माल्टा का संकट: उत्तराखंड के उत्पादक निराश

माल्टा विपणन की समस्याओं का समाधान,
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 उत्तराखण्ड के माल्टा फल उत्पादक सरकार की अनदेखी से निराश।

माल्टा का संकट: उत्तराखंड के उत्पादक निराश, MSP और बाजार की जंग। 

सरकारी नीतियों की निरंतरता में कमी के कारण माल्टा उत्पादक हताश और निराश।

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में नवंबर-दिसंबर का महीना आते ही माल्टा फल एक बार फिर विपणन की गंभीर समस्या के कारण चर्चाओं में है। दशकों से सरकारी प्रयासों और घोषणाओं के बावजूद, माल्टा उत्पादक इस वर्ष भी उचित भाव न मिल पाने के कारण निराश और हताश हैं। 'नारंगी गायब, माल्टा को भाव नहीं'—यह उक्ति पर्वतीय किसानों की दुर्दशा को स्पष्ट बयां करती है।

निष्क्रिय सरकारी प्रयास और उत्पादकों की हताशा

बीस-तीस वर्षों से माल्टा की मार्केटिंग को लेकर कई पहल हुई हैं, लेकिन कोई भी दीर्घकालिक योजना ज़मीन पर उतरती नहीं दिख रही।

  • पुरानी घोषणाएँ: गढ़वाल एवं कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा माल्टा बेचने की बात, तिलवाड़ा (रुद्रप्रयाग) में प्रोसेसिंग यूनिट, मटैला (अल्मोड़ा) में कोल्ड स्टोरेज, और कलेक्शन सेंटर पर ₹7-₹9 प्रति किलो समर्थन मूल्य देने की घोषणाएँ की गईं।

  • नवीनतम प्रयास: पिछले वर्ष उत्तराखंड के माल्टा से गोवा में वाइन बनाने और जीआई टैग (GI Tag) मिलने जैसे सकारात्मक कदम उठाए गए, लेकिन इसके बावजूद अच्छे दाम न मिलने से किसानों के चेहरे उदास हैं।

  • समर्थन मूल्य का अभाव: राज्य सरकार ने इस वर्ष माल्टा का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित नहीं किया। पिछले वर्ष की दरों पर किसान कलेक्शन सेंटरों तक फल लाने को तैयार नहीं थे, जिसका परिणाम यह हुआ कि भारी मात्रा में माल्टा फल पेड़ों से गिरकर वहीं सड़ रहा है।

सरकारी नीतियों की निरंतरता में कमी के कारण माल्टा उत्पादक हताश और निराश हैं।

उत्तराखंड में माल्टा का उत्पादन और जैविक महत्व

माल्टा का उत्पादन उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में 1000 मीटर से 2000 मीटर की ऊंचाई वाले स्थानों पर बहुतायत में होता है।

जनपदउत्पादन की अधिकता
उत्पादक क्षेत्रअल्मोड़ा, पिथौरागढ़, पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग
कुल नीम्बूवर्गीय क्षेत्र (2019-20)21,739 हेक्टेयर
कुल उत्पादन91,177 मीट्रिक टन

पहाड़ी क्षेत्रों में रसायनिक खादों और दवाओं का प्रयोग कम होने के कारण यहां उत्पादित माल्टा विशुद्ध रूप से जैविक होता है।

 औषधीय और पौष्टिक गुण

माल्टा खट्टा-मीठा, रसीला, पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्धक फल है।

  • पोषक तत्व: इसमें विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। साथ ही, प्रोटीन, आयरन, फाइबर और अन्य विटामिन भी मौजूद होते हैं।

  • स्वास्थ्य लाभ: यह इम्यूनिटी को मजबूत करता है, शरीर को डी-टॉक्स करने में मदद करता है, और सर्दी, खांसी, जुकाम में लाभदायी है।

  • उपयोगिता: फल, छिलके, रस और बीज के तेल से दवाएं बनाई जाती हैं, और इसके छिलके का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों में भी होता है।

बाजार की चुनौतियां: गुणवत्ता बनाम प्रतिस्पर्धा

माल्टा उत्पादकों को उचित मूल्य न मिलने का मुख्य कारण बाजार में किन्नू और संतरे से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा है।

  • किन्नू और संतरे का प्रभाव: इसी मौसम (नवंबर-दिसंबर) में बाहरी राज्यों, खासकर पंजाब और हिमाचल से, उच्च गुणवत्ता वाले किन्नू और संतरे बाजार में आ जाते हैं, जिससे स्थानीय माल्टा की मांग और दाम कम हो जाते हैं।

  • माल्टा की कमियाँ: उत्तराखंड में उत्पादित अधिकतर माल्टा 'कॉमन' किस्म का है। इसके फल प्रायः छोटे, कम मीठे, खट्टे और अधिक बीज वाले होते हैं, जो बाजार के आधुनिक मानकों पर खरे नहीं उतरते। इसके विपरीत, किन्नू जैसे फल मीठे, रसीले, कम बीज वाले और आसानी से छीले जा सकते हैं, जिससे उन्हें ₹80-₹100 प्रति किलो तक दाम मिल जाता है।

  • विलुप्त होती नारंगी: अस्सी के दशक तक पहाड़ी जनपदों में नारंगी (संतरा) का अच्छा उत्पादन होता था, जिसकी स्थानीय बाजार में ही अच्छी कीमत मिल जाती थी। लेकिन, उद्यान विभाग की उदासीनता, निम्न गुणवत्ता की पौध वितरण और संतरा के नाम पर माल्टा की पौध बांटने के कारण नारंगी के पुराने बाग समाप्त हो गए हैं और माल्टा का उत्पादन बढ़ गया।

आशा की किरणें: आत्मनिर्भरता और जीआई टैग

  • जीआई टैग: पिछले वर्ष माल्टा को भौगोलिक संकेतांक (GI Tag) मिलना एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे वैश्विक पहचान मिलेगी और भविष्य में बाजार में मांग बढ़ने की संभावना है।

  • PM FME योजना: प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम उन्नयन योजना (PM FME Yojna) के तहत युवाओं को 35% (अधिकतम ₹10 लाख) की सब्सिडी मिल रही है, जिससे कई लोग माल्टा प्रोसेसिंग में लगे हैं।

  • 'वोकल फॉर लोकल' की चुनौती: 'वोकल फॉर लोकल' का आह्वान स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का माध्यम है, लेकिन इसकी सफलता उत्पादन की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। यदि स्थानीय माल्टा गुणवत्ता में आयातित किन्नू और संतरे के समान नहीं होगा, तो उपभोक्ता उन्हें नहीं खरीदेंगे।

डाटा का अंतर और नियोजन में चूक

राज्य के पास फल उत्पादन के सही और वास्तविक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, जिससे सटीक नियोजन करना असंभव हो गया है। उदाहरण के लिए, पौड़ी जनपद को 'एक जनपद एक उत्पाद' के तहत नीम्बूवर्गीय फलों के लिए चुना गया, लेकिन पलायन आयोग की रिपोर्ट में विभागीय आंकड़ों की तुलना में 4714 हेक्टेयर कम उत्पादन क्षेत्र दर्शाया गया है। वास्तविक आंकड़ों के अभाव में माल्टा संकट का दीर्घकालिक समाधान निकालना एक बड़ी चुनौती है।

उत्तराखंड के माल्टा उत्पादकों के लिए यह संकट तब तक बना रहेगा जब तक सरकार एक प्रभावी, गुणवत्ता-केंद्रित और बाजारोन्मुखी दीर्घकालिक रणनीति नहीं बनाती।


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