प्रेस की स्वतंत्रता: वर्तमान परिदृश्य और चिंताएँ

राष्ट्रीय प्रेस दिवस का मूल उद्देश्य, "प्रेस की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी" की रक्षा करना,
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प्रेस की स्वतंत्रता: वर्तमान परिदृश्य और चिंताएँ।

असहमति व्यक्त करने वाले पत्रकारों पर मानहानि के झूठे मुकदमों और UAPA जैसे कठोर कानूनों का दुरुपयोग एक गंभीर चिंता का विषय।

16 नवंबर 1966 को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले राष्ट्रीय प्रेस दिवस का मूल उद्देश्य, "प्रेस की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी" की रक्षा करना है। हालांकि, प्रश्न बिल्कुल जायज है कि क्या वाकई हमारी प्रेस आज़ाद है? दुर्भाग्य से, प्रमाण यह दर्शाते हैं कि भारतीय मीडिया सत्ता के अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष दबाव में है। असहमति व्यक्त करने वाले पत्रकारों पर मानहानि के झूठे मुकदमों और UAPA जैसे कठोर कानूनों का दुरुपयोग एक गंभीर चिंता का विषय है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2023 में भारत का लगातार नीचे खिसकना, इस बात का प्रमाण है कि पत्रकारिता का माहौल लगातार सिकुड़ रहा है।

आर्थिक दबाव और आत्म-सेंसरशिप का बढ़ता खतरा

आधुनिक मीडिया जगत में, आर्थिक निर्भरता ने प्रेस की स्वतंत्रता पर बड़ा संकट पैदा कर दिया है। बड़े मीडिया चैनल सरकारी विज्ञापनों के सहारे चलते हैं, जिसके कारण वे सत्ता की आलोचना करने से कतराते हैं। यह एक प्रकार की "आत्म-सेंसरशिप" को जन्म देता है, जहाँ खबरें तथ्यों के बजाय व्यावसायिक हितों और राजनीतिक समीकरणों के आधार पर चुनी जाती हैं। इसके विपरीत, स्वतंत्र और निर्भीक पत्रकारिता करने वाले छोटे मीडिया पोर्टल्स और पत्रकारों को आर्थिक रूप से कुचलने का प्रयास किया जा रहा है। जब आर्थिक तंगी से जूझना पड़ता है, तो निष्पक्ष रिपोर्टिंग करना एक दुर्जेय चुनौती बन जाता है, और लोकतंत्र का यह महत्वपूर्ण स्तंभ धीरे-धीरे खोखला होता चला जाता है।

 प्रगति का आधार: जब मीडिया उठाएगा सही मुद्दे

 दमन न केवल प्रेस को कमजोर करता है, बल्कि यह देश की प्रगति को भी रोकता है। एक स्वतंत्र और निडर मीडिया ही भ्रष्टाचार को उजागर करने, नीतियों की पारदर्शिता सुनिश्चित करने और सत्ता को जवाबदेह बनाने का एकमात्र विश्वसनीय माध्यम है। जब मीडिया अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए उन ज्वलंत मुद्दों को केंद्र में लाएगा जो देश की जनता को सीधे प्रभावित करते हैं—जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा में सुधार, गरीबी उन्मूलन, पर्यावरण संरक्षण, और सामाजिक असमानता—तभी देश सही मायने में प्रगति कर पाएगा। यदि मीडिया केवल राजनीतिक बहसों तक सीमित रहेगा, तो जनता को उन वास्तविक समस्याओं से ध्यान भटक जाएगा जिनके समाधान के लिए सरकार पर दबाव बनाना आवश्यक है।

 निष्कर्ष

स्वतंत्र मीडिया सिर्फ लोकतंत्र का रक्षक नहीं, बल्कि देश के सतत विकास की आधारशिला है। जब पत्रकारिता बिना किसी डर या पक्षपात के सच्चाई को सामने लाती है, तभी नीतियां बेहतर बनती हैं, सरकारी योजनाओं का सही कार्यान्वयन होता है, और नागरिकों को सूचित निर्णय लेने का अधिकार मिलता है। भारत एक युवा और गतिशील देश है, और इसकी प्रगति तभी संभव है जब इसका चौथा स्तंभ पूरी आजादी और ईमानदारी के साथ काम करे। प्रेस पर हो रहे हर हमले का विरोध और स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करना आज हर नागरिक का कर्तव्य है, ताकि हम सब मिलकर एक अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और विकसित भारत का निर्माण कर सकें।


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