मखेत गांव में भालू की आहट से सहमा ग्रामीण घायल

पहाड़ में वन्यजीवों का आतंक क्यो बढ़ रहा,
खबर शेयर करें:

 पहाड़ में वन्यजीवों का आतंक: मखेत गांव में भालू की आहट से सहमा ग्रामीण घायल।

 प्रशासन की सुस्ती और सरकार की उदासीनता कहीं पहाड़ के अस्तित्व पर ही भारी न पड़ जाए।

मखेत/रुद्रप्रयाग। पहाड़ के शांत गांवों में अब जंगली जानवरों का खौफ इस कदर हावी हो गया है कि ग्रामीण अपने घर की दहलीज पर भी सुरक्षित नहीं हैं। ताजा मामला ग्राम मखेत का है, जहां भालू की आहट मात्र से एक व्यक्ति के गंभीर रूप से घायल होने की घटना सामने आई है। इस घटना ने एक बार फिर पहाड़ की उस गहरी पीड़ा को उजागर कर दिया है, जिससे यहाँ का जनमानस सालों से त्रस्त है।

  ग्राम मखेत निवासी श्री गंभीर सिंह देर शाम अपने घर की ओर जा रहे थे। इसी बीच अचानक भालू की आहट सुनकर वह भयभीत हो गए और संतुलन खोने के कारण बुरी तरह गिरकर घायल हो गए। गिरने की तीव्रता इतनी अधिक थी कि वह मौके पर ही बेहोश हो गए। आनन-फानन में स्थानीय लोगों की मदद से उन्हें संभाला गया। खबर लिखे जाने तक उन्हें होश आ गया था और '108' आपातकालीन सेवा के माध्यम से उन्हें अस्पताल पहुँचाने की प्रक्रिया जारी थी।

 मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए दक्षिणी रेंज के वनक्षेत्राधिकारी हरीश थपलियाल ने बताया कि सूचना मिलते ही वन विभाग की क्यूआरटी (QRT) टीम को मौके पर रवाना कर दिया गया है। टीम क्षेत्र में सर्च अभियान चला रही है और भालू को आबादी से दूर खदेड़ने के लिए पटाखे फोड़ने का कार्य किया जा रहा है। उन्होंने ग्रामीणों से सतर्क रहने की अपील करते हुए कहा कि "सावधानी ही बचाव है।"


यह घटना महज एक दुर्घटना नहीं, बल्कि पहाड़ की उस नियति का हिस्सा बन चुकी है जिसे शासन-प्रशासन अनदेखा कर रहा है। सवाल यह उठता है कि आखिर कब सरकार पहाड़ की इस वास्तविक पीड़ा को समझेगी? आए दिन होने वाले इन हमलों और आहटों ने ग्रामीणों का जीना दूभर कर दिया है। खेती-पाती पहले ही जंगली जानवरों की भेंट चढ़ चुकी है और अब इंसानी जान पर भी हर वक्त तलवार लटकी रहती है। क्या प्रशासन केवल 'सावधानी की अपील' और 'पटाखे फोड़ने' तक ही सीमित रहेगा?

ग्रामीण जितेन्द्र सिंह, हयात सिंह, पूर्व प्रधान आषाढ़ सिंह का कहना है कि जब तक वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए कोई ठोस और स्थाई नीति नहीं बनाई जाती, तब तक पहाड़ से पलायन और ऐसी अनहोनी की खबरें आती रहेंगी। प्रशासन की सुस्ती और सरकार की उदासीनता कहीं पहाड़ के अस्तित्व पर ही भारी न पड़ जाए।

खबर पर प्रतिक्रिया दें 👇
खबर शेयर करें:
Next
This is the most recent post.
Previous
पुरानी पोस्ट

हमारे व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ें-

WhatsApp पर हमें खबरें भेजने व हमारी सभी खबरों को पढ़ने के लिए यहां लिंक पर क्लिक करें -

यहां क्लिक करें----->