डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद कुकसाल
राज्य में प्रसार एवं शोध संस्थानों का नहीं है आपसी तालमेल।
जलवायु के अनुरूप बीज तैयार करने का जिम्मा जिन संस्थानों को दिया गया था उनसे बीज न खरीद कर खुले बाजार से बीज खरीद कर किसानों की तो दुर्दशा हो गयी पर आय दुगनी किसकी हुई यह जांच कब होगी।
उत्तराखण्ड में पं० गोबिंद बल्लव पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर, वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली औद्यानिक विश्वविद्यालय भरसार, इनके उप केन्द्र, विभिन्न जनपदों में तेरह कृषि विज्ञान केन्द्र, विवेकानंद कृषि अनुसंधान संस्थान मटेला अल्मोड़ा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के दो केन्द्र निगलाट भवाली, मुक्तैश्वर रामगढ़ नैनीताल में हैं।
पर्वतीय क्षेत्रों में उद्यान विकास हेतु 1932 में ब्रिटिश काल में चौबटिया रानीखेत अल्मोड़ा में पर्वतीय फल शोध केंद्र तथा 1974 में चौबटिया फल शोध केन्द्र के अधीन पौड़ी गढ़वाल में श्रीनगर व कोटद्वार, चमोली में कोटियाल सैंण, टेहरी में सिमलासू, उत्तर काशी में डुंडा, देहरादून में ढकरानी व चकरौता, नैनीताल में ज्योलिकोट व रुद्रपुर अल्मोड़ा में मटेला ,पिथौरागढ़ उप अनुसंधान केन्द्रौं की स्थापना की गई। इन शोध केन्द्रौं में शीतोष्ण समशीतोष्ण फलौ सब्जियों, मसाला फसलौं पर किसानों की समस्याओं के निदान हेतु शोध कार्य किये जाते रहे हैं। सरकारों की उपेक्षा के कारण जो आज निष्क्रिय पड़े हैं।यदि सरकारें इन विश्वविद्यालयों व अनुसंधान केंद्रों का सदुपयोग करती तो इस पहाड़ी राज्य में कृषि उद्यान विकास को गति मिलती।
हिमाचल प्रदेश में अधिक तर फल पौध, सब्जी बीज, अदरक-लहसुन बीज का उत्पादन राज्य के डा० वाइ एस परमार औद्यानिक विश्वविद्यालय नौणी एवं कृषि विज्ञान केन्दों में ही होता है। उत्तराखंड में इन विश्वविद्यालयों, शोध केन्द्रों एवं कृषि विज्ञान केन्दों का राज्य सरकार ने कभी भी सदुपयोग नहीं किया।
सरकारों की हकीकत यह है कि विकास योजनाओं का सम्पूर्ण बजट कार्य दाई विभाग कृषि एवं उद्यान विभाग को आवंटित होता है। कृषि एवं उद्यान विभाग भ्रष्टाचार में संलिप्त होने के कारण इन विश्वविद्यालयों एवं शोध संस्थानों से न तो कभी सब्जी बीज,फल पौध क्रय किया जाता रहा न ही इनसे प्रशिक्षण के कार्य क्रम चलवाये जाते हैं। क्योंकि पूरा बजट कार्य दाई विभागों को ही आंवटित होता है उनका एक सूत्री कार्यक्रम है कैसे आवंटित बजट से अधिक से अधिक कमिशन वसूला जाय।
राज्य बनने के बाद किसी भी सरकार ने इन संस्थानों से कार्य लेने की कोशिश नहीं की क्योंकि इन संस्थानों से कमिशन तो मिल नहीं सकता। इन संस्थानों से राज्य सरकार द्वारा कार्य न लिए जाने से ये संस्थान धीरे धीरे निष्क्रिय होते चले गये ।