कुछ समय पहले बना स्कवर नही झेल पाया वाहनों का वजन

लोक निर्माण विभाग रुद्रप्रयाग की लापरवाही के चलते सड़क बना होल,
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 लोक निर्माण विभाग रुद्रप्रयाग की कार्यशैली किसी बड़ी दुर्घटना को आमंत्रण जैसे है।

कुछ समय पहले बना स्कवर नही झेल पाया वाहनों का वजन।

काम ऐसे होने चाहिए जिसमें लोगों की नजर पड़ते ही शरीर मे सनसनी दौड़ने लगे ओर जिंदगी मौत की हकीकत में आसानी से अंतर समझ आ जाये।

मयाली गुप्तकाशी मोटरमार्ग जो कि केदारनाथ की आपदा के समय यह मोटरसडक जीवन रेखा बनी थी पर विभागीय तकनीकी जानकारों की देखरेख में हुए तैला गावँ से 400 मीटर।  आगे बड़े मोड़ पर जहां से गंगा नगर जाने वाली सड़क से पहले की खड़ी चढ़ाई से ठीक पहले बने स्कवर के लेंटर निर्माणकार्य जो वाहनों का बोझ न झेल पाया विभागीय सम्बन्धित जेई की गाथा का बखान कर रहा है कि किसी उच्चकोटि के जूनियर इंजीनियर ने यह नमूना पेश किया है।

सबसे बड़ी हास्यास्पद बात यह है कि लोक निर्माण विभाग की दरें सभी विभागों के प्राक्लन तैयार होते हैं। लोक निर्माण विभाग के द्वारा तय की गई दरें ही उस क्षेत्र के कार्यों में होने वाले व्यय का स्पष्ट पता लगाते हैं कि प्रस्तावित कार्य का मूल्य कितना होगा।

यही से ध्यान देने वाली बात है कि लोक निर्माण विभाग सम्बन्धित क्षेत्र के कार्यों हेतु खर्च की जाने वाले तय धनराशि के बाद टेण्डर कोल किये जाते हैं ओर 40 फीसदी कम तक उस कार्य के लिए बोली लगाई जाती है। यही से खेला शुरू होता बचत का क्योंकि ठेकेदार समाज सेवा और दान पुण्य करके उस काम को करेगा नहीं कुछ न कुछ बचत करने के चलते ऐसे गढ्ढे बन जाते जो किसी दुर्घटना का कारण बनने में सहायक होते हैं।

यहां पर सवाल है कि-

1- जब किसी भी काम का प्राक्कलन के अनुसार टेण्डर होते तो कम से कम बोली लगाकर वह कार्य कैसे हो सकता है।

2- क्यो ऐसे कार्य करने वाले ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट नही किया जाता।

3- सम्बन्धित जेई से ऐसे कार्यों की वसूली की जाने का प्राविधान  है या नही।

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