पुरोला क्षेत्र में धारा 144 के विरोध में बाजार बन्द।
धामी की धमक के आगे नही चली उपद्रवियों की, कुशल प्रशासक का उदाहरण धामी ने अपनी धमक दिखा कर दिया।
सवाल उठता है कि राजनैतिक महत्वाकांक्षा तब क्यों जगती है जब प्रशासन अपने हिसाब से मामले को देखने लगता है उससे पहले या बाद में क्यों नहीं।
उत्तराखण्ड के सुदूर क्षेत्र में हुई घटना पर समुदाय के रहनुमाओं द्वारा दिये गए बयान से आपसी सौहार्द बिगड़ने की पूरी गुंजाइश थी और इन धर्म के ठेकेदारों द्वारा कहना कि पलायन कश्मीर की तरह हो रहा है यह ज्याजती हो रही तो इनके बयान कहीं न कहीं पहाड़ के सौहार्द को बिगाड़ने वाले हैं। हिमालय की आवाज न्यूज पोर्टल की अपील है कि प्रशासन का सहयोग करें प्रशासन अपना काम हम सबकी सुरक्षा को देखते हुए कर रहा है।
उत्तरकाशी पुरोला कस्बे में चल रही आपसी मनमुटाव चलते सड़कों पर प्रदर्शन और एक वर्ग का पुरोला छोड़कर जाने पर तरह तरह की बातें की जा रही हैं। आज 15 जून को हिन्दू वादी संगठनों द्वारा महापंचायत का आयोजन इस मामले पर करने वाले थे वह आज स्थगित कर ली गयी है।
इस महापंचायत के खिलाफ दो पक्षों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जल्द सुनवाई से इनकार करते हुए तल्ख टिप्पणी की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार का मसला है। आप सुप्रीम कोर्ट क्यों आ गए। आपको हाईकोर्ट जाना चाहिए। आप हाईकोर्ट जाइये। कोर्ट ने आगे कहा कि आपको प्रशासन पर भरोसा क्यों नहीं है ? आपको क्यों लगता है कि प्रशासन इस पर कोई कार्रवाई नहीं करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इस मामले में हाइकोर्ट जाने की सलाह दी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका को सुप्रीम कोर्ट से वापस लिया। इस मामले में आज हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है।
महापंचायत स्थगित होने के बाद भी बाजार बंद का निर्णय व्यापारियों द्वारा ली गयी है जो घटना के विरोध में बाजार बंद करने का निर्णय है। एतिहातन प्रशासन द्वारा पुरोला क्षेत्र में 14 जून को लागू कर दी गई थी धारा 144 ।
यमुना घाटी के मुख्य नगर इकाईयों द्वारा कल ही बंद का एलान कल कर किया गया था। बन्द के ऐलान के बाद घाटी के पुरोला, नौगांव, बरनीगाड और बडकोट बाजार बंद होने का दिख असर।प्रशासन द्वारा पुरोला नगर क्षेत्र में धारा 144 लगाने के विरोध में बाजार बंद का व्यापारियों ने लिया है निर्णय।
सबसे बड़ा सवाल है कि घटना का विरोध होना चाहिए यह हमारा अधिकार है और सामाजिक ताने बाने को मजबूत रखने के लिए आवश्यक है।
पर जब इस मामले पर प्रशासन अपनी तरफ से कार्यवाही कर रहा है और अपील कर रहा है कि शांति व्यबस्था बनाये रखने में सहयोग दें तो हमे सहयोग देना चाहिए।
दूसरी बात जो लोग यह कह रहे हैं कि पुरोला से पलायन कश्मीर की याद दिला रहा है उनके लिए सवाल है कि यहां पर किसी के साथ मारपीट नही की गई है लोगों ने विरोध किया लेकिन कानून को नही तोड़ा किसी के प्रतिष्ठानों को तोड़ा नही गया, न अभद्रता कश्मीर की तरह की गई।
प्रशासन अपना काम करेगा इस मामले में धामी के राजनैतिक जीवन को तय करेगा और धामी ने जिस तरह से निर्णय लिया है वह स्वागत योग्य है।