उद्यान में स्वरोजगार दृढ़ निश्चय के बल पर

सफलता की कहानी- श्री पीताम्बर मोल्फा ग्राम प्रधान माणा
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 सफलता की कहानी - उद्यान में स्वरोजगार  दृढ़ निश्चय के बल पर॥



पर्वतीय अंचल में खेती कार्य जितना सरल लगता है, उतना ही दुष्कर व दुरूह प्रकृति का है। इसका कारण यहां की भौगोलिक परिस्थितियां व जोत का छोटा आकार, ढालदार ओर सीढ़ीनुमा खेती, सड़क मार्ग से दूरी, उत्पाद के विपणन में कठिनाई, उत्पाद का भंडारण एवं प्रसंस्करण के तकनीकी का अभाव है।जिससे उत्पाद के मूल्य संवर्धन के क्रियाकलापों का न हो पाने जैसे कारणों से खेती कार्य पर्वतीय क्षेत्रों में लाभदायक नहीं है। परन्तु जोखिम के साथ -साथ अवसर की पहचान करने से लाभदायक स्थिति में पहुंचा जा सकता है। कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने पहाड़ की खेती को लाभकर न मानने के मिथक को तोड़ा है।  छोटी जोत व अन्य उत्पाद- उत्पादन में विपरीत कारकों की पहचान करके उनके समाधान करने के तरीके ईजाद किये, जिसके कारण पूरे क्षेत्र को एक नई पहचान मिली। जो कि रूढ़िवादी खेती करने के लिए जाना जाता था। इसका उदाहरण व नजीर श्री पीताम्बर सिंह मोलफा पूर्व एवं वर्तमान ग्राम प्रधान हैं। 

  श्रीबदरीनाथ जी से 3 किलोमीटर आगे सीमांत गाँव माणा स्थित है, जो कि अपने धार्मिक व प्राकृतिक सौंदर्य के कारण विश्वविख्यात है। यहां पर पूर्व समय में पारम्परिक खेती जिसमें आलू व फाफर का उत्पादन किया जाता था और सामान्यतः किसानों को इन नकद फसलों की  बिक्री के समय अपनी लागत के बराबर भी  मूल्य नही मिल पाता था। अगले सत्र में फिर लाभ होगा कि आशा मन मे पाले हुए पुनः 6 माह बाद  इन्ही आलू व फाफर की काश्तकारी में यहां का किसान लग जाता था, क्योंकि वर्षभर में सिर्फ 6 माह ही यहां खेती की जाती है।


ग्राम सभा के पूर्व व वर्तमान ग्राम प्रधान श्री पीताम्बर सिंह मोलफा जी ने चारधाम यात्रा का प्रसिद्ध केंद्र श्रीबदरीनाथ जी के दर्शन हेतु आने वाले तीर्थ यात्री जो कि हर साल लाखों की संख्या में देश विदेश से यहां आते हैं। जिसके कारण श्री बद्रीनाथ में शाक-भाजी की जरूरत जो कि रामनगर-नजीबाबाद की मंडियों से पूरी की जाती थी। पर विचार करके कि यदि कुल खपत का 50 प्रतिशत हिस्सा भी गांव में उत्पादित किया जाए तो गाँव स्वावलम्बलन की ओर जाएगा और जीवकोपार्जन का नया स्रोत भी बन जायेगा। स्थानीय काश्तकारों की खेती जो उत्पादन की लागत भी नही देती थी को लाभ में पहुंचाया जा सकता है। रूढ़िवादी समाज के लोगों को आलू फाफर के स्थान पर नकद फसल उत्पादन के लिए प्रेरित करना आसान कार्य नही था , इसलिए स्वयं ही यह कार्य शुरू किया जिसमें राई, मूली, मेथी, शलजम, मटर, पत्तागोभी के साथ प्रयोग शुरू किया।  जिसे देख धीरे धीरे गाँव के सभी किसानों ने सब्जी उत्पादन का कार्य अपना लिया। इसके लिए श्री मोलफा जी द्वारा सभी किसानों को उन्नत प्रजाति के बीजों को उपलब्ध करवाया। वर्तमान में कुछ सब्जी खेत से ही बिक जाती है व कुछ कंडी में रखकर बदरीनाथ बाजार में उपलब्ध कराया जाती है। सब्जी उत्पादन का यह प्रयोग सफल रहा है। गांव में आर्थिक स्वावलम्बन के द्वार खुलता देख सभी लोगों ने सब्जी उत्पादन का कार्य प्रारंभ कर दिया है।

श्री मोलफा जी से वार्ता करने पर उनके द्वारा बताया गया कि आलू की फसल को ग्रेडिंग व उच्च गुणवत्ता में पैकेजिंग करके बाजार में बिक्री हेतु उतारा जाएगा, जिस पर की सभी लोगों की सहमति बनानी है व प्रसंस्करण की प्रक्रिया को अपनाकर उत्पाद के मूल्य संवर्धन पर कार्य किया जाना शेष है, जिसपर की रणनीति बनाकर कार्य किया जा रहा है। साथ ही श्रीबदरीनाथ जी  एवं निकटवर्ती मंदिरों में फूलों की मांग यात्रा काल में रहती है। जिसको पूरा करने के लिए खेतों के किनारों पर फूल की खेती के लिये किसानों को प्रोत्साहित करने की योजना बना रहे हैं। जिससे आलू का रकवा उत्पादन के साथ साथ आय वृद्धि भी सुनिश्चित होगी।
छोटी जोत व विषम भौगोलिक परिस्थितियों में भी उचित मार्गदर्शन व रणनीति बनाकर खेती करना लाभकारी हो सकता है। हम यदि अपने निकटवर्ती दुकान व ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में ताजा उत्पाद उत्पादित कर उपलब्ध करवाते हैं तो रामनगर व नजीबाबाद की मंडी से माल मंगवाने की आवश्यकता नही होगी। बस इसके लिए उत्पादन की निरन्तरता व उपलब्धता को सुनिश्चित करना होगा। वैसे भी पहाड़ी उत्पाद की मांग आपूर्ति से बहुत ज्यादा है। परिश्रम के साथ चलकर हम अपने क्षेत्र को जैविक उत्पादों के केंद्र के रूप में परिवर्तित कर सकते हैं, आवश्यकता है तो केवल सामूहिता के साथ एक दृढ़ संकल्प की।


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