गुलदार प्रभावित क्षेत्र में वन विभाग द्वारा की जा रही निगरानी

गुलदार के हमले से कैसे बचाव किया जा सकता है,
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 गुलदार प्रभावित क्षेत्र डाँगी पठालीधार क्षेत्र में वन विभाग द्वारा की जा रही सघन निगरानी।

8 सदस्यीय दल व 4 ट्रेप कैमरों से गुलदार की गतिविधियों पर रखी जा रही नजर।

केयरिंग कैपिसिटी गुलदारों की गणना के अनुसार अधिक होने पर दूसरी जगह स्थान्तरित व सियारों को फिर से बसाया जाए।

जनपद रुद्रप्रयाग में 2025 के अभी 6 माह बीते है पर मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं से क्षेत्र में दहशत जैसे माहौल बना हुआ है। आलम यह है कि फरवरी 2025 से 30 जून 2025 तक गुलदार के हमलों से 3 महिलाओं की मौत व एक महिला घायल होने की घटनाएं हो चुकी हैं।

दिनाँक 30 जून 2025 को विकासखण्ड अगस्त्यमुनि के ग्राम डाँगी पठालीधार में श्रीमती चेता देवी पर गुलदार के द्वारा हमला करने से घायल कर लिया गया था। 

मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो के लिए उत्तरी जखोली रेंज के वन क्षेत्राधिकारी सुरेंद्र सिंह ने बताया कि डाँगी पठालीधार क्षेत्र में गुलदार की गतिविधियों की निगरानी के लिए 4 ट्रेप कैमरे लगाए गए हैं व 8 सदस्यीय गश्तीदल बनाया गया जो कि क्षेत्र में सुबह, सायं व रात के समय गश्त कर रह हैं व दिन के समय जनसम्पर्क कर लोगों को गुलदार के हमलों से कैसे बचा जा सकता है व क्या क्या सावधानियां रखनी हैं का प्रचार प्रसार कर रहें हैं।

जनपद रुद्रप्रयाग में गुलदारों के द्वारा लगातार महिलाओं पर हमला किये जाने का मुख्य कारण खेतों में महिलाओं का बैठकर काम करना रहा है। 

गुलदार के हमलों से बचने के उपाय-

👌बस्तियों के नजदीक झाड़ियों को न उगने दें।

👌महिलाएं समूह में खेत या घास के लिए जायें।

👌खेत मे एक ही स्थान पर अधिक समय तक बैठकर काम न करें।

👌अपने आस पास पक्षियों की चहचहाट की आवाज़ में परिवर्तन होने को ध्यान दें।

👌घरों के आसपास उजाले का समुचित प्रबन्ध किया जाए।

👌गुलदार के बस्तियों के नजदीक आने का समय अधिकतर सायं को 4 बजे से होता है जो लगभग 9 बजे तक होता है व सुबह 5 बजे से उजाला होने तक इस अविधि में सावधानी की आवश्यकता होती है।

हिमालय की आवाज न्यूज पोर्टल वन विभाग से अपील करता है कि जनपद रुद्रप्रयाग में गुलदारों की संख्यां दुबारा से गिनती की जाए। क्योंकि क्षेत्र का क्षेत्रफल कम व गुलदारों की संख्या अधिक हो गयी है । केयरिंग कैपिसिटी का क्षेत्रफल कम होने से गुलदारों को जंगली जानवर शिकार हेतु कम मिल रहे हैं। 

पहला कारण- जंगली जानवरों के कम होने का कारण जंगलों में लगने वाली आग है जिससे जंगली जानवर भी आग की भेंट चढ़ जाते हैं या अधिकतर जगंली जानवरों के बच्चे। इस कारण भी गुलदारों को जंगलों में भोजन की उपलब्धता न होने के चलते आवासीय बस्तियों के नजदीक आना पड़ रहा है।

दूसरा कारण श्री केदारनाथ यात्रा  बेलगाम उड़ रहे हेलिकॉप्टर के द्वारा लगातार उड़ान भरने से होने वाली अति तीव्र ध्वनि के कारण भी गुलदारों के द्वारा वह क्षेत्र छोड़ दिया गया हो और यह नजदीकी क्षेत्र होने के चलते यहां तक पहुंच गए हों।

तीसरा कारण- जंगलों में सियार प्रजाति की संख्यां अति न्यून या कहीं कहीं शून्य हो गयी है।

सियार जंगली सुवर के बच्चों और गुलदार के बच्चों को अपना निवाला बनाते। इसके चलते गुलदारों की संख्या क्षेत्र की केयरिंग कैपीसीटी सही बनी रहती।

गुलदारों की समस्या के समाधान का सबसे अच्छा समाधान यही है कि बाहरी क्षेत्र से लाकर सियारों को यहां छोड़ा जाए जिससे पारिस्थितिकीय तंत्र सुरक्षित रह सके क्योंकि 21 महीने में मादा गुलदार अमूमन 4 बच्चो को जन्म दे देती है।

यह समस्या गुलदारों को पिंजरे में पकड़ने से हल होने वाली नही है इसके दो उपाय हैं-

1- केयरिंग कैपिसिटी के हिसाब से अधिक गुलदारों को पकड़ कर  दूसरी जगह स्थान्तरित किया जाय।

2- अन्य स्थानों से सियारों को दुबारा से क्षेत्रों में छोड़ा जाए जिसके सकारात्मक परिणाम एक साल बाद देखने को मिलेंगे।

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