रूप सिंह रावत/सतपुली पौड़ी गढ़वाल।
पौड़ी गढ़वाल में नरभक्षी गुलदार का कहर, खतरे में पहाड़ की रीढ़!
जंगली जानवरों के बढ़ते हमलों से महिलाओं पर संकट, बंजर हो रही खेती और गहराता पलायन।
पौड़ी: गढ़वाल वन प्रभाग के अन्तर्गत पौखड़ा रेंज में नरभक्षी गुलदार का आतंक इस कदर बढ़ गया है कि पूरा पौखड़ा विकासखंड गहरी दहशत और संकट की चपेट में है। मानव-वन्यजीव संघर्ष की यह घटनाएँ अब केवल जान-माल के नुकसान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये पहाड़ की पूरी सामाजिक और आर्थिक संरचना को हिला रही हैं।
ताज़ा हमला: एक और महिला घायल, दो दिन में दूसरी घटना
ताज़ा घटनाक्रम में, शनिवार को गुलदार ने घड़ियाल गाँव में प्रभा देवी पत्नी नरेन्द्र सिंह पर हमला कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया। प्रभा देवी अपने मवेशियों के लिए चारापत्ती लेने गाँव के पास ही जंगल से सटे क्षेत्र में गई थीं, जहाँ घात लगाए गुलदार ने उनके गर्दन और सिर पर हिंसक वार किया। उन्हें आनन-फानन में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पौखड़ा लाया गया। इससे मात्र दो दिन पहले, गुरुवार को इसी नरभक्षी गुलदार ने एक महिला को अपना निवाला बना लिया था।
पहाड़ की 'रीढ़' पर सबसे बड़ा संकट
गुलदार के इन लगातार और हिंसक हमलों का सबसे अधिक खामियाजा पहाड़ की महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। उत्तराखंड के ग्रामीण जीवन में महिलाएं ही खेती, पशुपालन, चारापत्ती लाने और पानी की व्यवस्था करने की मुख्य धुरी होती हैं। उनकी दिनचर्या का एक बड़ा हिस्सा जंगल और उससे सटे क्षेत्रों से जुड़ा होता है। पूर्व ग्राम प्रधान संदीप ने बताया कि घायल महिला के साथ तीन अन्य महिलाएं भी घास लेने गई थीं।
डर का माहौल: जंगल के करीब जाने का डर इतना बढ़ गया है कि महिलाएं घर से निकलने से भी कतरा रही हैं।
कामकाज ठप: चारापत्ती, लकड़ी और पानी लाने जैसे आवश्यक कार्य ठप पड़ गए हैं, जिससे पूरा ग्रामीण जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।
बंजर होते खेत और आर्थिक संकट
गुलदार के आतंक के कारण ग्रामीण, खासकर महिलाएं, अब खेती-काश्तकारी छोड़ने को मजबूर हैं। अपनी और परिवार की जान के जोखिम को देखते हुए, लोग खेतों की ओर रुख करने से डर रहे हैं। इस कारण, पहले से ही पलायनग्रस्त और श्रम-बल की कमी झेल रहे इस क्षेत्र के उपजाऊ खेत तेजी से बंजर होते जा रहे हैं।
यह स्थिति इसलिए भी अधिक चिंताजनक है क्योंकि पहाड़ में रोजगार का अन्य कोई बड़ा और स्थायी साधन उपलब्ध नहीं है। जब खेती और पशुपालन ही संकट में आ जाए, तो ग्रामीणों के पास पलायन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था लगभग ठप पड़ चुकी है।
प्रशासनिक कार्रवाई और स्थायी समाधान की माँग
पोखड़ा के ब्लॉक प्रमुख संजय गुसांई ने स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए वन विभाग से अविलंब गुलदार को पकड़ने या उसे 'आदमखोर' घोषित कर मारने की माँग की है। वहीं, उप वन संरक्षक गढ़वाल अभिमन्यु ने क्षेत्र में गश्त बढ़ाने के आदेश दिए हैं। पूर्व ग्राम प्रधान संदीप ने पुष्टि की कि वन विभाग की टीम तीन दिन से गाँव में डेरा डाले हुए है, लेकिन खतरनाक गुलदार पकड़ में नहीं आ रहा।
वैज्ञानिक प्रबंधन: 'केयरिंग कैपेसिटी' की गणना आवश्यक
वन्यजीव विशेषज्ञों और जानकारों का मानना है कि इस गंभीर और बार-बार उठ रहे मानव-वन्यजीव संघर्ष का स्थायी समाधान केवल गश्त बढ़ाने या हिंसक जानवर को मारने में नहीं है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र की 'केयरिंग कैपेसिटी' (धारण क्षमता) की वैज्ञानिक गणना में निहित है।
सटीक गणना: क्षेत्र और उपलब्ध प्राकृतिक आवास के आधार पर जंगली जानवरों, विशेष रूप से गुलदार और तेंदुओं की सटीक गणना की जानी चाहिए।
पर्यावास स्थानांतरण: यदि यह गणना दर्शाती है कि जानवरों की आबादी क्षेत्र की वहन क्षमता से अधिक हो गई है, तो वन्यजीवों को उनके प्राकृतिक आवास के आधार पर अन्यत्र सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित (शिफ्ट) करने की योजना पर तत्काल काम शुरू किया जाना चाहिए।
इस तरह के वैज्ञानिक और दीर्घकालिक प्रबंधन से ही गुलदार जैसे मांसाहारी जीवों को उनके प्राकृतिक शिकार के क्षेत्र में सीमित किया जा सकेगा। तभी मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम किया जा सकता है और ग्रामीण, विशेषकर महिलाएं, भयमुक्त होकर अपने पुश्तैनी काम (खेती-काश्तकारी) की ओर लौट सकते हैं, जिससे बंजर होते खेतों को फिर से आबाद किया जा सके।


