सरस मेलों की 'खानापूर्ति': करोड़ों खर्च के बाद भी बे-ब्रांड, बे-पैकेजिंग उत्पाद - किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प का मज़ाक।
सरकारी योजनाओं में धन की बर्बादी और किसानों के साथ धोखा: जब ब्रांडिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग सिर्फ कागज़ों तक सिमट कर रह गई।
मुनि की रेती, ऋषिकेश का सरस मेला - एक अवसर या योजनागत खामियों का प्रदर्शन?
उत्तराखंड के मुनि की रेती, ऋषिकेश में चल रहे सरस मेले में राज्य के विभिन्न जनपदों के स्थानीय समूहों, सहकारिताओं और संगठनों के उत्पाद विपणन के लिए प्रदर्शित किए गए हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) जैसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों के तहत इन समूहों की क्षमता निर्माण (Capacity Building) पर कथित तौर पर 'पानी की तरह' धन बहाया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य उत्पादों की ब्रांडिंग, उचित पैकेजिंग और प्रभावी मार्केटिंग द्वारा ग्रामीण आजीविका को सशक्त करना रहा है।
हालांकि, मेले में अधिकांश स्टॉलों पर उत्पादों की जो स्थिति दिखाई दे रही है, वह योजना के मूल उद्देश्य पर गंभीर सवाल खड़े करती है। बिना किसी ब्रांड नाम, साधारण प्लास्टिक के थैलों या अनुपयुक्त पैकेजिंग में रखे गए खाद्य और कृषि उत्पाद यह दर्शाते हैं कि क्षमता निर्माण और विपणन की सारी कवायद केवल 'खानापूर्ति' तक सीमित रह गई है।
करोड़ों रुपये 'स्वाहा' और ज़मीनी हकीकत शून्य: धन की बर्बादी का प्रमाण
यह विचारणीय है कि जिस ब्रांडिंग और उचित पैकेजिंग के बिना उपभोक्ता बाज़ार से खाद्य सामग्री खरीदने से कतराता है, उन आवश्यक चीज़ों को इन सरकारी समर्थित स्टॉलों पर क्यों नज़रअंदाज़ किया गया है। NRLM के तहत समूहों के प्रशिक्षण, सामग्री खरीद और विपणन हेतु करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद, यदि उत्पादों का प्रदर्शन साधारण प्लास्टिक की थैलियों में हो रहा है, तो यह स्पष्ट रूप से धन की बर्बादी का मामला है।
इतनी बड़ी योजनाओं को सिर्फ औपचारिकता निभाने और सरकारी धन को 'स्वाहा' करने के लिए क्यों चलाया जा रहा है? यदि प्रशिक्षण और क्षमता विकास के नाम पर किए जा रहे अंधाधुंध खर्चों में भी समूहों के लिए आवश्यक पैकेजिंग सामग्री और ब्रांड पहचान विकसित करने का बजट शामिल नहीं किया जा सकता, तो ऐसे कार्यक्रमों की सार्थकता संदेह के घेरे में आ जाती है।
सक्षम अधिकारियों और विशेषज्ञों की निष्क्रियता या जवाबदेही का अभाव
इतने बड़े पैमाने के मेले में, जहां राज्य के ग्रामीण उद्यमों का प्रतिनिधित्व किया जा रहा है, सक्षम अधिकारियों और विपणन प्रबंधकों (Marketing Managers) का इन छोटी मगर महत्वपूर्ण चीज़ों पर ध्यान न देना उनकी निष्क्रियता को दर्शाता है। योजनाओं में कृषि उत्पाद विपणन अधिकारी या मार्केटिंग मैनेजर को किस बात का मानदेय दिया जा रहा है? जब उनका प्राथमिक कार्य समूहों के उत्पादों को बाज़ार के अनुकूल ब्रांडिंग और पैकेजिंग प्रदान करवाना है, और परिणाम इस तरह के साधारण प्रदर्शन के रूप में सामने आ रहा है, तो उनकी जवाबदेही तय होनी चाहिए।
प्रशिक्षणों के दौरान उत्पादों की गुणवत्ता, स्वच्छता और शेल्फ-लाइफ सुनिश्चित करने वाली आधुनिक पैकेजिंग की महत्ता पर बल क्यों नहीं दिया गया? यह लापरवाही सीधे तौर पर ग्रामीण उत्पादकों के लाभ को कम करती है और सरकारी योजनाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाती है।
'संकल्प से सिद्धि' और 'आय दोगुनी' के पोस्टर - ज़मीनी प्रदर्शन का उपहास
एक तरफ सरकार 'किसानों की इनकम दुगनी हो' के संकल्प और महिला किसानों की आय वृद्धि के बड़े-बड़े पोस्टर लगा रही है, वहीं सरस मेले में प्रदर्शित इन अनाकर्षक और अनब्रांडेड उत्पादों को देखकर ऐसा लगता है कि यह समान उन नारों का मुंह चिढ़ा रहा है। आकर्षक पैकेजिंग और ब्रांडिंग के बिना, स्थानीय उत्पाद बाज़ार में बड़े ब्रांडों के सामने खड़े नहीं हो सकते और न ही उत्पादक उचित मूल्य प्राप्त कर सकते हैं।
यह विसंगति दर्शाती है कि नीति निर्माण और उसके ज़मीनी कार्यान्वयन में एक बड़ा गैप है। योजनाएं सिर्फ भव्य घोषणाओं और आंकड़ों तक सीमित हैं, जबकि वास्तविक लाभार्थी, यानी किसान और स्वयं सहायता समूह, पुराने ढर्रे पर ही काम करने को मजबूर हैं। यह स्थिति स्पष्ट रूप से किसानों के साथ हो रहे 'धोखे' को उजागर करती है, जहां सरकारी योजनाओं का मुख्य उद्देश्य जनकल्याण न होकर, सिर्फ बजट खर्च करना और खानापूर्ति तक सिमट कर रह गया है। उचित हस्तक्षेप और निगरानी के अभाव में यह धन की खुली बर्बादी ही है।