मिथक टूट गया - आखिर भाजपा के संगठन ने बेहतरीन प्रदर्शन कर केदारनाथ उपचुनाव में जीत हासिल की

केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने जीती केदारनाथ सीट,
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 हिमालय की आवाज़

मिथक टूट गया - आखिर भाजपा के संगठन ने बेहतरीन प्रदर्शन कर केदारनाथ उपचुनाव में जीत हासिल की। 

क्यों विपक्ष जिन मुद्दों पर जनता के सामने गया उन मुद्दों पर जनता ने सहमति नहीं दी। 

क्यों त्रिभुवन चौहान जो राजनीति का नौसिखिया युवा अपना दमदार प्रदर्शन करके अच्छा विपक्ष बना। 

क्यों उत्तराखंड क्रांतिदल को इतने कम वोट पड़े जो की आंदोलन से निकली पार्टी थी और एक समय इस पार्टी का वर्चस्व उत्तराखंड के हर आदमी के जुबान पर इस पार्टी का नाम होने से दिखता था। 

राजनीति का मतलब ही जो हो नहीं सकता उसे करना है। असम्भव को सम्भव कैसे बनाया जा सकता है की कल्पना यदि कोई साकार करता है तो वह जमीन से जुड़ा कार्यकर्ता होता है जो झंडे डण्डे को अपना सर्वस्व समझकर पार्टी या प्रत्याशी के लिए अपना बहुमूल्य समय और अपने आप से ज्यादा विश्वास अपने प्रत्याशी पर करता है।  जब कार्यकर्ता का प्रत्याशी जीत जाता है तो उसे वह अपनी जीत मानता है उस समय आत्मा कितनी तृप्त होती है यह उन कार्यकर्ताओं के चेहरे की चमक से स्पष्ट दिखाई देता है। केदारनाथ विधानसभा उप चुनाव में भाजपा की जीत में उन कार्यकर्ताओं का योगदान सबसे ज्यादा रहा जिन्होंने व्यवस्थाएं बनाई और अपने प्रत्याशी के पक्ष में मतदाता का रुझान बनाया ऐसे संगठन के प्रमुख को साधुवाद जिन्होंने पूर्व में टिकट वितरण के समय उठे सवाल जिसमें भितरघात और प्रत्याशी के विपक्ष में चुनाव लड़ने जैसे अहम मुद्दों पर मजबूत संगठन का परिचय दिया और सभी हवा जो विपरीत थी उन हवाओं को अपने पक्ष में किया। 

भाजपा के लिए 2027 का चुनाव अधिक चुनोतिपूर्ण होगा क्योंकि इस बार मुख्यमंत्री धामी के द्वारा जो घोषणाएं क्षेत्र के लिए की गई हैं वह योजनाएं शुरू होने और खत्म होने तक 2027 का चुनाव आएगा फिर विपक्ष को अधिक मुद्दे मिल जाएंगे जिनका जबाब काम को धरातल पर करके ही दिया जा सकता है।

क्यों विपक्ष जिन मुद्दों पर जनता के सामने गया उन मुद्दों पर जनता ने सहमति नहीं दी-

मजबूत विपक्ष जनता की आवाज़ होती है जो कि मुख्य विपक्षी पार्टी होने के नाते कांग्रेस का दायित्व था जनता की आवाज़ बनना पर नहीं बन पायी इसके मुख्य कारण को देखें तो कांग्रेस के प्रत्याशी मनोज रावत स्वयं में बहुत अच्छे मुद्दों को उठाते हैं और उनकी राजनैतिक समझ के आगे सारे प्रत्याशी 19 ही थे पर संगठन की कमजोर रणनीति और जनता के साथ जुड़ाव का न के बराबर होना रहा है।  आमजन से जुड़ाव के लिए धरना प्रदर्शन और जनहित के मुद्दों पर आक्रामक होकर पक्ष के समक्ष अपना विरोध दर्ज करने से ही होता है जिसमें कांग्रेस पार्टी का संगठन कमजोर रहा है। 

क्यों त्रिभुवन चौहान जो राजनीति का नौसिखिया युवा अपना दमदार प्रदर्शन करके अच्छा विपक्ष बना-

त्रिभुवन चौहान जिन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा ओर उच्च कोटि का प्रदर्शन किया जिसकी कल्पना राजनीति की समझ वालों को भी इतना यकीन नही था। आखिर इस दमदार प्रदर्शन के पीछे का कारण क्या रहा- 

मुख्य रूप से त्रिभुवन सिंह चौहान द्वारा उन मुद्दों को उठाया गया जो हकीकत में आमजन के दर्द का कारण थे। उन मुद्दों को मंच दिया जो मुद्दे मुख्यधारा की राजनीति वालों के लिए अपृश्य थे क्योंकि तुष्टीकरण से वोट बैंक खिसकने का डर और सीमित क्षेत्र के मुद्दे थे जो इतना प्रभावशाली क्षेत्र नही था कि वहां के मुद्दे मंच पर न आने से कोई जीत हार का कारण बनता यही विडम्बना है कि बून्द बून्द से सागर भरता है और गूढ़ समझ वाले राजनीति के जानकार इन मुद्दों को अनदेखा कर गए जिससे पिछले मुकाबले इस बार  सबसे कम खर्च करके चुनाव में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करने से युवाओं में एक आशा जगी है जो भविष्य के लिए सत्ता पक्ष के लिए चुनोतियाँ का कारण बनेगा।

क्यों उत्तराखंड क्रांतिदल को इतने कम वोट पड़े जो की आंदोलन से निकली पार्टी थी -

उत्तराखंड क्रांति दल की आपसी फूट और बिना किसी ठोस रणनीति के चुनाव में उतरने से चुनाव निशान तक गवां चुकी यूकेडी 1988 में श्री इंद्रमणि बडोनी जी ने उत्तराखंड क्रांति दल के बैनर तले 105 दिनों की पदयात्रा की। यह पदयात्रा पिथौरागढ़ के तवाघाट से देहरादून तक चली। उन्होंने गांव में घर-घर जाकर लोगों को अलग राज्य के फायदे बताए। 1992 में उन्होंने बागेश्वर में मकर संक्रांति के दिन गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी घोषित किया जो कि आमजन के मन में अपना मुद्दा है और इसके लिए लड़ना है की भावना को जागृत कर उत्तराखंड क्रांति दल को मजबूत क्षेत्रीय दल बनाया था जो आपसी फुट के चलते 2022 में हुए चुनाव में 01 फीसदी ही वोट पाने के चलते अपना चुनाव निशान कुर्सी को ही गवां बैठा। 

जबकि इस बार यूकेडी के द्वारा अच्छे प्रत्याशी को उतारा गया था पर संगठन की कमजोरी और जो यूकेडी में है भी वह आंदोलनकारी के नाम से पेंशन लेकर संगठन के लिए कितना करते हैं यह विचारणीय प्रश्न ही नही यक्ष प्रश्न भी है।


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