खटीमा गोलीकांड के शहीदों के हमेशा ऋणी रहेंगे उत्तराखंडवासी

खटीमा गोलीकांड की 31वीं बरसी,
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उत्तराखण्ड की मांग को लेकर खटीमा गोलीकांड के शहीदों के हमेशा ऋणी रहेंगे उत्तराखंडवासी - सीएम धामी


01 सितंबर 1994 के दिन खटीमा में हुई गोलीबारी के चलते उत्तराखण्ड आन्दोलन की मांग सशक्त हुई जो 1938 से जारी थी।

एक सितंबर 1994 को पृथक राज्य की मांग के लिए खटीमा की सड़कों पर उमड़े राज्य राज्य आंदोलनकारियों पर पुलिस ने गोलियां बरसा दी थीं। इसमें सात लोगों के शहीद होने के साथ ही 165 से अधिक गंभीर रूप से घायल हुए। उत्तराखण्ड को अलग प्रशासनिक इकाई बनाने की मांग तो आजादी से पूर्व  सन् 1938 से की जा रही थी।  आजादी के बाद भी ये मांग लगातार जारी रही लेकिन 17 जून, 1994 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के एक फैसले के कारण उत्तराखण्ड के छात्र एवं युवा बौखला उठे और उन्होंने जबरदस्त आन्दोलन छेड़ दिया था। 


 1 सितंबर 1994 में खटीमा गोलीकांड की घटना की सूचना आग की तरह पूरे कुमाऊं और गढ़वाल में आग की तरह फैल गई। जिसके परिणामस्वरूप ठीक उसके अगले दिन यानी 2 सितंबर 1994 को मसूरी में भी लोग खटीमा में हुई दुर्दांत घटना के विरोध प्रदर्शन करने के लिए इक्कठा हुए थे।  मसूरी में भी पुलिस की गोलीबारी में 6 लोग शहीद हुए थे जिनमें बलवीर सिंह नेगी, धनपत सिंह, राय सिंह बंगारी, मदन मोहन ममगई, बेलमती चौहान और हंसा धनेई शामिल थे 2 सितंबर की तारीख को उत्तराखंड के इतिहास में काला दिन के रूप में याद किया जाता है। 

2 अक्टूबर को भारत में  महात्मा गांधी 'अहिंसा के पुजारी' के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उत्तराखंड के इतिहास में  एक काला दिवस के रूप में मनाया जाता है।  उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी गांधी जयंती के अवसर पर देश की की राजधानी दिल्ली में जाने के लिए उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों से चले तो राज्य आंदोलनकारियों का बहुत बड़ा जन सैलाब सड़कों पर उमड़ पड़ा।  उत्तराखण्ड आंदोलनकारी नारसन जो अब उत्तरप्रदेश और उत्तराखण्ड की सीमा है पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि ट्रक और बसें जल रही थी और  सामने पुलिस चौकी भी आग के हवाले की जा चुकी थी इस घटनास्थल से  3 किमी दूरी पर मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर चीख- पुकार मची हुई थी। क्योंकि मुलायम सिंह के द्वारा दिए गए आदेश पर पुलिस वालों ने निहत्थों पर गोलियां बरसाना शुरू कर लिया था।  इस गोलीबारी में देहरादून  विकास नगर के  विजय पाल सिंह रावत के पैर में गोली लगी थी और इस घटना में 7 लोग शहीद हुए और 4 लापता थे जिन्हें बाद में शहीद का दर्जा दिया गया। 

सोमवार को मुख्यमंत्री धामी ने खटीमा में शहीद स्मारक स्थल पर राज्य आंदोलन के दौरान शहीद आंदोलनकारियों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। मुख्यमंत्री ने शहीदों के परिजनों नानक सिंह, नरेंद्र चंद,जगत सिंह, अनिल भट्ट, शरीफ अहमद को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खटीमा गोलीकाण्ड में शहीद हुए आंदोलनकारियों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद कहा कि आज का दिन उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान खटीमा गोलीकांड में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर बलिदानियों भगवान सिंह सिरौला, प्रताप सिंह, रामपाल, सलीम अहमद, गोपीचंद, धर्मानंद भट्ट और परमजीत सिंह को याद करने का दिन है। उत्तराखंड का हर नागरिक इन सभी वीर सपूतों का  सदैव ऋणी रहेगा जिनकी शहादत के परिणाम स्वरुप आजादी से पूर्व हो रही  अलग पहाड़ी राज्य की मांग पूर्ण हुई। 

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि  01  सितंबर 1994 को खटीमा गोलीकांड ने लोगों को उत्तराखंड के अधिकारों की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। इस गोलीकांड के बाद पहाड़ उबल पड़ा था और उत्तराखंड की मांग के आंदोलन को एक अलग पहचान राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंच मिला। भाजपा सरकार राज्य आंदोलनकारियों के आदर्शों और उनके सपनों को साकार करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। राज्य आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों के लिए राज्य सरकार की नौकरियों में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण लागू किया है। शहीद आंदोलनकारियों के परिवारों के लिए तीन हजार रुपये मासिक पेंशन की सुविधा भी शुरू की है। साथ ही घायल और जेल गए आंदोलनकारियों को 6000 रुपये और सक्रिय आंदोलनकारियों को 4500 रुपये प्रतिमाह पेंशन दी जा रही है तथा राज्य आंदोलनकारियों को चिह्नित  कर पहचान पत्र जारी करने के साथ ही 93 आंदोलनकारियों को राजकीय सेवा में सेवायोजित भी किया है। आंदोलनकारियों को रोडवेज बसों में निशुल्क यात्रा की सुविधा भी उपलब्ध कराई जा रही है।

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