क्या उत्तरप्रदेश में अपराधियों के दिन समाप्त होने वाले हैं

क्या उत्तरप्रदेश में अपराधियों के दिन समाप्त होने वाले हैं, बाबा जी के बुल्डोजर कार्यवाही के बाद एक धाकड़ हो सकता है बाबा जी की टीम में शामिल।
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 क्या उत्तरप्रदेश में अपराधियों के दिन समाप्त होने वाले हैं।

बाबा जी के बुल्डोजर कार्यवाही के बाद एक धाकड़ हो सकता है बाबा जी की टीम में शामिल।

जब सत्ता भी परिस्थिति के साथ थी ओर माफियाओं की मर्जी के बिना जनता सांस नही ले पाती थी।

ऐसे समय पर एक जाबांज ने नामी 4 माफियाओं की टांगों की जो सिकाई की थी उससे लगा था कि कोई तो है।

उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में 80 के दौर में 4 माफिया सरगनाओं का सिक्का ही नही तूती बोलती थी। इन माफियाओं के खोफ का ये हिसाब था कि सरकारी ठेकों से लेकर नामचीन स्कूलों में बच्चों के प्रवेश तक की प्रक्रिया मे उन माफिया सरगनाओं का दखल निर्णायक होता था। इनकी जुबान से निकला हर शब्द उस इलाके का निर्णायक शब्द होता था और सत्ता के गलियारों में इनकी पकड़ इतनी मजबूत थी की कोई इनके खिलाफ बोलने वाला नही था।

पहले यूपी में समय समय पर  बाहुबली माफिया सरगनाओं के बीच अपने वर्चस्व को लेकर होनेवाली ख़ूनी गैंगवार से राजधानी की सड़कें जब तब लहूलुहान होती रहने की घटनाएं आम थी अपने वर्चस्व के लिए कितनों का खून बहा उसका कोई हिसाब नही।

80 के दशक में बाहुबली कहें या माफिया इन चारों के माफ़ियातन्त्र के तार गोरखपुर से गाजियाबाद तक फैले हुए थे।

सबसे बड़ी बात यह थी कि सब माफियाओं के राजनैतिक आका अपने अपने थे। इन माफियाओं के राजनीतिक रसूख के चलते इनके विपक्ष में कोई खड़ा होने को आसानी से तैयार नही होता था। 

दबंगई का आलम यह था कि जनता उनकी दबंगई और दादागिरी के भय में ही सांस लेने को विवश होती थी। तब सबने यह मान लिया गया था कि चारों माफिया अपराजेय हैं और कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

कहतें हैं देर है पर अंधेर नही ऐसे समय पर एक तेज तर्रार ईमानदार दलित युवा ने राजधानी के पुलिस अधीक्षक की कमान संभाली ओर चारों माफियाओं जिनके भय का आलम पहले ही बताया जा चुका के गुर्गों को न पकड़ कर सीधे माफियाओं  सरगनाओं पर ही काल बनकर टूट पड़ा। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सिपाहियों के बजाय स्वयं अपने हाथ मे बेत लेकर उन माफिया सरगनाओं की जबरदस्त सार्वजनिक पिटाई की थी कि चारों को टांगों पर खड़ा रहने लायक नही छोड़ा जिसमें दो की तो दोनों टांगे तोड़ दी थी और दो को महीनों अपनी टांगों के लिए सिंकाई का सहारा लेना पड़ा था।

ऐसे खोफ बनाया पुलिस अधीक्षक ने माफियाओं के दिलो दिमाग पर की उनके गुर्गे राजधानी से भूमिगत हो गए थे जिसमें अधिकांश तो एनकाउंटरों का शिकार बनकर परलोक की यात्रा पर चल दिये थे। यह कार्यवाही होने के बाद जनता में  उम्मीद जगी ओर माफियाओं के खिलाफ बोलने का साहस जुटा पाई। जिसके चलते राजधानी में  लगभग डेढ़ दशक से चल रहे माफियाराज की चूलें कुछ ही समय में ही टूट गयी थी। माफियाओं के दिल में कितना खोफ इस जांबाज अफसर का था  इसकी बानिगी माफियाओं की सार्वजनिक पिटायी के बाद अपनी गतिविधियों को रोक कर शान्त रहने से लगता है।


बाद में वो यूपी के DGP भी बने ओर आम नागरिक ये मानता है कि मायावती के मुख्यमंत्रित्व काल में DGP कोई भी रहा हो लेकिन प्रदेश की कानून व्यवस्था की वास्तविक बागडोर अपने सेवाकाल के दौरान अकेले और टीम के साथ मिलकर 100 से ज्यादा बदमाशों का एनकाउंटर कर चुके बृजलाल ही सम्भालते थे। यही खूबी उन्हें राजधानी के लोगों के मन मे एक अलग ईमानदार अधिकारी की छवि लिए सबकी जुबान पर उनका नाम लेकर ओर माफिया तंत्र की कमर तोड़ने वाले जांबाज के रूप में उन्हें याद करती है।

मायावती का कार्यकाल भांति भांति के विवादों आरोपों से घिरे रहने पर भी कानून व्यवस्था के मामले में अब्बल रहता था यह  चमकदार उजला पक्ष कानून व्यवस्था पर कठोर नियंत्रण ही होता था। जिसके लिए बृजलाल की रणनीति ओर कार्यशैली ने संभाला था।

उत्तरप्रदेश में पिछले 3 महीनों में हुए घटनाक्रम चाहे वह अतीक अशरफ हो या संजीव माहेश्वरी इनकी हत्या हो या 61 बदमाश टाइप के लोगों की लिस्ट जिसमें से अब लगभग 54 बचे हैं बाकी लगभग निबट ही गए हैं को लेकर हो अन्य घटनाएं जिनसे प्रदेश सरकार को असहज होना पड़ा था वह प्रदेश की कानून व्यवस्था का मोर्चा ही  एकमात्र ऐसा मोर्चा है जिसमे योगी सरकार अबतक पूरी तरह असफल दिखाई दे रही है। इस असफलता का कारण सिर्फ रणनीतिकारों द्वारा फूल प्रूफ रणनीति न बनाना रहा है।

  कुछ दिन पूर्व मुख्यमंत्री योगी के साथ हुई बृजलाल की मुलाकात के बाद से यह चर्चा गरम बाजार में है कि बृजलाल को मुख्यमंत्री अपना सुरक्षा सलाहकार नियुक्त करनेवाले हैं। 

यदि यह सच है तो निश्चित मानिये कि उत्तरप्रदेश में अपराधियों के हौसलों को जिस तरह 80 के दशक ओर मायावती के मुख्यमंत्री रहते हुए बृजलाल ने तोड़ा था वह बाबा जी सुरक्षा सलाहकार बनते हैं तो माफियाओं के बहुत बुरे दिन शुरू होनेवाले हैं। जिसका सबको वर्षों से इंतजार था।

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