आखिर कब खुलेंगे ताले- पहाड़ में स्वरोजगार देने के नाम पर बने भवनों के।
संकल्प से सिद्धि नाम के बड़े बड़े होर्डिंग पोस्टर लगाकर दिन में ही सपने दिखा गयी आईएलएसपी परियोजना।
बैठक, प्रशिक्षण शिविर ओर मेलों के आयोजन व कागजों तक ही सीमित रही परियोजना, कागजी घोड़े दौड़ाने में अपनी दक्षता के चलते अवार्ड की हकदार बन गयी।
आईएलएसपी परियोजना के अपर सचिव रहे रामविलास यादव जिनके चर्चे - अकूत सम्पति की चाह ने पहुंचाया सलाखों के पीछे तक कि कहानी से सब वाकिफ हैं।
रोडमेप ओर वैल्युचेन के नाम पर नया शिगूफा लोगों के बीच मे छोड़कर खुद अपना अस्तित्व को बचाने में नाकामयाबी तक के सफर को पूरा करने के बाद 5 वर्ष पहले स्थापित हिलासँ ब्रांड को विश्वस्तर तक कि पहचान दिलाने की बात में कितना दम होगा इसका अंदाज इस परियोजना के 2004 से अब तक सफर से लगाया जा सकता है। विभिन्न नामों से परियोजना यह परियोजना संचालित होती रही है।
किसानों की आय तो जैसे हुई होगी दुगनी पर मठाधीशों की तूती बोलने लगी और वही वेल्यू चेन की आड़ में ऐसी वैल्युचेंन बनी की जो इस परियोजना से जुड़े लोग हैं उनके जीवन में क्या अंतर आया है यह शोध का विषय है। लगभग 5 साल पहले बनी सहकारिताओं में जमा अपने शेयरधन के बारे में भी अधिकतर शेयर धारक ये तक नही जानते कि है उनका शेयरधन किसके पास जमा है।
सहकारिता के द्वारा किये गए कारोबार जो MIS सिस्टम मे अपडेट है का अधिकतर सहकारिताओं के पास कोई हिसाब नही मिलेगा। इसका कारण है कागजों में महल बनाकर ओर खुद को पालनहार समझने की रीति नीति का होना है।
प्रशासन को चाहिए कि जनपद में स्थापित प्रभागीय परियोजना प्रबंधक कार्यालय से उससे सम्बंधित सहकारिताओं के पिछले दो वित्त वर्षों का कारोबार कितनी धनराशि का हुआ और सहकारिता के बैंक खाते का मिलान किया जाए तो तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी। जिसका जिक्र बार बार कागजी घोड़े दौड़ाने में माहिर की बात कही जा रही है।
आईएलएसपी के माध्यम से कलेक्शन सेंटर, मिनी कलेक्शन सेंटर, LDPE टैंक ओर ग्रोथ सेंटर के साथ साथ स्थानीय उपज को सरंक्षित करके उसकी कीमत को ऑफ सीजन में बढाने के लिए कूलिंग सेंटर, फार्म मशीनरी बैंक बनाये गए पर हासिल हुआ जीरो। इन सब पर पिछले 2 सालों से ताले लटके हुए हैं।
इसका कारण परियोजना को संचालित करने वाले कर्मचारियों की नाकयाबी ओर निकम्मेपन के साथ साथ कागजी घोड़े दौड़ाने में माहिर होने से करोड़ों रुपए की सम्पतियों पर मकडजालों का लगना यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है।
अब यह परियोजना अपने नए नाम REAP (Rural Enterprise Acceleration Project) के नाम से लॉन्च की गई है, 2004 से लगातार वर्तमान 2023 तक उत्तराखण्ड ग्राम्य विकास समिति के माध्यम से यह प्रोग्राम विभिन्न नामों से चलाया गया जिसका क्या असर हुआ और इस परियोजना पर व्यय कितना हुआ है यह देखकर कोई भी हकीकत बता सकता है।


