पहाड़ी क्षेत्र की मुख्य फसल मण्डुवा को अब मिल रही पहचान। सरकार ने 4200 रूपये प्रति कुंतल पर खरीदी 3100 मीट्रिक टन फसल।
उत्तराखंड के किसानों से राज्य सरकार ने इस साल 3100 मीट्रिक टन मण्डुवा खरीदा।
सहकारी समितियों के माध्यम से की गयी मण्डुवा फसल की खरीद।
पहाड़ में भौगोलिक विषमता यहां के विकास को रोकने का सबसे प्रमुख कारण है पर प्रकृति के द्वारा अमूल्य धरोहरें भी पहाड़ को सौपीं गयी हैं जिसमें प्रमुख रूप से यहां होने वाली बेमौसमी सब्जी उत्पादन के साथ मोटे अनाज की फसलों का उत्पादन मुख्य रूप से पारम्परिक रूप से उत्पादित उत्पाद को सरकार के प्रयासों से अब जाकर पहचान मिलने लगी है जो की पहाड़ के किसानो के लिए बहुत अच्छी खबर है।
उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में छोटी जोत और जंगली जानवरों के द्वारा फसलों को नुकसान के साथ साथ आय अर्जन के साधन की निहायत कमी व स्वास्थ्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में समस्याओं का अम्बार लगा होने के चलते पलायन की मार झेल रहे पहाड़ कही आपदा का दंश झेलकर खाली हुए तो अधिकतर मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पहाड़ वीरान होते गए। पहाड़ों में अधिकतर पारम्परिक रूप से खेती किसानी की जाती रही है जिसमें मुख्य रूप से मोटा अनाज उत्पादन अधिकतर किया जाता है जिसका उपयोग वर्तमान समय में नगण्य होता गया और किसानो के द्वारा लगत के बारबर मूल्य न मिलने पर मोठे अनाज की फसलों का उत्पादन भी धीरे धीरे कम करना शुरू कर दिया था। फलस्वरूप पहाड़ी क्षेत्र का अधिकतर रकबा बंजर होता जा रहा है जिसका कारण पूर्ववर्ती सरकारों के द्वारा इस दिशा में कोई काम न किया जाना जिससे किसानों को लाभ मिल सके रहा है।
केंद्र और उत्तराखंड सरकार द्वारा अब मिलेट्स फसलों को बढ़ावा दिया जाना किसानों के चेहरे पर चमक ला रहा है और पिछले वर्ष व इस वर्ष लगातार मंडुए की खरीद सरकार के द्वारा किये जाने से किसान उत्साहित हैं और मोठे अनाज की मुख्य फसल मण्डुआ का रकबा इस वर्ष अपेक्षाकृत अधिक रहेगा। पिछले कुछ सालों में सरकार के द्वारा मिशन मोड में और पायलट प्रोजेक्ट व बाह्य सहायतित परियोजनाओं का संचालन किया गया जिसमें बिचौलियों के द्वारा अधिकर उत्पादों की खरीद की गयी और किसान को लाभ नहीं मिल पाया इसमें कई तरह की खामियां रही हैं जिसके लिए समय समय पर हिमालय की आवाज़ न्यूज पोर्टल के द्वारा आवाज उठायी गयी परिणामस्वरूप कुछ हालतों में चिरन्तर सुधार हुआ है जो कि पहाड़ के हितों के लिए उत्तराखंड की धामी सरकार के द्वारा किया गया एक अच्छा प्रयास है।
सरकार के द्वारा स्टेट मिलेट मिशन, उत्पादन बढ़ाने के साथ ही, मिलेट्स उत्पादों को अपनाने के लिए व्यापक प्रचार प्रसार, किसानों से खरीद से लेकर भंडारण तक की व्यवस्था की गयी। किसानों को बीज, खाद पर अस्सी प्रतिशत तक सब्सिडी दी गई पर यह अलग तथ्य है कि बीज सप्लाई कहां से हुई इसका आधार क्या था पर पिछले अंकों में विस्तार से बताया गया है इस पर भी सरकार को ध्यान देना होगा की पर्वतीय क्षेत्रों के लिए बीज सरकार के द्वारा खोले गए शोध संस्थानों व कृषि विश्वविद्यालयों से आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। अन्यथा पारम्परिक खेती वाले क्षेत्र में हायब्रिड बीज देने के क्या दुष्परिणाम होते हैं यह कोई भी बता सकता है।
उत्तराखंड सरकार के द्वारा 270 केद्रों के जरिए की गयी मण्डुवा फसल की खरीद-
दूर दराज के किसानों से मंडुआ खरीदने के लिए बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों और किसान उत्पादक संगठनों के सहयोग से संग्रह केंद्र स्थापित किए गए। 2020-21 में जहां इन केंद्रों की कुल संख्या 23 थी जो 2024-25 में बढ़कर 270 हो गई है। इन केद्रों के जरिए इस साल उत्तराखंड के किसानों से 3100.17 मीट्रिक टन, मंडुआ की खरीद की गई, इसके लिए किसानों को 42.46 प्रति किलो की दर से समर्थन मूल्य दिया गया। मंडुआ खरीद में सहयोग देने के लिए किसान संघों को 150 रुपए प्रति कुंतल और बहुउद्देशीय प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों को प्रति केंद्र 50 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि प्रदान की गयी व साथ ही सुनिश्चित किया गया कि केंद्रों का भुगतान 72 घंटे में कर दिया जाए।
2 वर्ष की अविधि में मण्डुवे के समर्थन मूल्य में 68 प्रतिशत का उछाल-
उत्तराखंड में 2021-22 में मण्डुवा का समर्थन मूल्य कुल 2500 प्रति कुंतल था, यह 2024-25 में 4200 प्रति कुंतल हो गया। इस तरह दो वर्ष के अंतराल में ही समर्थन मूल्य 68 प्रतिशत बढ़ जाना किसानों के लिए अच्छी खबर है जो की मण्डुवे की खेती को प्रोत्साहित करने का अच्छा कदम सरकार की तरफ से उठाया गया है और एक पहचान उत्तराखंड को मिली है।