फूलदेई पर्व के समापन पर राजकीय अवकाश की मांग

फूलदेई त्योहार क्यो मनाया जाता है,
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 पहाड़ की संस्कृति में त्यौहारों की समृद्ध परंपराएं उसी प्रकार रची बसी जैसे समुद्र के जल में सारी नदियों का जल रचा बसा होता है।

इसी परंपरा में बसंत के आगमन की बेला पर उत्तराखंड में फुलदेई का त्यौहार बच्चों द्वारा मनाया जाता है।

चैत्र का महीना लगते ही घर घर की देहली को रंग बिरंगे फूलों के द्वारा  बच्चे सूर्योदय से पहले ही सजा देते हैं।

आठवें दिन घोघा देवता का प्रसाद बनाने के लिए घर घर से चावल, दाल, गुड़ एवं अन्य सामान को इकठ्ठा कर सामूहिक रूप से मीठा भात, दाल एवं भात का प्रसाद बनाया जाता है। बड़े बुजुर्ग सब प्रसाद को पाकर बच्चों के इस त्यौहार में सम्मिलित होते हैं।

  लोक पर्व फूलदेई वसंत ऋतु के आगमन का संदेश देता है। नौकरी, पढ़ाई व दूसरे वजहों से अलग होते परिवारों में प्रकृति संरक्षण से जुड़े इस पर्व को मनाने की परंपरा पिछले कुछ वर्षों में कम हुई है। विशेषकर नगरीय क्षेत्रों में पर्व अब परंपरा निभाने तक सीमित होता जा रहा है। फूलदेई के लिए बच्चे हाथों में टोकरी, थाल लिए खेतों की ओर निकल पड़ते हैं। ताकि देहरी सजाने को वह चुन सकें, सरसों, फ्योंली व आड़ू-खुमानी के ताजा फूल।

संस्कृति तभी बची रह सकती है जब त्यौहार बचे रहेंगे। पहाड़ की संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए बच्चों के इस त्यौहार जिसको आठें के नाम से भी जाना जाता है को मनाने का अवसर बच्चों को मिले इस हेतु इस त्यौहार को सरकार का भी समर्थन मिलना चाहिए। 

  फूलदेई पर्व का उतराखंड विशेष मान्यता है। यह पर्व विशेषकर हर साल चैत्र माह के संक्रांति के दिन‌ यानी 1 गते से शूरु होकर और चैत्र माह की 8 गते यानि आठ‌ दिन तक हर गांव के बच्चों ‌के द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है ।

 उतराखंड मे फूलदेई त्योहार में बच्चे घोघिया के नाम से डोली बनाते हैं इस डोली की पूजा सुबह सबसे पहले फूल डालकर की जाती है और सायंकाल को फुलारी बच्चे घोघिया देवता की पूजा आरती करते हैं। ये पर्व  हिन्दू नव वर्ष का पहला‌ महीना होता है। इस त्यौहार ‌को बच्चे गांवो‌ मे  घोघिया ‌देवता की डोली को घुमाते है और हर घर पर प्रातकाल फूल डालते है।

इस अवसर पर बच्चों की भावना को दृष्टिगत करते हुए सरकार को अवकाश घोषित करना चाहिए ताकि बच्चे पहाड़ के इस त्यौहार को परंपरा के अनुसार मना सके और भविष्य के लिए भी यह त्यौहार बचा रह सके।

वही सामाजिक कार्यकर्ता ‌जीतेन्द्र बुटोला, हरीश पुण्डीर,  रघुवीर कैन्तूरा, बैनोली के पूर्व प्रधान सूर्य प्रकाश नौटियाल, श्याम सिह  पवांर सहित क्षेत्र के बुद्धिजीवियों का कहना है कि फूलदेई  का त्यौहार ‌भी हमारी संस्कृति का एक  अंग‌ है, जिसे धूमधाम से मनाने के लिए विद्यालयों मे एक दिन का अवकाश होने की आवश्यकता है, ताकि बच्चे ‌इस त्यौहार को मना सके

उन्होंने सरकार से सभी शिक्षण संस्थाओं को फूलदेई त्यौहार को‌ मनाते जान हेतू 21 मार्च को एक दिवसीय अवकाश की मांग की।

इनका ये भी कहना है कि अगर इस पर्व ‌पर सरकार शिक्षण संस्थाओं मे पढ़ रहे छात्र/छात्राओं कल समाप्त होने वाले फूलदेई त्यौहार को मनाने के‌ लिए अवकाश की घोषणा करती है तो  बच्चों के लोकपर्व जो संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है में बच्चे बढ़चढ़कर भाग लेंगे।

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