रूप सिंह रावत/सतपुली
आतंक का साया: पौड़ी में गुलदार ने 4 वर्षीय मासूम पर किया हमला, गांव में दहशत।
आंगनबाड़ी केंद्र से घर लौट रहे एक 4 वर्षीय मासूम बालक पर घात लगाए गुलदार ने अचानक हमला कर दिया।
पौड़ी (उत्तराखंड)। पहाड़ में मानव-वन्यजीव संघर्ष की भयावहता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। शहर से सटे ग्रामीण इलाकों में गुलदार (तेंदुआ) के लगातार हमलों से लोग पहले ही खौफ में जी रहे थे, कि मंगलवार को कोट ब्लॉक के देवार गांव में एक और दिल दहला देने वाली घटना सामने आ गई। आंगनबाड़ी केंद्र से घर लौट रहे एक 4 वर्षीय मासूम बालक पर घात लगाए गुलदार ने अचानक हमला कर दिया, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया। हालांकि, परिजनों और साथ चल रहे ग्रामीणों की असाधारण सतर्कता ने एक बड़ा हादसा टाल दिया और बच्चे की जान बचा ली गई।
जानलेवा हमला और ग्रामीणों की बहादुरी
घटना दोपहर के समय की बताई जा रही है। देवार गांव का 4 वर्षीय अनमोल अपनी मां और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के साथ आंगनबाड़ी केंद्र से घर की ओर लौट रहा था। जैसे ही वे गांव के करीब पहुंचे, झाड़ियों में घात लगाए बैठे एक गुलदार ने अचानक मासूम अनमोल पर झपट्टा मार दिया। इस अप्रत्याशित और जानलेवा हमले को देखकर बच्चे की मां और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। उनकी आवाज सुनकर साथ चल रहे ग्रामीणों ने भी शोर मचाना शुरू कर दिया और फौरन गुलदार की ओर लपके।
मानव हुजूम का शोर और प्रतिरोध देखकर गुलदार घबराया और मजबूरन बच्चे को छोड़कर जंगल की ओर भाग गया। गुलदार के जबड़े से छूटे अनमोल के सिर पर गंभीर घाव आए हैं। उसे तुरंत जिला अस्पताल पौड़ी लाया गया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद उसकी हालत सामान्य बताई जा रही है।
पौड़ी में गुलदार का खौफनाक आतंक
देवार गांव की यह घटना पहाड़ में गहराते मानव-वन्यजीव संघर्ष की ताजा कड़ी है। पूरा पौड़ी क्षेत्र पिछले कई महीनों से गुलदार के आतंक से त्रस्त है। स्थानीय लोग बताते हैं कि कुछ ही दिन पहले कोटी गांव में एक महिला को गुलदार ने अपना शिकार बनाकर उसकी जान ले ली थी। इसके अलावा, डोभाल ढांडरी में भी एक महिला पर हमला कर उसे गंभीर रूप से घायल किया गया था।
यह संघर्ष अब इस मोड़ पर आ गया है जहाँ महिलाएं और बच्चे, जो सबसे अधिक असुरक्षित होते हैं, लगातार जनहानि का शिकार बन रहे हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों पर हर पल खतरे का साया मंडरा रहा है, वहीं घास-लकड़ी के लिए जंगल जाने वाली ग्रामीण महिलाएं भी सुरक्षित नहीं हैं।
स्थानीय लोगों में आक्रोश: सरकार कब जागेगी?
लगातार हो रहे तेंदुआ और भालू के हमलों से स्थानीय लोगों में गहरा आक्रोश है। उनका कहना है कि जनहानि की घटनाओं में वृद्धि के बावजूद वन विभाग और सरकार की ओर से कोई ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। लोगों का सवाल है कि, "आखिर सरकार कब तक आंख मूंदे रहेगी?"
ग्रामीणों ने सरकार से वन्यजीवों की बढ़ती आबादी पर नियंत्रण करने, प्रभावित क्षेत्रों में सतर्कता बढ़ाने, और लोगों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की मांग की है। यह घटना एक बार फिर उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में सुरक्षित जीवन सुनिश्चित करने की दिशा में सरकारी प्राथमिकताओं पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
आतंक के साये में पहाड़: कब थमेगा मानव-वन्यजीव संघर्ष?
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से एक बार फिर दहलाने वाली खबर आई है—पौड़ी के देवार गांव में आंगनबाड़ी से लौट रहे चार साल के मासूम पर गुलदार का हमला। यह घटना न सिर्फ बच्चे के जीवन पर मंडराए खतरे का संकेत है, बल्कि यह भी बताती है कि राज्य में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक ऐसी विकराल समस्या बन चुका है जिसे अब और नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
पहाड़ के गांव, जो कभी शांति और प्रकृति की गोद माने जाते थे, आज गुलदार और भालू के खौफ के साये में जी रहे हैं। स्कूली बच्चे, महिलाएं जो जंगल से जीवन यापन की सामग्री जुटाती हैं, वे सबसे अधिक असुरक्षित हैं। कोटी और डोभाल ढांडरी की पिछली घटनाओं के बाद देवार का यह हादसा एक स्पष्ट संदेश है कि स्थिति अब 'नियंत्रण से बाहर' होती जा रही है।
स्थानीय लोगों का गुस्सा और हताशा जायज़ है। लगातार हो रही जनहानि के बावजूद वन विभाग की प्रतिक्रिया अक्सर घटना के बाद की औपचारिकता तक सीमित रहती है। सवाल यह है कि हमारी सरकारें कब तक आंकड़ों और मुआवजे की घोषणाओं से इस गंभीर संकट को ढकने की कोशिश करती रहेंगी?
ज़रूरत है एक निर्णायक हस्तक्षेप की:
जमीनी स्तर पर रणनीति: प्रभावित गांवों की पहचान कर वहां वन विभाग के कर्मियों की स्थायी तैनाती की जाए। रात्रि गश्त और तत्काल प्रतिक्रिया दल (Rapid Response Teams) का गठन आवश्यक है।
पर्यावास प्रबंधन: वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक पर्यावास में ही भोजन और पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए ताकि वे भोजन की तलाश में मानव बस्तियों की ओर न आएं।
जन-जागरूकता: स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर वन्यजीवों से बचाव के लिए प्रशिक्षण और जागरूकता अभियान सघनता से चलाए जाएं।
वैज्ञानिक हस्तक्षेप: वन्यजीवों की बढ़ती आबादी और उनके विचरण के पैटर्न का वैज्ञानिक अध्ययन कर, समस्या की जड़ तक पहुंचा जाए।
पहाड़ का जीवन कठिन है, और जब इस पर जानवरों के आतंक का साया पड़ जाता है, तो यह नारकीय हो जाता है। सरकार को यह समझना होगा कि यह केवल एक 'वन्यजीव मुद्दा' नहीं है, बल्कि यह सीधे तौर पर पहाड़ी जीवन की सुरक्षा और आजीविका का प्रश्न है। अगर सरकारें तुरंत और प्रभावी कदम नहीं उठाती हैं, तो यह संघर्ष पहाड़ के गांवों को पलायन के लिए एक और गंभीर कारण दे जाएगा।
आंखें मूंदने का समय खत्म हो गया है। उत्तराखंड के लोगों को जंगल चाहिए, लेकिन जंगल का आतंक नहीं चाहिए।


