वन चेतना केंद्र जखोली में लिविंग विद लेपर्ड प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

लिविंग विद लेपर्ड कार्यक्रम क्या है,
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 वन्य जीव सहजीविता कैसे सम्भव हो पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन।

मानव वन्य जीव के संघर्ष की घटनाओं में जिसमें मुख्यतः लेपर्ड से होने वाली घटनाओं को कम से कम कैसे किया जा सके पर वन चेतना केंद्र जखोली में प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन।

पहाड़ों में मानव वन्य जीव के संघर्ष को यदि देखें तो इसका जन श्रुतियों से लेकर ओर वर्तमान तक सदैव वन्य जीवों के लगातार आक्रमण या नुकसान के बाद भी पहाड़ का आदमी जिंदा रहा जिसे जिन्दादिली कहे तो अतिशयोक्ति नही होगी। जनपद रुद्रप्रयाग की बात करें तो रुद्रप्रयाग का आदमखोर बाघ मारने की कहानियां जो हकीकत है जिसमें  उस आदमखोर बाघ ने सन् 1918-26 (आठ साल) के दौरान रुद्रप्रयाग क्षेत्र के 125 से अधिक लोगों मारा था और आखिरकार 1 मई 1926 की रात को जिम कॉर्बेट की बंदूक से निकली गोली ने उस बाघ का अंत किया था। श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी के द्वारा लिखे गीत नथुली गलेक त्वे सोना का मेडल दयोला...... उत्तराखण्ड मा बाघ लग्यूँ बाघ मार दे गीत जन जन को याद है इसका कारण उस दर्द को हर किसी ने करीब से देखा है। पहाड़ का यह दर्द घाव न बने के लिए आज 24/1/2025 को रुद्रप्रयाग वन प्रभाग के बन चेतना केंद्र जखोली में लिविंग विद लेपर्ड प्रोग्राम के तहत उत्तरी और दक्षिणी जखोली के फील्ड स्टाफ को प्रशिक्षण दिया गया। 

जिसमें वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट श्री विवेक पगारे द्वारा फील्ड कर्मियों को लेपर्ड के रेस्क्यू संबंधी टेक्निकल और मैनेजमेंट के बारीकियों के संबंध में जानकारी दी गई। इस कार्यक्रम में उपप्रभागीय वनाधिकारी जखोली डॉ दिवाकर पंत और वन क्षेत्राधिकारी दक्षिणी जखोली  हरीश थपलियाल, उप वन क्षेत्राधिकारी किशोर नैनवाल व वन दरोगा तथा वन रक्षकों की उपस्थिति रही।

लिविंग विद लेपर्ड कार्यक्रम क्या है-

लिविंग विद लेपर्ड उत्तराखंड वन विभाग द्वारा लोगों को लेपर्ड के साथ सहजीविता के बारे में जानकारी देना और प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम है। जिससे मानव वन्य जीव संघर्ष की घटनाओं को नियंत्रित करने में जनता का सहयोग प्राप्त हो सके।

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