आंदोलनरत नर्सिंग अभ्यर्थी पर पुलिस का थप्पड़

उत्तराखंड में आंदोलनरत नर्सिंग अभ्यर्थी पर पुलिस का थप्पड़,
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शर्मनाक घटना: उत्तराखंड में आंदोलनरत नर्सिंग अभ्यर्थी पर पुलिस का थप्पड़, व्यवस्था पर उठे गंभीर सवाल।

आखिर नौकरी और रोजगार की मांग करना कब से अपराध बन गया है?

 पेपरलीक,अनियमितताओं के चलते निराशा से जूझ रहे अभ्यर्थियों पर इस तरह बल प्रयोग करना व्यवस्था और कानून-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।

उत्तराखंड की राजधानी में अपनी लंबे समय से लंबित नर्सिंग भर्ती की मांग को लेकर शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे युवाओं और युवतियों के साथ पुलिस के आक्रामक व्यवहार ने पूरे प्रदेश को झकझोर कर रख दिया है। एक अत्यंत ही शर्मनाक घटना में, आंदोलनरत एक महिला नर्सिंग अभ्यर्थी को पुलिस कांस्टेबल द्वारा थप्पड़ मारे जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद, यह मामला प्रदेशभर में तीव्र गुस्से और आक्रोश का कारण बन गया है।

प्रदर्शनकारी अभ्यर्थियों का स्पष्ट आरोप है कि वे केवल अपनी न्यायोचित मांगों को सरकार के सामने रख रहे थे, लेकिन पुलिस ने उनके साथ न केवल धक्का-मुक्की और जोर-जबर्दस्ती की, बल्कि शारीरिक बल का भी प्रयोग किया, जिसकी पराकाष्ठा थप्पड़ मारे जाने की इस घिनौनी घटना में दिखाई दी। इस घटना ने एक बार फिर यह तीखा सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर नौकरी और रोजगार की मांग करना कब से अपराध बन गया है? युवा पहले से ही भर्ती परीक्षाओं में लगातार देरी, पेपर लीक और घोर अनियमितताओं के चलते निराशा से जूझ रहे हैं, और ऐसे में जब वे अपनी आवाज उठाने के लिए सड़क पर उतरते हैं, तो उन पर लाठीचार्ज या थप्पड़ जैसी हिंसक कार्रवाई होना सीधे तौर पर राज्य की व्यवस्था और कानून-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।

युवाओं ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए पुलिस पर बार-बार अत्यधिक बल प्रयोग करने का आरोप लगाया है, और यह भी इंगित किया है कि यह वही पुलिस बल है जो हाल के महीनों में अपने गलत आचरण को लेकर कई बार सुर्खियों में रहा है। प्रदर्शनकारियों ने सीधे तौर पर यह सवाल उठाया है कि आखिर किसके इशारे पर इन बेरोज़गार युवाओं और युवतियों पर हाथ उठाया जा रहा है? क्या सरकार का उद्देश्य युवाओं की आवाज़ को सुनने के बजाय उसे बलपूर्वक दबाने की है?

इस घटना पर राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका साफ कहना है कि यदि राज्य सरकार युवाओं को समय पर भर्ती नहीं दे पा रही है, तो कम से कम उनकी गरिमा और सम्मान की रक्षा करना तो सुनिश्चित करे। उनका तर्क है कि नौकरी की मांग करना कोई अपराध नहीं, बल्कि यह उनका संवैधानिक अधिकार है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाएं न केवल सरकार की छवि को धूमिल करती हैं, बल्कि पुलिस की विश्वसनीयता पर भी गहरा आघात करती हैं। युवाओं की आवाज को दबाने से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि इसके परिणामस्वरूप असंतोष और गहरा सकता है। इस गंभीर मामले में अभ्यर्थी दोषी पुलिसकर्मी पर कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, वहीं अधिकारी स्तर पर भी अब जांच की मांग जोर पकड़ रही है।

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