पहाड़ पर भारी पड़ती जिंदगी

महिला पर भालू का जानलेवा हमला,
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पहाड़ पर भारी पड़ती जिंदगी: परकंडी गाँव में चारा लेने गई महिला पर भालू का जानलेवा हमला।

घटना ने न केवल गाँव में दहशत का माहौल पैदा किया है, बल्कि उन गहराते सवालों को भी जन्म दिया है, जो सीधे तौर पर पहाड़ के पलायन, खाली होते गाँवों और बंजर पड़ते खेतों से जुड़े हैं।

रुद्रप्रयाग के परकंडी गाँव में चारा लेने गई महिला पर भालू का जानलेवा हमला, सिर पर गंभीर चोटों के बाद हायर सेंटर रेफर। दिनदहाड़े हुई इस घटना ने ग्रामीणों में दहशत भर दी है, लोग खेतों में जाने से कतरा रहे हैं।

रुद्रप्रयाग। पहाड़ों में जंगली जानवरों का बढ़ता आतंक अब केवल रात के अंधेरे तक सीमित नहीं रहा, बल्कि दिन के उजाले में भी इंसानी जिंदगियों पर भारी पड़ रहा है। ऊखीमठ ब्लॉक के परकंडी गाँव में मंगलवार की सुबह खेतों में चारा लेने गई एक महिला पर भालू के जानलेवा हमले ने इस कड़वी हकीकत को एक बार फिर सामने ला दिया है। इस घटना ने न केवल गाँव में दहशत का माहौल पैदा किया है, बल्कि उन गहराते सवालों को भी जन्म दिया है, जो सीधे तौर पर पहाड़ के पलायन, खाली होते गाँवों और बंजर पड़ते खेतों से जुड़े हैं।

जानकारी के अनुसार, परकंडी निवासी श्रीमती गौरा देवी (पत्नी श्री शक्ति सिंह) सुबह लगभग 9 से 10 बजे के बीच अपने ही खेतों में चारा काट रही थीं। तभी, पहले से घात लगाकर बैठी झाड़ियों में छिपे एक भालू ने उन पर अचानक हमला बोल दिया। भालू ने सीधे उनके सिर को निशाना बनाया, जिससे उन्हें गंभीर और गहरे घाव आए हैं।

आसपास मौजूद ग्रामीणों ने जब गौरा देवी की चीख-पुकार सुनी, तो वे तुरंत घटनास्थल की ओर दौड़े। उन्होंने साहस का परिचय देते हुए किसी तरह भालू को वहां से खदेड़ा और लहूलुहान महिला को उसके चंगुल से छुड़ाया। उन्हें तत्काल प्राथमिक उपचार के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने सिर की गंभीर चोट को देखते हुए उन्हें सिटी स्कैन और बेहतर इलाज के लिए हायर सेंटर रेफर कर दिया है।


डर के साए में जिंदगी और बंजर होते खेत

यह कोई पहली घटना नहीं है। परकंडी के ग्राम प्रधान के अनुसार, "हमारे गाँव के लोग दोहरी मार झेल रहे हैं। दिन में भालू और गुलदार का खौफ रहता है, तो रात होते ही जंगली सूअरों की टोलियाँ बची-खुची फसलों को भी बर्बाद कर देती हैं।" उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि इस डर के कारण अब लोग, विशेषकर महिलाएँ और बच्चे, अपने ही खेतों में जाने से घबरा रहे हैं। जब लोग खेतों तक ही नहीं पहुँच पाएँगे, तो खेती कैसे होगी? यह डर धीरे-धीरे पहाड़ों को उस पलायन की ओर धकेल रहा है, जहाँ गाँव खाली हो रहे हैं और खेत बंजर भूमि में तब्दील होते जा रहे हैं।

सूचना मिलने पर वन विभाग की एक टीम ने भी गाँव पहुँचकर घटनास्थल का निरीक्षण किया है, लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि विभाग द्वारा केवल खानापूर्ति की जा रही है। उनकी मांग है कि केवल मुआवजा देना ही काफी नहीं है, बल्कि वन्यजीवों के आतंक से सुरक्षा के लिए ठोस और स्थायी कदम उठाए जाएँ, गश्त बढ़ाई जाए और मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए एक प्रभावी रणनीति बनाई जाए।

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