उत्तराखंड में बीज माफिया का जाल

उत्तराखंड के उद्यान एवं कृषि विभाग की कृषक कल्याण योजनाओं में बीज माफिया,
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डॉ0 राजेंद्र प्रसाद कुकसाल 

कृषक कल्याण योजनाओं पर मंडराता संकट: उद्यान विभाग पर बीज माफियाओं से मिलीभगत के गंभीर आरोप

उत्तराखंड के उद्यान एवं कृषि विभाग की कृषक कल्याण योजनाओं में बीज माफिया और अधिकारियों की कथित मिलीभगत से किसानों के हितों पर कुठाराघात 

उत्तराखंड के किसानों के लिए सरकारी कल्याणकारी योजनाएँ ही अब कथित तौर पर बीज माफियाओं और उद्यान विभाग के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत का शिकार हो रही हैं। लहसुन, मटर और अदरक बीज वितरण में अनियमितताओं, घटिया गुणवत्ता और बाजार से अधिक कीमतों पर खरीद-फरोख्त की शिकायतें सामने आई हैं। यह स्थिति न केवल किसानों को आर्थिक नुकसान पहुँचा रही है, बल्कि उन्हें खेती-किसानी से विमुख होने पर मजबूर कर रही है, जो कि पहाड़ी राज्य के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।


 निम्न गुणवत्ता, ऊँचे दाम: लहसुन बीज वितरण की विसंगतियाँ

चालू वित्तीय वर्ष 2025-26 में, मसाला क्षेत्र फल विस्तार योजना, परम्परागत कृषि विकास योजना और जिला योजना के तहत उद्यान विभाग द्वारा आपूर्ति किए गए लहसुन बीज की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं।

  • निम्न गुणवत्ता: किसानों का आरोप है कि लहसुन बीज के नाम पर मंडियों से क्रय किया गया निम्न स्तर का लहसुन वितरित किया गया है।

  • बाजार से महँगा: किसानों की शिकायत है कि यह बीज बाजार भाव से काफी महँगा है।

    • जनपद रुद्रप्रयाग के कृषक एस एस रौथाण के अनुसार, उद्यान विभाग ने लहसुन बीज ₹170 प्रति किलो बेचा, जबकि बाजार में इससे अच्छा बीज ₹95 प्रति किलो उपलब्ध है।

    • जनपद पौड़ी पांवों के कृषक रवीन्द्र रावत के अनुसार, पाबो में उद्यान विभाग ₹175 प्रति किलो लहसुन दे रहा है, जबकि खुदरा बाजार में यह ₹80 प्रति किलो पर मिल रहा है।

    • विभाग द्वारा किसानों को 50% अनुदान पर ₹170 प्रति किलो की दर से उपलब्ध कराने का अर्थ है कि विभाग की खरीद दर ₹340 रुपए प्रति किलोग्राम रही होगी, जो बाजार दरों से बहुत अधिक है।

  • विलंब से वितरण और केवल कागजी कार्रवाई: लहसुन बोने का समय निकल जाने के बाद बीज आ रहा है। कुछ जिलों में तो फर्म से केवल लहसुन के बिल लिए जाने और किसानों के नाम पर बिना उद्यान कार्ड में अंकित किए वितरित होना दिखाया जा रहा है, जो कि सीधे तौर पर गंभीर जांच का विषय है।

  • पुरानी फर्म को लाभ: जानकारी के अनुसार, जिस फर्म ने विगत वर्ष 2024-25 में लहसुन बीज आपूर्ति की थी, उसी फर्म की दरों को इस वित्तीय वर्ष 2025-26 के अक्टूबर माह में बढ़ा दिया गया है। आरोप है कि विगत वर्ष बाजार में लहसुन महँगा होने का फायदा उठाकर, अधिकारियों की मिलीभगत से ये महँगी दरें इस वर्ष भी लागू कर दी गई हैं।

यह अनियमितता मटर बीज (2025-26) और विगत वर्ष के अदरक बीज वितरण में भी देखी गई है, जहाँ पुरानी महँगी दरों को लागू किया गया है।


 शासनादेशों और गाइडलाइन का खुला उल्लंघन

उत्तराखंड में योजनाओं के क्रियान्वयन में केंद्र और राज्य सरकार के महत्वपूर्ण दिशा-निर्देशों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है।

1. डीबीटी (DBT) योजना का अनुपालन नहीं

माननीय प्रधानमंत्री की किसानों के हित में लागू डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) योजना का उत्तराखंड सरकार में अक्षरशः अनुपालन नहीं हो रहा है।

  • शासनादेश: उत्तराखंड शासन के पत्रांक 535/X11-2/2021-5(28)/2014 दिनांक 17 मई 2021 (संलग्न दस्तावेज़ में) द्वारा राज्य के कृषकों को देय अनुदान आधारित योजनाओं को DBT द्वारा क्रियान्वयन के आदेश निर्गत किए गए थे।

  • उल्लंघन: इस शासनादेश का अक्षरशः अनुपालन नहीं किया जा रहा है, जिससे पारदर्शिता प्रभावित हो रही है और बिचौलियों को लाभ मिल रहा है।

2. बीज खरीद के नियमों की अनदेखी

भारत सरकार की गाइडलाइन (संलग्न दस्तावेज़, बिंदु III) और उत्तराखंड सरकार के शासनादेशों के अनुसार:


"SHM make advance arrangement for procurement of planting material from accredited nurseries/certified planting material/certified seeds for ensuring season. Sourcing of planting material/seeds from ICAR institutes, SAUs, KVKs and Government Department is to be given priority over other sources."

  • निर्देश: योजनाओं में क्रय किए जाने वाले बीज, फल पौध आदि कृषि निवेश भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), कृषि शोध संस्थान, कृषि विश्वविद्यालय (SAUs) से क्रय कर कृषकों को उपलब्ध कराने के निर्देश हैं, ताकि कृषक स्वयं बीज उत्पादन कर आत्मनिर्भर बन सकें।

  • वास्तविकता: इन शासनादेशों का अनुपालन नहीं किया जाता और अधिकतर निम्न स्तर के निवेश टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से क्रय किए जाते हैं, जिससे किसानों को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य अधूरा रह जाता है।

    3. प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी DBT योजना का अनुपालन नहीं:


    • उत्तराखंड शासन के पत्रांक 535/X11-2/2021-5(28)/2014 दिनांक 17 मई 2021  से राज्य के कृषकों को देय अनुदान आधारित योजनाओं को डीबीटी (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) द्वारा क्रियान्वयन के आदेश निर्गत किए गए थे।

    • इस शासनादेश में पड़ोसी राज्यों (उत्तरप्रदेश और हिमाचल) के शासनादेशों का उल्लेख करते हुए उत्तराखंड में भी उसी के अनुरूप डीबीटी लागू करने को कहा गया था।

    • शिकायतकर्ता का दावा है कि इस शासनादेश का अक्षरशः अनुपालन नहीं किया जा रहा है, जिससे सब्सिडी का वास्तविक लाभ सीधे किसानों तक नहीं पहुँच पा रहा और यह बिचौलियों के लिए भ्रष्टाचार का रास्ता खोल रहा है।


 पहाड़ का किसान खेती से विमुख

उद्यान विभाग के इस तरह के रवैये से उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में किसानों के प्रति उपेक्षा साफ झलकती है। खेती-किसानी पर निर्भर रहने वाले गरीब और सीमांत किसानों को जब योजनाओं के नाम पर घटिया और महंगा बीज मिलता है, तो उनकी आय नहीं बढ़ती और वे निराश हो जाते हैं। इससे:

  • खेती-किसानी से विमुखता: किसान पारंपरिक खेती को छोड़कर मजदूरी या अन्य छोटे कामों की तलाश में पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं।

  • आजीविका पर संकट: निम्न गुणवत्ता वाले बीज से फसल उत्पादन कम होता है, जिससे उनकी आजीविका और खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।

उत्तराखंड में पहले भी उद्यान विभाग में बड़े घोटालों (उद्यान घोटाला, जिसमें सीबीआई जांच चल रही है) की खबरें सामने आती रही हैं, और बीज वितरण में सामने आ रही ये अनियमितताएं दर्शाती हैं कि भ्रष्टाचार की जड़ें अभी भी गहरी हैं।

"हल्दी, अदरख बीज खरीद की पहले ही एक लंबे संघर्ष के बाद उच्च न्यायालय के आदेशानुसार सीबीआई जांच चल रही है।वह जांच भी अनियमित तरीके से दाम बढ़ाने और उससे सरकारी धन और किसानों को होने वाले नुकसान को लेकर चली है।आज फिर वही काम उद्यान विभाग ने लहसुन बीज खरीद घोटाले में एक ही फर्म को दो साल तक का टेंडर देकर किया है।लहसुन बीज का वर्तमान बाजार मूल्य 100 से 120 रुपए प्रति किलो है। जिस आधार पर यदि डीबीटी होती तो किसान को बीज मात्र 60 तक प्राप्त हो जाता।लेकिन विभाग ने पिछले साल ही दरें लागू कर दी जो कि 300 से अधिक प्रति किलो है और किसान को भी 150 रुपए प्रति/ किलो पढ़ रहा है और इतना ही सरकार को।ऐसे में आखिर ये कमीशन खोरी नहीं तो फिर क्या है।एक बार फिर किसानों के हित में हम मा उच्च न्यायालय जाने को बाध्य होंगे" -दीपक करगेती, महासचिव पर्वतीय कृषक कृषि बागवानी और उद्यमी संगठन।

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