भगवान श्री केदारनाथ मन्दिर के गर्भगृह को सोने से मढने का विरोध।
विश्व प्रसिद् भगवान श्री केदारनाथ जी का मन्दिर श्रद्धालुओं के लिए सदियों से अटूट आस्था का केन्द्र रहा है। इस भौतिकवादी युग में भगवान के मन्दिरों मेें भी वीआईपी कल्चर और वैभव प्रर्दशन से कहीं न कहीं आस्था के साथ मजाक होता है जिसका आंकलन करना कोई चाहता नहीं है और जो चाहता है उसके पास कोई शब्द नहीं होते क्योंकि आस्था को शब्दों से व्यक्त नहीं किया जा सकता है यह भाव में होती है जिसके लिए सभी शब्द छोटे पड़ जातें है।
आजकल भगवान श्री केदारनाथ के गर्भगृह में लगी चॉंदी की परतों को हटानें का कार्य चल रहा है उनके स्थान पर सोने की परतें लगाई जायेंगी इसका विरोध वहां के तीर्थ पुरोहित समाज के लोग कर रहें हैं, उनका कहना है कि पौराणिक मन्दिर के पत्थरों के ड्रिल मशीन के माध्यम से छेद किया जा रहा है जो कि अनुचित है और भगवान श्री केदारनाथ जी के गर्भगृह मे स्थित चार खम्भों को सोने की चादर से न मढा जाए ये खम्भें सामान्य लोंगो के लिए खम्भें है पर उनपर बने निशान को न ढका जाए।
मन्दिर के गर्भगृह में लगी चॉंदी की परतों को हटाकर अखण्डज्योति के स्थान पर सफेद धातु के गर्म होने से प्लाई बोर्ड की लकड़ी जल चुकी है जोकि आागे भविष्य में भी किसी अनहोनी का कारण बन सकती है। मन्दिर के स्वरूप को प्राकृतिक ही रहने दिया जाए जिससे कि मन्दिर अपनी पहचान और पौराणिकत महत्व को अपने दर्शन करने आये श्रद्धालुओं को प्रर्दशित कर सके और श्रद्धालु भी मन्दिर की प्राचीनता का अनुभव कर सकें।
भगवान आशुतोष को यदि सोना प्रिया होता तो रावण को सोने की लंका क्यों देते और रावण भगवान शंकर का परम भक्त था उसने अपनी सोने की लंका को भगवान शिव को सर्मपित क्यों नहीं किया। हम आज वीआईपी बनकर मन्दिरों के दर्शन के लिए जा रहें हैं क्योंकि कुछ लोंगों की मानसिकता वीआईपी हो गई है जगत के पालनकर्ता के सम्मुख वीआईपी बनकर अपना वैभव प्रर्दशित करना कितना उचित है।
तीर्थ पुरोहितों समाज से विरोध करने वाले सदस्यों ने कहा है कि मन्दिर गर्भगृह के अन्दर सोने की परतें लगाने का कार्य नहीं रोका गया तो हम लोग आन्दोलन के साथ आमरण अनशन पर बैठेंगे।