नगर निकाय के चुनाव राष्ट्रीय पार्टियों के लिए बन रहे प्रतिष्ठा का प्रश्न।
लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाईयों को भी राजनैतिक अखाड़ा बनाकर मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने का काम जारी।
नगर निकाय के चुनावी बिगुल बजते ही अखाड़ों में बदल गयी है नगर निकाय चुनावी क्षेत्र और मुँह ताकत्ते रह गए पर्वतीय क्षेत्र के मुख्य मुद्दे।पर्वतीय क्षेत्रों में गठित नगर पालिकाएं ओर नगर पँचायत के वार्ड सदस्य/पार्षद तक के टिकट राष्ट्रीय पार्टियां घोषित कर रही हैं तो स्थानीय मुद्दों पर नजर किसकी रहनी। आखिर राष्ट्रीय मुद्दों और क्षेत्र के मुद्दों में जमीन आसमान का अंतर होता है।पर्वतीय क्षेत्रों में गठित नगर पालिकाएं ओर नगर पँचायत के वार्ड सदस्य/पार्षद तक के टिकट राष्ट्रीय पार्टियां घोषित कर रही हैं तो स्थानीय मुद्दों पर नजर किसकी रहनी। आखिर राष्ट्रीय मुद्दों और क्षेत्र के मुद्दों में जमीन आसमान का अंतर होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में गठित नगर पालिकाएं ओर नगर पँचायत के वार्ड सदस्य/पार्षद तक के टिकट राष्ट्रीय पार्टियां घोषित कर रही हैं तो स्थानीय मुद्दों पर नजर किसकी रहनी। आखिर राष्ट्रीय मुद्दों और क्षेत्र के मुद्दों में जमीन आसमान का अंतर होता है।
कुछ उभरते नेता जिनमे से कुछ अच्छे विचार के हैं और ये उत्तराखण्ड के भविष्य के लिए अच्छा भी है। यही पर यह सवाल भी उठता है कि राजनीति को चमकाने की जिद्द में पूर्व समय मे चुनाव के वक्त की घटनाएं भी बरबस याद आती है तो लगता है ये छलावा नही तो ओर क्या है।
स्थानीय लोगों से बात करने पर हर जुबां यही कहती जब रोजगार ही नही तो इनके खर्चे पूरे करने वाले कौन लोग हैं। राजनीति में कोई मानदेय तो मिलता नही जबकि आम आदमी को परिवार पालना मुश्किल हो रहा और ये स्वघोषित नेता आखिर क्यों और किसलिये।
क्या कुछ लोग हमारे भविष्य का निर्धारण कर रहे हैं जिनको सिर्फ अपना हित देखना है क्यो इनके बहकावे में आ रहे आम आदमी जिनके घर कल तक कच्चे ओर टिन के थे वो आज स्टार। सुविधाओ वाले कारोबार के मालिक बन बेठे सिर्फ राजनीति में आने से आखिर इस राजनीति में ऐसे क्या बूटी है जो सपने को हकिकत में बदल देती है।
नगर निकाय के चुनावों को प्रतिष्ठा से जोड़ने की जिद्द कहीं न कहीं स्थानीय मुद्दों को नजरअंदाज करेगी और जिस उद्देश्य से लोकतंत्र की छोटी सी इकाईयों की स्थापना की गई है उन उद्देश्यों की पूर्ति न होकर बड़े दलों के उद्देश्यों की पूर्ति होगी।