उमर खालिद ने फिर खेला विक्टिम कार्ड

उमर खालिद को दिल्ली दंगो के मामले में जमानत नही,
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दिल्ली दंगे: उमर खालिद ने कोर्ट में फिर 'विक्टिम कार्ड' खेला, जमानत के लिए उठाया सवाल।

खालिद ने दावा किया है कि दिल्ली पुलिस ने 2020 के हिंदू विरोधी दंगों की 'बड़ी साजिश' के मामले में उन्हें चुनिंदा ढंग से आरोपी बनाया।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद, जिन्हें लोअर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जमानत नहीं मिली है, उन्होंने एक बार फिर दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट में अपनी गिरफ्तारी पर सवाल उठाए हैं। खालिद ने दावा किया है कि दिल्ली पुलिस ने 2020 के हिंदू विरोधी दंगों की 'बड़ी साजिश' के मामले में उन्हें चुनिंदा ढंग से आरोपी बनाया, जबकि समान भूमिका निभाने वाले अन्य लोगों को छोड़ दिया गया।


समान भूमिका, अलग न्याय: खालिद के वकील की मुख्य दलीलें

गुरुवार (9 अक्टूबर 2025) को जस्टिस समीर बजपेई की अदालत में वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पाइस ने उमर खालिद का पक्ष रखा। पाइस ने दलील दी कि चार्जशीट में कई अन्य अहम नाम मौजूद हैं, जिन्हें दिल्ली पुलिस ने गवाह बना लिया, जबकि वे कथित "पाप" में बराबर के भागीदार थे।

  • चुनिंदा अभियोजन पर सवाल: पाइस ने तर्क दिया, "कई लोग मेरी (खालिद) जैसी ही स्थिति में हैं, हमारे किरदारों में कोई खास अंतर नहीं है, फिर भी सिर्फ मुझे अभियुक्त बनाया गया।"

  • गवाहों के बयान को चुनौती: उन्होंने दिल्ली पुलिस के सुरक्षित गवाहों के बयानों का हवाला दिया और कहा कि उनमें ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो यूएपीए (UAPA) या किसी अन्य गंभीर अपराध को सिद्ध कर सके।

  • योगेंद्र यादव का उदाहरण: पाइस ने 8 दिसंबर 2019 को जंगपुरा में हुई एक बैठक का जिक्र किया, जहाँ उमर खालिद के साथ योगेंद्र यादव और नदीम खान भी मौजूद थे। वकील ने पूछा कि "जो उन्होंने या नदीम खान ने किया, वही मैंने किया तो अंतर क्या है?"

  • जिम्मेदारियाँ सौंपने का मुद्दा: पाइस ने गवाहों के बयानों का जिक्र करते हुए कहा कि सबा दिवान (जिन्होंने राहुल रॉय के साथ दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप - DPSG बनाया था) ही अलग-अलग लोगों को उत्तरदायित्व सौंपती थीं, न कि उमर खालिद। उन्होंने सवाल किया, "उमर खालिद को कोई काम नहीं दिया गया, तो उनकी भूमिका दूसरों से ज्यादा या कम कैसे मानी गई?"

पाइस ने यह भी कहा कि ताहिरा दाऊद जैसे अन्य गवाहों के अनुसार, मुस्लिम छात्रों के साथ देशभर में रैली करने की बात हुई थी, लेकिन "इसमें आतंकवाद जैसा कुछ नहीं है।"

अब इस मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर 2025 को होनी है।


उच्च न्यायालय ने खारिज की थी जमानत: हिंसा में खालिद की कथित भूमिका

गौरतलब है कि उमर खालिद पहले भी खुद को निर्दोष बताते हुए इसी तरह की दलीलें अदालत में पेश कर चुके हैं। हालाँकि, कोर्ट उनकी दलीलों को पहले ही खारिज कर चुका है और यह मान चुका है कि उनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं।

  • हाई कोर्ट की टिप्पणी: दिल्ली हाई कोर्ट ने 2 सितंबर को उमर खालिद और शरजील इमाम की जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा था कि प्रथमदृष्टया (prima facie) ऐसे सबूत मौजूद हैं जो दर्शाते हैं कि दोनों ने प्रदर्शनों की योजना और लोगों को उकसाने में अहम भूमिका निभाई, जिससे आगे चलकर दंगे भड़के

  • बौद्धिक सूत्रधार: सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया था कि "शरजील इमाम और उमर खालिद इस पूरी साजिश के बौद्धिक सूत्रधार (intellectual architects) थे, जिन्होंने अन्य सह-आरोपियों के साथ मिलकर योजना बनाई।"

  • पूर्व नियोजित साजिश: दिल्ली पुलिस की एफआईआर में यह भी कहा गया था कि ये दंगे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान (24 से 26 फरवरी 2020) पहले से रचे गए (pre-planned) थे। एफआईआर के मुताबिक, खालिद ने भड़काऊ भाषण दिए और लोगों से अपील की कि वे ट्रंप की यात्रा के दौरान सड़कों पर उतरें ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को अल्पसंख्यकों के खिलाफ दिखाया जा सके।

  • निष्कर्ष: अदालत ने पाया था कि जाँच के दस्तावेज और साक्ष्य सुनियोजित साजिश की ओर इशारा करते हैं, इसलिए उमर खालिद और शरजील इमाम को फिलहाल जमानत नहीं दी जा सकती।

दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ों लोग बेघर हुए थे।


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