भारत के प्रथम गांव माणा में आस्था का उल्लास, 'लस्पा' पर्व का शुभारंभ।
शीतकाल हेतु भगवान का गुप्त वास और ग्रामीणों का शीतकाल प्रवास हेतु विभिन्न स्थलों को प्रस्थान।
माणा (चमोली)। भारत वर्ष के प्रथम गांव माणा में आज से बद्रीनाथ क्षेत्र के क्षेत्रपाल एवं रक्षक महावीर घंटाकर्ण के कपाट शीतकाल हेतु बंद करने की धार्मिक परंपरा का प्रतीक 'लस्पा' त्यौहार विधि-विधान के साथ प्रारंभ हो गया है। स्थानीय भाषा में 'लस्पा' कहे जाने वाले इस 6 दिवसीय उत्सव का शुभारंभ ग्राम के सभी देवी-देवताओं का आह्वान कर हुआ, जिसमें समस्त क्षेत्रवासियों ने सुख-समृद्धि के लिए आशीर्वाद प्राप्त किया।
यह पर्व माणा गांव के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह शीतकालीन प्रवास पर जाने से पूर्व भगवान घंटाकर्ण को विदाई देने और उनसे क्षेत्र की रक्षा का संकल्प लेने की एक अनूठी परंपरा है।
6 दिवसीय पूजन क्रम एवं बारीदारों की भूमिका
महावीर घंटाकर्ण की पूजा के लिए प्रत्येक वर्ष की भांति इस बार भी चार बारीदार नियुक्त किए गए हैं। इन्हीं चार बारीदारों के घर में अगले चार दिनों तक घंटाकर्ण जी का पूजन क्रम से होगा। इन पांच दिनों तक (आज से पांचवें दिन तक) भक्तजन जागरों एवं गीतों के माध्यम से भगवान घंटाकर्ण की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न करते हैं।
शीतकाल हेतु भगवान का गुप्त वास और ग्रामीणों का पलायन
पर्व के छठे दिन, यानी कार्तिक महीने के मासान्त की अर्धरात्रि में, एक अत्यंत महत्वपूर्ण अनुष्ठान होता है। भगवान घंटाकर्ण जी का अवतारी पुरुष (पश्वा) उनके विग्रह को अकेले गुप्त स्थान पर वास कराने हेतु ले जाता है, जिसके साथ ही शीतकाल के लिए घंटाकर्ण जी के कपाट बंद हो जाते हैं।
इस धार्मिक परंपरा के समापन के पश्चात, मार्गशीर्ष की संक्रांति (16 नवंबर) को माणा गांव के सभी निवासी अपने-अपने शीतकालीन प्रवास स्थलों जैसे जोशीमठ, गोपेश्वर, नैग्वाड़, घिंघराण आदि स्थानों के लिए प्रस्थान कर देंगे, जिसके बाद यह सीमांत गांव बर्फबारी के कारण लगभग छह माह तक एकांत में चला जाएगा।
गणमान्य व्यक्तियों और श्रद्धालुओं की उपस्थिति
लस्पा त्यौहार के शुभारंभ के इस पावन अवसर पर नगरपंचायत के ईओ श्री सुनील पुरोहित, पूर्व विधायक टिहरी श्री लाखीराम जोशी, पूर्व प्रधान पीतांबर मोलफा, वर्तमान प्रधान श्री धर्मेंद्र चौहान सहित समस्त ग्रामवासी एवं देश-विदेश से आए श्रद्धालु बड़ी संख्या में सम्मिलित रहे और इस अद्वितीय सांस्कृतिक-धार्मिक विरासत के साक्षी बने।


