ये हाल है कि यहाँ पर सहकारिता के नाम पर कई बहुउद्देश्यीय सहकारी समितियां कार्यरत है लेकिन किसी भी समिति के पास कोई ब्यवसाय नही है अगर थोड़ा बहुत हैं भी तो फिर वे समितिया संसाधन विहीन है। पहले समितियों के पास काश्तकारों के लिए खाद वितरण का साधन था जिससे कि काश्तकारों को समय समय पर सहकारी समितियों द्वारा खेतो मे डालने के लिए खाद दी जाती थी लेकिन आज आलम यह है कि कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा सहकारी समितियों से खाद का व्यवसाय भी बंद कर दिया जिस कारण से आज रुद्रप्रयाग जिले के काश्तकारों के सामने अपने खेतो मे डालने के लिए खाद का संकट पैदा हो गया है।
ज्ञात हो कि वर्ष 2015 तत्कालीन सरकार मे कैबिनेट मंत्री रहे हरक सिह रावत द्वारा रूद्रप्रयाग जिले को जैविक जिला घोषित कर दिया गया और रूद्रप्रयाग गुलाबराय मे जैविक उत्पाद बिपणन केन्द्र भी खोल दिया गया।
शूरुआती एक-दो सालो तक उधान विभाग मे उधान विभाग/कृषि विभाग मे कलस्टरों मे चयनित काश्तकारों के लिए जैविक खाद जरूर आयी लेकिन उसके बाद सरकार ने किसानों को जैविक खाद देनी बंद कर दी जिस कारण से काश्तकार आज परेशानी झेलने के लिए मजबूर है। वही रूद्रप्रयाग जिले के अन्तर्गत एक संस्था जो कि गांवो मे जैविक खाद उत्पाद करने के लिये टेट्रा पिट लगवाने का काम कर रही थी उस संस्था द्वारा केवल इन पिटो को लगवाने के नाम पर सरकारी धन का दुरुपयोग किया है दो दिन भी उन पिटो का प्रयोग काश्तकारों के द्वारा नही किया गया है तो फिर यही ही नही लाखो रूपये की लागत से मनरेगा, उधान विभाग, कृषि विभाग द्वारा भी गोबर पिट, ब्रह्मी कम्पोस्ट बनवाये गये लेकिन अगर आज जाँच की जाय तो गाँवो मे एक भी गोबर पिट नजर नही आयेंगे।
प्रधानमंत्री किसान योजना के अन्तर्गत भी काश्तकारों को उधान विभाग द्वारा जैविक खाद बनाने के लिए कुछ आवश्यक दवाईयां और प्लास्टिक के ड्राम भी दिये गये थे। जो कि लोगो ने उन ड्रमो को घरो मे निजी सामन रखने के प्रयोग मे रखें गये।
वरिष्ठ उतराखंड आन्दोलनकारी हयात सिह राणा, सुरेन्द्र प्रसाद सकलानी ने कहा कि जब जैविक जिला बनने के बाद भी जैविक खाद नही आनी थी तो फिर साधन सहकारी समितियों से यूरिया, एनपीके खाद वितरण का कार्य क्यो छीना। उन्होंने कहा कि रासायनिक खाद आज भी बहार से लाकर रूद्रप्रयाग जिले के दर्जनो गाँवो मे दुकानदारो के द्वारा बेची जा रही है क्योंकि काश्तकारों के पास अब कोई और विकल्प नही है कि कि उनको जैविक खाद मिले।


