रामरतन पवांर/गढ़वाल ब्यूरो।
जखोली मे भारत सरकार की मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना मे भारी अनिमिततायें व भ्रष्टाचार होने की आशंका को देखते हुए जांच करने की गयी थी मांग।
सयुंक्त सचिव ने जिलापंचायत राज अधिकारी को जांच के दिये थे निर्देश, लेकिन पांच माह बीत जाने के बावजूद भी नही की गयी कार्यवाही।
रूद्रप्रयाग। जनपद रुद्रप्रयाग मे अधिकारी शासन मे बैठे उच्च अधिकारियों के लिखित आदेशो को मानने को तैयार नही। उत्तराखंड मे महत्वाकांक्षी योजना के अन्तर्गत केन्द्र सरकार/राज्य सरकार ग्रामीण क्षेत्रों मे मनरेगा/राज्य वित्त/15वें वित्त/क्षेत्र पंचायत निधि से होने वाले विकास कार्य के लिए हर साल करोड़ो धनराशि की स्वीकृति प्रदान करती है ताकि इस धनराशि का निर्माण कार्यो मे सही तरीके से खर्च हो सके, ओर मूलभूत सुवुधाओं का विकास होकर स्थानीयों के जीवन में खुशहाली आ सके। लेकिन आलम यह है कि मनरेगा की धनराशि को जिम्मेदार अधिकारी/कर्मचारी ठिकाने लगाने मे तुले हैं।
ग्राम पंचायतों मे कराये गये कार्यों मे भारी अनिमितताए व भ्रष्टाचार हो रहा है। जिसकी सुगबुहाट कई बार उठती भी है पर जांच थर्ड पार्टी से न होकर उसी विभाग के कर्मचारी जांच करते हैं जो मनरेगा को संचालित करते हैं।
ज्ञात हो कि जखोली विकासखंड के अन्तर्गत मनरेगा सहित राज्य वित्त/15वें वित्त/क्षेत्र पंचायत निधि से किये गये विकास के निर्माण कार्यो मे भारी अनिमितताए व भ्रष्टाचार को मध्येनजर रखते हुए माह दिसम्बर 2024 को मुख्य सचिव उतराखंड शासन को जखोली के विभिन्न ग्राम पंचायतों मे इन सभी निधियों से कराये गये निर्माण कार्यो को लेकर जांच हेतू एक पत्र प्रेषित किया गया था। जिस पत्र का संज्ञान लेते हुए मुख्य सचिव ने जांच करवाएं जाने से सम्बन्धित पत्र निदेशक पंचायती राज देहरादून, सचिव पंचायती राज, जिलाधिकारी सहित मुख्य विकास अधिकारी रूद्रप्रयाग को जखोली मे जांच करवाते जाने हेतू पत्र लिखकर जांच करवाने के आदेश दिये थे। लेकिन पांच माह का समय बीत जाने के बावजूद भी आज दिवस तक जनपद रुद्रप्रयाग के सम्बंधित अधिकारियों ने उच्च अधिकारियों के आदेश को ठुकरा कर कोई कार्यवाही नही की। अब सवाल ये भी है कि जब रूद्रप्रयाग मे बैठे अधिकारी अपने उच्च स्तरीय अधिकारियों का कहना नही मानते है तो वो फिर जनता का काम कैसे करते होंगे।
आखिर क्यो नही अभी तक अधिकारी जांच को दबाये हुए है, इसका मुख्य कारण ये है कि वास्तव मे मनरेगा मे भारी भ्रष्टाचार व अनिमितताए है जो कि अधिकारियों को सब पता है इसलिए ये लोग जांच करवाने से कतरा रहे है। लेकिन कब तक चुपचाप बैठे रहेंगे, जांच तो करनी ही पड़ेगी।
यदि मनरेगा के कार्यों के भुगतान की बात करें तो अमूमन देखने को मिलता है कि जिन लोगों ने कार्यस्थल देखा तक नही उनके खातों में भी भुगतान किया गया है। कई स्थानों पर जांच की जाए तो साइट की जीपीएस लोकेशन ओर कार्यस्थल की जीपीएस लोकेशन में भी अंतर आएगा क्योंकि टैग अपनी सुविधानुसार किया गया है।
जिन फर्मों से मनरेगा कार्यों के लिए सामग्री की आपूर्ति की जाती है उनके द्वारा कितना माल आपूर्ति किया जाता है और उस सामग्री पर ली गयी GST को जमा किया जाता है या नही यह भी जांच का विषय है। आपूर्ति ओर निकासी में अंतर से भी स्पष्ट हो जाएगा कि मनरेगा या अन्य इस तरह की योजनाएं जो विकासखण्ड से संचालित हैं में कितने सामग्री की आपूर्ति की गई है।
केंद्र सरकार को चाहिए कि जीपीएस लोकेशन वाले कैमरे से मनरेगा मेट के द्वारा प्रतिदिन कार्य का वीडियो और फ़ोटो को अपलोड किया जाए जिससे कार्यों में पारदर्शिता आये ओर मजदूर जो कार्यरत हैं को ही भुगतान हो सुनिश्चित हो सके।
सोशियल ऑडिट सिर्फ खाना पूर्ति तक सीमित न रहे इसकी सूचना मनरेगा मेट या मनरेगा सहायक या ग्राम प्रहरी के माध्यम से एजेंडा रजिस्टर प्रत्येक घर में बैठक की सूचना पर हस्ताक्षर करवा कर दी जाए।
योजनाओं का उद्देश्य जीवन के स्तर को बढ़ाने के लिए किए जाने वाले प्रयास होतें हैं यदि इस तरह से योजनाओं का संचालन किया जाएगा तो विकास की बयार का मुंह एक तरफा खुला रहेगा।