पिरूल बनेगा ऊर्जा और आजीविका का स्रोत

चीड़ की पत्तियों के उपयोग, पिरूल कोयला,
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 पिरूल बनेगा ऊर्जा और आजीविका का स्रोत।

सिंगोली भटवाड़ी केट प्लान योजना के तहत पिरूल कोयला निर्माण प्रशिक्षण आजीविका संवर्धन कार्यक्रम के तहत आयोजित।

पहाड़ों में जितनी समस्याएं हैं वो समस्या न किसी हद तक कम करने के लिए हमे अपने आसपास के संसाधनों का उपयोग उनके मूल्यों में संवर्धन करके किया जा सकता है जिससे आजीविका के स्रोत बढ़ें ओर रोजगार के अवसर बढ़े जिससे पलायन को कम करके रिवर्स पलायन के सपने को पंख लग सकें।

पहाड़ो में सबसे अधिक समस्या रोजगार की है जिसे सिर्फ धार्मिक पर्यटन और तीर्थाटन से  से पूरा नही किया जा सकता है। अपितु यहां कुछ ऐसे प्रयास करने होंगे जिनसे रोजगार के नए आयाम खुले ओर कच्चे माल की उपलब्धता आसानी से हो को ध्यान में रखकर यदि योजनाओं को प्रारम्भ किया जाए तो आशातीत परिणाम देखने को मिलेंगे।

रुद्रप्रयाग वन प्रभाग द्वारा संचालित सिंगोली भटवाड़ी केट प्लान योजना के तहत आजीविका प्रशिक्षण कार्यक्रम में पिरूल कोयला निर्माण हेतु किमाणा गाव में आज प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्रशिक्षक श्री सतीश भट्ट द्वारा उपस्थित प्रशिक्षणार्थियों को बताया गया कि हम जब अपनी कमाई का कोई हिस्सा बचा देते हैं या हमारे पास आय अर्जन के मुख्य स्रोत के साथ कोई ऐसे स्रोत जुड़ जाता है जिससे चिरन्तर कोई छोटी ही राशि हो मिलना शुरू हो जाती है तो जीवन स्तर मे आने वाले सुधार से हमारी खरीद शक्ति बढ़ जाती है जिससे आसपास के अन्य भी इस प्रयास से लाभान्वित होते हैं जिसके दीर्घकालिक परिणाम होते हैं।

   हम अपनी अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए यदि हम उन संसाधनों का प्रयोग करते हैं जिन्हें प्रकृति ने हमे उपहार स्वरूप दिया है तो उत्पादन की लागत कम होनी स्वभाविक है और पिरूल ऐसी वन संपदा है जिसका प्रयोग ऊर्जा सरंक्षण के लिए बहुत आसान प्रक्रिया अपनाकर किया जा सकता है। चीड़ की पत्तियां जंगलों के लिए अभिशाप है यह अत्यंत ज्वलनशील होने के चलते जंगलों को नुकसान पहुंचाती हैं यदि हम इन पत्तियों का उपयोग कोयला बनाने में करते हैं तो अपनी ऊर्जा की जरूरतों के साथ साथ एलपीजी की खपत को बहुत हद तक कम कर सकते हैं।

भगवान श्री केदारनाथ ओर श्री बद्रीनाथ यात्रा मार्ग  पर होटल में ईंधन के रूप में एलपीजी से अच्छा विकल्प पिरूल के कोयले हो सकते हैं यह बहुत अच्छा बाजार बन सकता है जो हमारी विपणन में होने वाली  समस्याओं का बहुत अच्छा समाधान है। हम इस कार्य को रोजगार साधन के रूप प्रयोग कर प्रारम्भ करते हैं सफलता सुनिश्चित है।

इस मौके पर उप वनप्रभागीय अधिकारी डॉ0 दिवाकर पंत ने अपने सम्बोधन में कहा कि  पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए सरकार के प्रयास तबतक नही दिखेंगे जबतक हम अपने स्वरोजागर के लिए स्वयं की इच्छाशक्ति से काम करना शुरू न कर दें। पलायन को रोकने के लिए पिरूल से बने उत्पाद आजीविका संवर्धन हेतु बहुत अच्छा साधन बन सकते हैं और इससे जंगलों की आग भी बचेगी जिससे पर्यावरण की रक्षा के साथ साथ एक मिसाल पिरूल उत्पाद बनेगा

 पहाड़ो में सीमित संसाधनों से असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे की जा सकती है को महसूस करना है तो अमूमन यही उदाहरण देखने को मिलता है कि पहाड़ की साधारण जीवन शैली में भौतिकवादिता का नामोनिशान न होना और जो मिल रहा उसी में संतुष्ट होकर जीवनयापन करने की आदतों के आत्मसाथ होने के चलते यहां के परिवेश में अपनी जरूरत से ज्यादा उत्पादन करने की होड़ नही रही है जिससे उत्पाद को बाजार में उतारा जा सके। 21 वीं सदी में अब जाकर समूहों/सहकारिताओं/एफ़पीओ से जुड़ने पर कुछ समझ बाजार के प्रति पर्वतीय क्षेत्रों में बढ़ी है जो कि बहुत अच्छी शुरुवात है।

इस मौके पर उप प्रभागीय वनाधिकारी डॉ0 दिवाकर पंत, वन क्षेत्राधिकारी श्री हरीश थपलियाल, वन दरोगा श्री अनूप रावत, पुष्कर सिंह कठैत, वन सरपंच आदि उपस्थित रहे।



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