रुद्रप्रयाग केदारघाटी में 'चक्रव्यूह' ने मोहा मन

महिला कलाकारों का चक्रव्यूह मंचन',
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 रुद्रप्रयाग केदारघाटी में 'चक्रव्यूह' ने मोहा मन, पाण्डव नृत्य को विश्व धरोहर बनाने की उठी मांग।

मण्डाण सांस्कृतिक ग्रुप प्रस्तुत 'महिला कलाकारों का चक्रव्यूह मंचन' दर्शकों के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र बना।

देहरादून। उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस समारोह 'निनाद-2025' के सांस्कृतिक उत्सव ने इस बार एक अनूठा और ऐतिहासिक रंग भरा, जब रुद्रप्रयाग केदारघाटी का 'मण्डाण सांस्कृतिक ग्रुप- गुप्तकाशी' देहरादून पहुंचा। इस ग्रुप द्वारा प्रस्तुत 'महिला कलाकारों का चक्रव्यूह मंचन' दर्शकों के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र बना और इसने न सिर्फ हिमालयी संस्कृति के अद्भुत संगम को दर्शाया, बल्कि इस पौराणिक कला को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दिलाने की मांग को भी बल दिया।

केदारघाटी मण्डाण सांस्कृतिक ग्रुप ने पारंपरिक शैली में पाण्डव नृत्य पर आधारित महाभारत के महत्वपूर्ण प्रसंग 'चक्रव्यूह' का मंचन किया। इस प्रस्तुति की सबसे खास बात यह रही कि महाभारत के सभी प्रमुख पात्रों को महिला कलाकारों ने जीवंत किया। Group के लेखक और निर्देशक आचार्य डॉ. कृष्णानंद नौटियाल के मार्गदर्शन में, ललिता रौतेला (श्रीकृष्ण), विमला राणा (युधिष्ठिर), प्रीति बुटोला (भीमसेन), मीना बासकण्डी (अर्जुन), वैभवी रावत (अभिमन्यु), सत्येश्वरी रौथाण (द्रोणाचार्य), और अमृता कुंवर (दुर्योधन) समेत 23 महिला कलाकारों ने शानदार अभिनय और नृत्य कौशल से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

कर्मशील लोकनृत्यों की यह अनूठी प्रस्तुति देवभूमि उत्तराखंड की सदियों पुरानी संस्कृति का दर्पण है। यह प्रस्तुति इस बात का प्रमाण है कि रुद्रप्रयाग जनपद में प्रचलित पाण्डव नृत्य की समृद्ध विरासत को आज की पीढ़ी पूरी आस्था और समर्पण के साथ सहेज रही है।

विश्व धरोहर की पहचान दिलाना समय की मांग

इस सफल और प्रभावशाली मंचन के बाद, पाण्डव नृत्य को विश्व पटल पर अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage) के रूप में पहचान दिलाने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ रही है। यह लोकनृत्य, जो सदियों से गढ़वाल की लोककला, लोकगीत, नाट्य और अस्त्र-शस्त्रों के साथ नृत्य के रूप में जीवंत रहा है, उत्तराखंड की अनमोल सांस्कृतिक धरोहर है। इस प्रकार की प्रस्तुतियों से यह स्पष्ट होता है कि स्थानीय कलाकारों और विशेषकर महिला कलाकारों के अथक प्रयासों से यह परंपरा आज भी न केवल जीवित है, बल्कि एक भव्य रूप में प्रदर्शित हो रही है। इस नृत्य को वैश्विक मान्यता मिलने से न केवल यह कला संरक्षित होगी, बल्कि स्थानीय संस्कृति और कलाकारों को भी प्रोत्साहन मिलेगा।

प्रस्तुति के दौरान, गायक शैलेश नौटियाल के गायन और संवादों ने कलाकारों के प्रदर्शन में जान डाल दी, जबकि प्रबन्धक ठाकुर नरेंद्र सिंह रौथाण ने पूरे कार्यक्रम का सफल संचालन किया। यह उम्मीद जताई जा रही है कि उत्तराखंड सरकार और संस्कृति विभाग इस पारंपरिक लोकनृत्य को यूनेस्को (UNESCO) विश्व धरोहर के रूप में दर्ज कराने के लिए जल्द ही आवश्यक कदम उठाएगा।



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