पहाड़ की 'अर्ध-देवी': जंगल में कौन बचाएगा घर-गृहस्थी और खेती संभालने वाली महिलाओं को?
रुद्रप्रयाग/अगस्त्यमुनि। पहाड़ की जिंदगी, पहाड़ जैसी कठिन है। घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी, पशुपालन और खेती-बाड़ी का पूरा बोझ कंधे पर उठाने वाली देवभूमि की महिलाएं, आज जंगली जानवरों के जानलेवा हमलों का सबसे आसान शिकार बन रही हैं। रुद्रप्रयाग जिले के अगस्त्यमुनि क्षेत्र में रविवार सुबह घास लेने जंगल गई दो महिलाओं पर भालू का क्रूर हमला इसी भयावह हकीकत की ताज़ा कड़ी है, जिसने एक बार फिर पहाड़ में सुरक्षा के गंभीर सवालों को खड़ा कर दिया है।
भालू के हमले में दो महिलाएं गंभीर घायल
रविवार सुबह करीब 9 बजकर 52 मिनट पर अगस्त्यमुनि क्षेत्र के ग्राम बनियाड़ी के जंगल में यह दर्दनाक घटना हुई। मीना देवी (52 वर्ष) और लक्ष्मी देवी (53 वर्ष) पर अचानक भालू ने हमला बोल दिया। हमले में मीना देवी को गंभीर चोटें आईं, जबकि लक्ष्मी देवी भी घायल हुई हैं।
ग्रामीणों की चीख-पुकार पर स्थानीय प्रशासन और वन विभाग की संयुक्त टीम तुरंत मौके पर पहुंची। स्थानीय लोगों की मदद से दोनों घायलों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र अगस्त्यमुनि लाया गया, जहां उनका उपचार जारी है और सौभाग्य से उनकी स्थिति सामान्य बताई जा रही है।
जिलाधिकारी ने दिए सख्त निर्देश
घटना की गंभीरता को देखते हुए जिलाधिकारी रुद्रप्रयाग ने तत्काल अधिकारियों को सतर्कता बढ़ाने, वन विभाग को क्षेत्र में सघन निगरानी रखने और सुरक्षा उपाय कड़े करने के निर्देश दिए हैं। स्वास्थ्य विभाग ने भी घायलों के उपचार में कोई कमी न रहने देने का आश्वासन दिया है।
वन विभाग ने प्रभावित क्षेत्र में वन्यजीवों की गतिविधियों की मॉनिटरिंग तेज कर दी है। साथ ही, जिला प्रशासन ने ग्रामीणों से जंगल में समूह में जाने और सुरक्षा निर्देशों का पालन करने की अपील की है, ताकि ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
लगातार हमलों से सहमा गढ़वाल: कौन है जिम्मेदार?
रुद्रप्रयाग ही नहीं, बल्कि समूचे गढ़वाल क्षेत्र में जंगली जानवरों - विशेषकर भालू और गुलदार (तेंदुए) के हमलों में महिलाओं का शिकार होना एक डरावना सिलसिला बन चुका है।
महिलाएं प्रमुख निशाना: पलायन के चलते पुरुषों की कमी और घर की अर्थव्यवस्था को संभालने की जिम्मेदारी महिलाओं पर है। चारापत्ती, ईंधन और मवेशियों के लिए उन्हें अक्सर घने जंगलों की ओर रुख करना पड़ता है, जहां वे जंगली जानवरों की चपेट में आ जाती हैं। हाल के दिनों में पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जैसे जिलों में भी भालू और गुलदार के हमलों में महिलाओं के मारे जाने और गंभीर रूप से घायल होने की खबरें सामने आई हैं।
बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष: विशेषज्ञ मानते हैं कि जंगल और आबादी के बीच का बफर क्षेत्र सिमट रहा है। जंगल में भोजन और पानी की कमी, और जंगलों के पास की खेती-बाड़ी का विस्तार, इन जानवरों को इंसानी बस्तियों के करीब ला रहा है।
जंगली जानवरों से बचाव के उपाय और सरकार से अपेक्षा
जंगली जानवरों के इस आतंक से निपटने के लिए सरकार और जनता दोनों को मिलकर काम करना होगा।
ग्रामीणों के लिए बचाव के उपाय:
समूह में जाएं: जंगल में घास, चारा या लकड़ी लेने के लिए हमेशा कम से कम 3-4 लोगों के समूह में ही जाएं।
शोर करें: जंगली जानवरों को भगाने के लिए जंगल में तेज आवाज़ करते रहें (जैसे गाना गाना, ज़ोर से बोलना, या घंटी बजाना)। भालू अक्सर अचानक हमले करते हैं, इसलिए उन्हें अपनी उपस्थिति का संकेत देते रहना ज़रूरी है।
सतर्क रहें: खासकर सुबह और शाम के समय जब जंगली जानवर सक्रिय होते हैं, जंगल जाने से बचें।
डराए नहीं: यदि जानवर दिख जाए तो उसे पत्थर न मारें या डराने की कोशिश न करें, इससे वह और आक्रामक हो सकता है। धीरे-धीरे पीछे हटें।
"बीयर स्प्रे" का इस्तेमाल: वन विभाग द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले या स्थानीय रूप से अनुशंसित "बीयर स्प्रे" जैसे बचाव उपकरण पास रखें।
सरकार क्या करे?
बढ़ा मुआवजा और त्वरित कार्रवाई: उत्तराखंड सरकार ने मानव-वन्यजीव संघर्ष में जनहानि पर मुआवजे की राशि बढ़ाकर ₹10 लाख की है, जो स्वागत योग्य कदम है। लेकिन घायल होने पर भी पर्याप्त और त्वरित वित्तीय सहायता सुनिश्चित की जाए।
वन्यजीव प्रवास मार्ग की निगरानी: वन विभाग को वन्यजीवों के आवागमन वाले क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए और वहां ग्रामीणों की आवाजाही को नियंत्रित करना चाहिए।
चारा-ईंधन की वैकल्पिक व्यवस्था: सरकार को दुर्गम ग्रामीण क्षेत्रों में चारा और ईंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए योजनाएं बनानी चाहिए, ताकि महिलाओं को खतरनाक जंगलों में न जाना पड़े (जैसे मनरेगा के तहत घास उत्पादन या वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत)।
जागरूकता अभियान: वन विभाग को गांवों में व्यापक जागरूकता अभियान चलाने चाहिए, ताकि ग्रामीण सुरक्षा उपायों और हमले की स्थिति में क्या करें, इसकी जानकारी रख सकें।
समस्याग्रस्त वन्यजीवों का विस्थापन: जो जानवर बार-बार हमला कर रहे हैं, उन्हें तत्काल पकड़कर रेस्क्यू सेंटर भेजना या सुरक्षित स्थान पर विस्थापित करना ज़रूरी है।
पहाड़ की महिलाओं को केवल उनकी हिम्मत और दरांती के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। यह समय है कि सरकार इस गंभीर चुनौती को प्राथमिकता दे और सुरक्षा के ऐसे मजबूत उपाय करे, जिससे पहाड़ की 'अर्ध-देवी' जंगल में सुरक्षित महसूस कर सके और अपने घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी बिना जान के जोखिम के निभा सके।


