आत्मविश्वास को ढाल बना के जी रहा है जिंदगी प्रीतम सिंह

श्री प्रमोद सिंह रावत समाज के लिए आशा की एक किरण,
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  परिस्थियों के आगे बेबस न होकर आत्मविश्वास को ढाल बना के जी रहा है जिंदगी प्रीतम सिंह। 

पहाड़ जैसी समस्याओं को भी रेत की ढेर बनाकर अपने आत्मविश्वास से उन युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनकर जिंदगी जी रहा है जो उच्च शिक्षा का आवरण ओढ़कर अपने कमरे तक सीमित बन गए हैं। 

पर्वतीय अंचल में प्रकृति का श्रृंगार जिस तरह पर्यटकों का मन मोह लेता है  और पर्यटकों के मन में होता की काश हमारा भी यहां छोटा घर होता कितने आनंदमय जीवन जीते। हकीकत यहां के रहने वालों से पूछो की कैसे जीवटता के साथ अपना जीवनयापन किया जाता है। खेती कार्य जितना सरल लगता है, उतना ही दुष्कर व दुरूह प्रकृति का है। इसका कारण यहां की भौगोलिक परिस्थितियां व जोत का छोटा आकार, ढालदार ओर सीढ़ीनुमा खेती, सड़क मार्ग से दूरी, उत्पाद के विपणन में कठिनाई, उत्पाद का भंडारण एवं प्रसंस्करण के तकनीकी का अभाव है। जिससे उत्पाद के मूल्य संवर्धन के क्रियाकलापों का न हो पाने जैसे कारणों से खेती कार्य पर्वतीय क्षेत्रों में लाभदायक नहीं है। परन्तु जोखिम के साथ -साथ अवसर की पहचान करने से लाभदायक स्थिति में पहुंचा जा सकता है। कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने पहाड़ की खेती को लाभकर न मानने के मिथक को तोड़ा है।  छोटी जोत व अन्य उत्पाद- उत्पादन में विपरीत कारकों की पहचान करके उनके समाधान करने के तरीके ईजाद किये, जिसके कारण पूरे क्षेत्र को एक नई पहचान मिली।


पहाड़ में पारम्परिक रूप से काम करने की एक बानगी रही है जो कभी व्यावसायिक सोच नहीं बन पायी और यह वंशानुगत लक्षण जैसे बन गया है की पहाड़ में अधिकतर कार्यों को छोटा समझकर नहीं किया जाता उसे अपने सम्मान के विपरीत समझकर न किया जाना कई शिक्षित युवाओं को अपने कमरे तक सीमित कर गया है जो युवाओं को कुण्ठित मानसिकता और कई युवाओं को नशे का आदि बनाने में सहायक हुआ है जिन्होंने उच्च शिक्षित होने का आवरण ओढ़कर खुद को स्वयं तक सिमित कर लिया है अब यह दोष किसका है उन माँ पिताजी या समाज का या उन भाग्य विधाताओं की अनदेखी का जिन्होंने आंकड़ों को बढ़ाया है पर जमीन की हकीकत कुछ और है को नजरअंदाज करके युवाओं के साथ ऐसे अन्याय किया है। 

ऐसे ही मिथक जब किसी उच्च शिक्षित व्यक्ति के द्वारा टूटते हैं तो समाज के लिए आशा की एक किरण बनते हैं।  इन्ही युवाओं में एक युवा जो कि जनपद रुद्रप्रयाग विकासखंड उखीमठ के भीरी गावं का प्रमोद सिंह रावत है जो कि चाय की एक छोटी सी दुकान चलाकर अपनी आजीविका चला रहे हैं। श्री प्रमोद सिंह रावत के पिताजी गावं में रहकर टेलर का काम करते है जो की गावं क्षेत्र में बमुश्किल परिवार पालने के लिए एक रोजगार का साधन है। पिताजी को अपने आदर्श मानने वाले प्रमोद सिंह रावत 3 बहिन और 2 भाईयों हैं 2 बहिनों का विवाह हो चूका है। 

श्री प्रमोद सिंह रावत उम्र में भले छोटे हों पर उनके संस्कार और विचार किसी कुलीन परिवार के हैं और आत्मविश्वास देखने लायक है वह बताते हैं कि  मेने 2022 में फार्मेसी देहरादून से की है और नवोदय विद्यालय जाखधार से इंटरमीडियट में विद्यालय में प्रथम स्थान पर रहा।  नियति की मार से रोजगार न होने के चलते मेने ये छोटा सा होटल शुरू किया है जो कि हम दोनों भाई मिलकर चलाते हैं और अपनी आजीविका को चला रहें हैं। उनका कहना है की उच्च शिक्षित होने का मतलब अपने कमरे तक सीमित रहना नहीं होता बल्कि अपने अनुभव के सहारे पर छोटे छोटे एंटरप्रिन्योर शुरू करके भी रोजगार कर सकते हैं जो कि बेरोजगारी की कुण्ठा में जीने से अच्छा है। 

प्रमोद सिंह बताते हैं कि  मेने पहले भीरी डमार सड़क के नजदीक केदारनाथ मार्ग पर एक कच्ची झोपडी बनाकर चाय और खाना बनाने का काम शुरू किया था जिसे प्रशासन के द्वारा हटाया गया और फिर मेने यहां पर शुरू किया है अब देखना यह है की प्रशासन हटाता है या बेरोजगारों को रोजगार देने के लिए इनकी छोटी दुकानों में वेल्यू एड करके इनकी आजीविका बढ़ाता है। 

ध्यान तब ऐसी बातों पर जाता है जब केदारनाथ मार्ग पर जिला प्रशासन खुद छोटे स्टाल बनाकर आँचल जैसे बड़े ब्रांड को दुकान आंवटित कर देता है जो की बड़ा नाम है और जो ऐसे लड़के जो उच्च शिक्षित होने के बाद भी कुछ करने का जज्बा रखते हैं उन्हें अनदेखा किया जाता है।  चुनाव आएंगे और जाएंगे सड़क बिजली पानी के मुद्दे हमेशा ही रहेंगे पर रोजगार के नाम पर कबतक युवा आसमान को ताकतें रहेंगे इसका जबाब शायद ही किसी उत्तरदायी के पास होगा। 

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