ढोल की थाप पर नागराजा देव पूजन

गढ़वाल की लोक विरासत मनाण कार्यक्रम,
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गढ़वाल की समृद्ध लोक विरासत: नागराजा देव पूजन, जहाँ आस्था और विज्ञान का संगम होता है।

नागराजा देव का यह पूजन और मनाण कार्यक्रम गढ़वाल की उस जीवंत लोक विरासत का दर्पण है, जहाँ प्रकृति, देवता और मानव का संबंध अटूट है।

रुद्रप्रयाग जखोली: देवभूमि उत्तराखंड का गढ़वाल क्षेत्र अपनी अनूठी और समृद्ध लोक संस्कृति के लिए विश्वभर में जाना जाता है। इस सांस्कृतिक ताने-बाने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं यहाँ के स्थानीय देवी-देवता, जिनमें नागराजा देव का स्थान सर्वोपरि और अत्यंत विशिष्ट है। ग्राम कोठियाड़ा में आज से नागराजा देव का पारंपरिक 'पूजन और मनाण' कार्यक्रम शुरू हो गया है, जो इस क्षेत्र की अटूट आस्था और सदियों पुरानी परंपरा को जीवंत करता है।

लोक आस्था का वैज्ञानिक आधार: 'सूतक' और शुद्धता

नागराजा देव की पूजा-पद्धति केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि एक गहरी लोक-मान्यता का प्रतीक है जो श्रद्धा के साथ-साथ विज्ञान और पशु स्वास्थ्य के सिद्धांतों से भी जुड़ी हुई है। गढ़वाल की लोक संस्कृति में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है कि जब भी किसी घर में गाय या बछिया को जन्म देती है, तो 11 दिनों तक 'सूतक' माना जाता है।

  • दूध का प्रयोग वर्जित: इस 11-दिवसीय अवधि के दौरान गाय के दूध का उपयोग मनुष्यों के उपभोग के लिए नहीं किया जाता है।

  • पशु-पालन में शुद्धता: पशुपालक इस अवधि में गाय को जूठन या अशुद्ध भोजन भी नहीं खिलाते हैं, जो पशु-स्वास्थ्य के प्रति उनकी जागरूकता को दर्शाता है।

अटूट विश्वास: 11 दिन पूरे होने पर, सबसे पहले भगवान नागराजा को गाय के दूध और दूध से बने पदार्थों का भोग लगाया जाता है। इसके बाद ही परिवार उस दूध को प्रयोग में लाना शुरू करता है। यह लोक-मान्यता आज भी प्रत्येक घर में पूरी निष्ठा के साथ निभाई जाती है।

विज्ञान से जुड़ाव: लोक-विरासत के जानकार मानते हैं कि यह 11 दिन की अवधि गाय के नवजात बछड़े को 'कोलोस्ट्रम' (खीस) उपलब्ध कराने, पशु को प्रसव के बाद शारीरिक विश्राम देने और दूध को शुद्ध व स्वास्थ्यकर स्थिति में लाने के वैज्ञानिक महत्व को दर्शाती है। इस तरह, नागराजा देव के प्रति यह अटूट श्रद्धा दरअसल पशुधन के स्वास्थ्य और दूध की शुद्धता सुनिश्चित करने का एक पारंपरिक, सांस्कृतिक तरीका है, जो गढ़वाल की संस्कृति को समृद्धता का भान कराता है।

🥁 कोठियाड़ा में 'मनाण' का भव्य आगाज़

ग्राम कोठियाड़ा में आज इष्ट देवता नागराजा देव का यह पावन पूजन और 'मनाण' कार्यक्रम विधिवत रूप से प्रारंभ हो गया। कार्यक्रम के आचार्य श्री विनय नैथानी और श्री बृजमोहन गौदियाल ने जानकारी देते हुए बताया कि:

  • प्रातःकालीन पूजन: सुबह सबसे पहले पंच पूजा और पंचांग पूजन के बाद मुख्य रूप से देवताओं का पूजन किया गया।

  • ढोल की थाप पर आवाहन: दिन में 1 बजे से सांय 5 बजे तक, स्थानीय वाद्यों और ढोल की थाप पर भक्तिमय लोकगीतों का आयोजन किया जाएगा। इन मधुर धुनों के साथ नागराजा देवता सहित पूरे क्षेत्र के इष्ट देवताओं का पारंपरिक रूप से आवाहन (बुलावा) किया जाएगा।

नागराजा देव का यह पूजन और मनाण कार्यक्रम गढ़वाल की उस जीवंत लोक विरासत का दर्पण है, जहाँ प्रकृति, देवता और मानव का संबंध अटूट है। यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को उनकी जड़ों और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ने का भी एक सशक्त माध्यम है।


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