व्यवस्था की क्रूरता: जंगली जानवरों के आतंक के बीच दिव्यांग परिवार को अंधेरे में धकेला

किस्मत ओर व्यवस्था की मार से जान के पड़े लाले,
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हर घर रोशन' के दावों के बीच दिव्यांग परिवार के घर पसरा अंधेरा: क्या यही है व्यवस्था का असली चेहरा?

नियति की मार और संघर्ष की कहानी, विभाग की संवेदनहीनता: अंधेरे में भविष्य।

रुद्रप्रयाग (जखोली): प्रदेश में एक ओर जहाँ सरकार 'हर घर रोशन' करने के दावे कर रही है और जंगली जानवरों के आतंक से निपटने के लिए गांवों में पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था करने की बात कही जा रही है, वहीं दूसरी ओर रुद्रप्रयाग जनपद के जखोली विकासखंड से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जो विभाग की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। यहाँ त्युंखर गाँव में एक दिव्यांग दंपति के घर की बिजली काटकर उन्हें खूंखार जंगली जानवरों के साये में जीने को मजबूर कर दिया गया है।

नियति की मार और संघर्ष की कहानी

त्युंखर गाँव के निवासी बलवीर शाह और उनकी पत्नी, दोनों ही दिव्यांग हैं। शिक्षित (ग्रेजुएट) होने के बावजूद बलवीर शाह ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने उद्योग विभाग से ऋण लेकर बकरी पालन का स्वरोजगार शुरू किया था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। बकरियां चराते समय वे पहाड़ से गिरकर गंभीर रूप से चोटिल हो गए। इलाज के लिए बकरियां बेचनी पड़ीं और अब उनकी दिव्यांग पेंशन का बड़ा हिस्सा बैंक का कर्ज चुकाने में चला जाता है। आज वे लोहारगिरी का कार्य कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। उनकी एक बेटी राजीव गांधी नवोदय विद्यालय में और दो बच्चे गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ रहे हैं।

बलवीर शाह का कहना है कि उन्होंने कई बार विभाग से विद्युत कनेक्शन की गुहार लगाई, लेकिन जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो उन्होंने पास में ही स्थित अपने भाई के मकान (जो नौकरी के कारण बाहर रहते हैं) से बिजली की तार जोड़कर घर को रोशन किया था। लेकिन पांच दिन पूर्व विद्युत विभाग के लाइनमैन ने उस कनेक्शन को भी काट दिया। वर्तमान में पूरा पहाड़ जंगली जानवरों के आतंक से थर्रा रहा है। बलवीर का घर गांव के किनारे सुनसान जगह पर है, जहाँ अंधेरा होने के कारण परिवार और बच्चों की जान पर हर वक्त खतरा मंडरा रहा है।

सुलगते सवाल: कौन होगा जिम्मेदार?

जंगली जानवरों के डर से जहाँ ग्रामीण शाम ढलते ही घरों में दुबक रहे हैं, वहीं इस दिव्यांग परिवार के पास रोशनी का कोई जरिया नहीं बचा है। बलवीर शाह का दर्द छलकता है कि, "मेरी अपनी तो जो होगी सो होगी, लेकिन इन मासूम बच्चों की सुरक्षा का क्या? अगर अंधेरे का फायदा उठाकर कोई जंगली जानवर अनहोनी कर दे, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?"

यह मामला न केवल विद्युत विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि उस व्यवस्था को भी कटघरे में खड़ा करता है जो एक लाचार और दिव्यांग परिवार को मूलभूत सुविधा देने के बजाय उन्हें और अधिक संकट में डाल रही है। क्या प्रशासन इस ओर ध्यान देगा या किसी बड़ी घटना का इंतजार किया जा रहा है?


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