नहर का न हेड न टेल

नहरों के नाम पर बजट लग रहा ठिकाने,
खबर शेयर करें:

 सिंचाई विभाग रुद्रप्रयाग के द्वारा बनाई गयी नहर का न हेड न टेल।


पिछले 5 वर्षों से सिंचित खेती में मंडुवा झंगोरा बोया जा रहा व अधिकतर भूमि सिंचाई सुविधा न होने के चलते बंजर में हुई तब्दील। 

एशिया की सबसे बड़ी नहर का तमगा प्राप्त नहर से आच्छादित गावँ सिंचाई के पानी के लिए आसमान ताकने को हैं मजबूर।

 सिंचाई विभाग रुद्रप्रयाग के द्वारा ऐसे ऐसे जगह पर नहर बनाई गई हैं जहां खेती को बंजर पड़े लगभग 15 साल से अधिक समय हो गया है। यही नही नहर निर्माण और सुधारीकरण के लिए जहां पिछले 4 साल से मांग की जा रही है और किसानों के द्वारा सिंचित खेतों में मजबूरी में धान रोपाई के स्थान पर मंडुवा बोया जा रहा वहां पर विभाग नहर नही बना रहा है।

सिंचाई विभाग रुद्रप्रयाग के द्वारा मयाली गुप्तकाशी मोटरमार्ग पर पटगाड़ गदेरे से शिवालय प्रवेश द्वार तक पूर्व में नहर का निर्माण करवाया गया था जो कि अच्छी गुणवत्ता के चलते जीर्णशीर्ण स्थिति में घास और झाड़ियों के बीच सिंचाई विभाग रुद्रप्रयाग के अधिकारियों से अपने वजूद को बचाने की मांग कर रही है जिसपर विभाग ने नहर की पीड़ा को अपना हित देखकर मरहम लगाने की कोशिस की पर ये मरहम ऐसे जगह लगाया गया जहां दर्द ही नहीं था। यह नहर ऐसे जगह पर बनाई गयी है जिससे इसमें न गदेरे को जोड़ा गया है न खेत को इसका कारण सिंचाई विभाग के साईट इंचार्ज को पूछने पर बताया गया कि हेड की तरफ पिछले वित्त वर्ष में काम हुआ है और हम दुबारा करेंगे तो वित्तीय अनियमितता की बात होगी और इस नहर को नाबार्ड की योजना में आगे बनाया जाएगा जिसके लिए डीपीआर तैयार है। 

विकासखण्ड मुख्यालय के नजदीकी ग्राम कोठियाड़ा में पटगाड़ गदेरे से शिवालय प्रवेश द्वार तक यदि यह नहर बन जाती तो लगभग 45 हैक्टेयर कृषि भूमि की सिचाई करने के काम आती जो कि अभी नहर न होने के चलते कास्तकार एलडीपीई पाइप या अन्य व्यवस्थाओं से खेती को रोपाई के लिए तैयार करते हैं जबकि कुछ जमीन बिना पानी के बंजर हो गयी है और कुछ सिंचाई वाले खेतों में काश्तकार मण्डुवा बुवाई पिछले 4 वर्षों से कर रहे हैं इस संबंध में कई बार सिचाई विभाग के ऑफिस के मठाधीशों को अवगत कराया गया पर सुने कौन।  जबकि इसी क्षेत्र से 2 किलोमीटर आगे बरसिर-पांजना पैदल पुलिया के नजदीक डांगसेरा तोक में जहां की पूरी जमीन एक दशक से ऊपर समय से बंजर पड़ी हुई में नहर का निर्माण किया गया है।


  गेहूं के खेत हर वर्ष सूखे पड़े रहते हैं पर अरबों रूपये खर्च करने के बाद भी लस्तर नदी से बजीरा तक जाने वाली नहर पर पानी नहीं चलाया जा रहा है। इसका कोई ठोस कारण भी नहीं है क्योंकि इस नहर पर सिर्फ मरोम्मत ही चलती है जबकि सिंचाई का पानी  गेहूं की फसल के कम से कम 3 सिंचाई ओर धान की रोपाई के लिए कम से कम 5 सिंचाई होनी आवश्यक हैं पर धान रोपाई के समय भी इतनी बड़ी नहर होने के बाद भी सिंचाई के लिए पानी का समय पर उपलब्ध न होना इस नहर के अस्तित्व को खारिज करने जैसे है। 

एक तरफ सरकार का प्रयास है कि पहाड़ी उत्पादों को अधिक प्रोत्साहन दिया जाए जिसके लिए कई योजनाएं और परियोजनाएं चलायी जा रही हैं कृषि विभाग और उद्यान विभाग बीज पर इतना बजट खत्म कर रहा है जब बीज को पानी नहीं मिलेगा तो होगा क्या।  जिला प्रशासन इस खबर पर जरूर संज्ञान लेंगे और इसपर जो कार्यवाही बनती हो वो करेंगे क्योंकि मनमानी के चलते खेतों को बंजर बनाना और दशकों से बंजर पड़ी जमीनों में सिंचाई नहर बनाना क्या सरकारी धन का दुरप्रयोग है या नहीं यह स्पष्ट करना होगा।

खबर पर प्रतिक्रिया दें 👇
खबर शेयर करें:
Next
This is the most recent post.
Previous
पुरानी पोस्ट

हमारे व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ें-

WhatsApp पर हमें खबरें भेजने व हमारी सभी खबरों को पढ़ने के लिए यहां लिंक पर क्लिक करें -

यहां क्लिक करें----->