घास लेने गई महिला को भालू ने बनाया अपना निवाला।
मानव वन्यजीव संघर्ष के कारण पहाड़ में अधिकतर महिलाएं बन रही हैं शिकार।
जनपद चमोली के विकासखण्ड नंदानगर के पास तांगला गांव की बसंती देवी (उम्र 50 वर्ष) पत्नी जगत सिंह अपने पशुओं के लिए घास लेने के लिए घटबगड़ तोक गई थीं कि अचानक झाड़ी में दो बच्चों के साथ घात लगाकर बैठे भालू ने बसंती देवी पर हमला कर दिया। बसन्ती देवी पर भालू द्वारा हमला करने पर साथ में घास लेने गई दूसरी महिला ने शोर मचाया तो भालू और उसके बच्चे भाग गए। महिला ने ग्रामीणों को घटना की सूचना देने पर ग्रामीण घटनास्थल पर पहुंचे और घायल महिला को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नन्दानगर में उपचार हेतु लाया जा रहा था कि महिला ने दम तोड़ दिया।
इस घटना पर नायब तहसीलदार राकेश देवली ने बताया कि महिला का शव पुलिस द्वारा पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं का बढ़ना क्यो चर्चा का विषय नही बन पा रहा है जनपद रुद्रप्रयाग में 6 महीने से कम अविधि में गुलदार द्वारा हमला कर 3 महिलाओं की मौत और 10 लोगों को घायल जिसमें 2 स्कूली छात्र व अन्य 08 महिलाएं ही थी को घायल किया था तथा 30 सितंबर 2025 को धनकुराली गावँ में गोशाला की छत को तोड़कर भालू द्वारा एक गाय को मारना व बेल ओर भैंस को घायल करना विचारणीय प्रश्न है पर यह न आजतक किसी राजनैतिक दल के द्वारा चिंता जाहिर की गई और न इसके बचाव के लिए कोई ठोस पहल की गई जो पहाड़ की समस्याओं के लिए कितना गम्भीरता से नीतियां बनती है का स्पष्ट उदाहरण है।
हिमालय की आवाज न्यूज पोर्टल द्वारा कई खबरों को प्रकाशित कर धारण क्षमता (Carrying capacity) के बारे में शोध करने का आग्रह वन विभाग व सरकार से किया जिसे अनदेखा करना पहाड़ को जन शून्य बनाने के लिए भी एक कारण माना जाना चाहिए कि सरकारों और सम्बंधित विभागों के द्वारा जंगली जानवरों की धारण क्षमता का आंकलन न करने से ओर जंगली जानवरों की अधिकता कम क्षेत्र में होने से यह हिंसक प्रवृति के बन रहे हैं क्योंकि डार्विन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़' (1859) में एक सिद्धांत अस्तित्व के लिए संघर्ष के बारे में बताया है कि "उपलब्ध संसाधनों की तुलना में अधिक जीव उत्पन्न होते हैं, जिससे जीवित रहने के लिए एक संघर्ष उत्पन्न होता है। प्राकृतिक चयन के लिए तीन आवश्यक और पर्याप्त शर्तें हैं: (1) अस्तित्व के लिए संघर्ष; (2) भिन्नता; और (3) वंशागति।"
यह सिद्धांत सर्वमान्य होने के बाद भी मानव वन्यजीव संघर्ष की लगातार बढ़ रही घटनाओं के लिए जिम्मेदार कारकों की पहचान करके उनका निदान नही करेंगे तो यह मानव जाति के लिए भविष्य में बहुत बड़ा खतरे का कारण बन सकता है।