हिमालय की आवाज़-
सरकार की अनदेखी के चलते आखिर किसान करे तो क्या करे।
गुलदार, बन्दर, सुअर ओर भालू के आतंक से परेशान काश्तकारों का मन हट रहा है खेती बाड़ी से।
जलई के काश्तकारों के सपनों को सुअरों ने रोधां।
आखिर पहाड़ का किसान करे तो करे क्या एक तरफ तमाम सरकार की घोषणाओं की फेरहिस्त है तो इन घोषणाओं का लाभ आखिर आम किसानों को नही मिल रहा तो मिल किसे रहा यह विचारणीय प्रश्न है। केंद्र सरकार की पीएम किसान निधि की तरह आखिर सभी किसानों को अन्य योजनाओं का लाभ क्यो नही मिलता
पहाड़ में बंजर हो रहे खेतों का कारण पलायन है और पलायन का कारण क्या है मूलभूत सुविधाओं का न होना। आखिर मूलभूत सुविधाओं के विकास का जिम्मा किसका है शायद आसमान ताकते हर उस आँख के सामने यही सवाल तैरता है जब खुद को असहाय पाकर पलायन की राह पकड़ने को मजबूर हो जाता है। वह किसान जो अपनी पुश्तेनी जमीन पर कभी हल चलाकर खुद को गौरवान्वित महसूस करता था। पशुधन हो या खेत हर तरफ से समृद्ध था किसान तो आखिर नजर किसकी लगी इस समृद्धि पर।
एक तरफ कहा जाता है कि भारत कृषि प्रधान देश है और कृषि इसकी आत्मा है। तो कृषि करने वाला किसान क्या प्रकृति प्रेमी नही है क्यो वह जीवों पर दया नही करता यदि नही करता तो किसानों के खूंटे पर बंधे पशुधन की सेहत किसान की सेहत से अच्छा होने से यह भ्रांति है या मिथक सब टूटने चाहिए थे पर नीति नियन्ताओं के बनाये नियमों के जाल के कारण खेती को जंगली जानवरों से हो रहे नुकसान के कारण पहाड़ की खेती बंजर भूमि में बदलती जा रही है यह चिंता का विषय कभी नही बना न इसके लिए कभी आवाज़ उचित मंच से उठी आखिर क्यों।
रुद्रप्रयाग- ग्राम जलई में जंगली सुअरों द्वारा धान की खेती ओर घरबाड़ी की सब्ज़ियों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाए जाने से किसान जो सर्व विदित है कि पहाड़ में किसान महिलाएं ही हैं जँगली सुअरों से खेती को पहुँचाये जा रहे नुकसान के चलते हताश ओर निराश हो गयी हैं। इस पर भूतपूर्व सैनिक श्री यशवीर सिंह का कहना है कि जो लोग गावँ में है उंन्होने सम्पूर्ण गावँ की खेती को आबाद किया हुआ है पर बन्दर ओर सुअरों के आतंक से खेती किसानी से किसान विमुख होने को मजबूर हो रहा है क्योंकि जंगली जानवरों के आतंक से निजात के लिए कभी भी रणनीति नही बन रही तो खेतों को बंजर छोड़ना ही एकमात्र उपाय बचता है।
महिला मंगल अध्यक्ष श्रीमती उषा बिष्ट का कहना है कि गावँ में आदमी ही नही हैं जो हैं भी वह अधिकतर बुजुर्ग ओर महिलाएं है जिनको बच्चों की पढ़ाई के साथ साथ पशुओं को ओर खेती की भी जिम्मेदारी है। गावँ में आदमियों की कमी के चलते पैदल के रास्तों पर झाड़ियां जम गई हैं जिससे आते जाते समय जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है। शिक्षा के लिए विद्यालयों ओर स्वास्थ्य के लिए अस्पतालों के अभाव से ग्रसित पहाड़ पर रहने वाले अधिकतर लोग आखिर यहां रुके हुए हैं तो सिर्फ मजबूरी में की संसाधनो के अभाव में पलायन भी नही कर सकते।
नव निर्वाचित ग्राम प्रधान श्रीमती हीना भण्डारी का कहना है कि महिलाएं वर्षभर में लगभग 5 महीने खेती के कामो में अपना समय और खेती कार्यों में मेहनत से देती हैं और इस तरह से जंगली जानवरों द्वारा खेतों में खड़ीं फसलों को रोधना किसान को हताश ओर निराश करने का सबसे बड़ा कारण है। इस समस्या को में उचित मंचो पर उठाऊँगी।
जंगली जानवरों ओर उकठा की समस्या गढ़वाल क्षेत्र में हर जगह है लगभग यही बात हर किसान के मुहँ से सुनने को मिल रही है तो यह गम्भीर चिंता का विषय क्यो नही बन रहा। आजकल सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं में सिर्फ किसान को बाजार से जोड़ने पर जोर दिया जा रहा पर उत्पादन न होने से योजनाएं समृद्धि की ऊँचाईं छू रही हैं जिसपर किसी का ध्यान नही है।
एक तरफ कहा जाता है कि भारत कृषि प्रधान देश है और कृषि इसकी आत्मा है। तो कृषि करने वाला किसान क्या प्रकृति प्रेमी नही है क्यो वह जीवों पर दया नही करता यदि नही करता तो किसानों के खूंटे पर बंधे पशुधन की सेहत किसान की सेहत से अच्छा होने से यह भ्रांति है या मिथक सब टूटने चाहिए थे पर नीति नियन्ताओं के बनाये नियमों के जाल के कारण खेती को जंगली जानवरों से हो रहे नुकसान के कारण पहाड़ की खेती बंजर भूमि में बदलती जा रही है यह चिंता का विषय कभी नही बना न इसके लिए कभी आवाज़ उचित मंच से उठी आखिर क्यों।
इस सम्बंध में वार्ता करने वाले महिला मंगल दल अध्यक्ष श्रीमती उषा बिष्ट नव निर्वाचित प्रधान ग्राम जलई श्रीमती हीना भंडारी कीर्तन मंडली अध्यक्ष सरिता देवी बिष्ट और कोषाध्यक्ष श्रीमती पुष्पा रावत, श्रीमती विजयादेवी बिष्ट, कुसुम देवी बिष्ट, श्रीमती लीला देवी, श्रीमती गोदाम्वरी देवी, श्रीमती राजेश्वरी देवी, श्रीमती मुन्नी देवी श्रीमती मीना देवी श्रीमती जगदीश्वरी, श्रीमती पुष्पा कंडारी, श्रीमती उमा देवी, श्रीमती किरण देवी अन्य मातृशक्ति थी।