केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव में इस बार प्रत्याशियों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला

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 केदारनाथ उपचुनाव में किसकी होगी जीत।


केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव  में इस बार प्रत्याशियों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला।

केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव में राजनीति किन मुद्दों पर हावी होने लग गई है । स्थानीय मुद्दों की राजनीति अच्छी बात है और लोगों की समझ बदल चुकी है या बदल रही है यह नया राजनीति का दौर है या स्थानीय मतदाताओं के मुद्दों की अनदेखी करने से उठा सवाल जिसे कुरेद कर प्रत्याशी अपने लिए जन समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं।

मतदाताओ की समझ की बात करें तो पूर्व समय मे अमूमन यह देखने को मिलता था कि सब अपने बीच के हैं बांटकर वोट देंगे या हमारे पास जो आएगा उसे ही वोट मिलेगा। आज स्थिति बदल चुकी है सोशियल मीडिया से लगभग सभी जुड़े हैं ओर मनन चिंतन या निर्णय लेने की क्षमता में सोशियल मीडिया आने से एक क्रांति आई है।

इस बार केदारनाथ उप चुनाव में मुख्य मुद्दे केदारनाथ धाम की यात्रा प्रभावित होने का कारण, केदारनाथ धाम की यात्रा में यात्रियों को वेबजह रोकना, केदारनाथधाम की यात्रा को कुमाऊं की तरफ मोड़ना, हकहकूक धारियों के साथ आपदा के समय से भूमि और भवनों का आवंटन न होना। गावँ में सड़कों के बुरे हाल, स्वास्थ्य सुविधा का न होना, सबसे ज्यादा जल विद्युत परियोजनाओं का क्षेत्र होने के बाद भी महंगी बिजली के बिल, स्वरोजगार के नाम पर घोड़े खच्चर ही चलाने या कोई ढंग का काम भी शुरू होगा। कई क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ अभी तक सड़क मार्ग बहुत दयनीय है या है ही नही। कुछ प्रत्याशी आम जन से जुड़ाव न होने की बात हो रही यह बड़ी बात है कि प्रत्याशी का जुड़ाव आमजन से न होना ओर उस पार्टी के मुख्यमंत्री पद और दल के बड़े नेताओं की चुनाव के समय ही दिखने से कोई खास प्रभाव नही पड़ रहा है।

वही दूसरी तरफ भाजपा के कार्यकर्ताओं का मनोबल तो ऊंचा है पर कहीं न कहीं निर्दलीय उम्मीदवार के द्वारा खड़े किए गए सवाल जो आम जन के हैं से मतदाता भाजपा की तरफ से भी सरकने शुरू हो गए हैं। भाजपा का कैडर वोट इस उपचुनाव में पिछली बार की अपेक्षा घटेगा।

वही यूकेडी के द्वारा अच्छा प्रत्याशी इस बार मैदान में उतारा गया था पर यूकेडी के द्वारा पूर्व समय मे किये गए कार्यों और घटनाक्रमों से लोग आहत हैं जिसे बहुत समय लगेगा उबरने में। यूकेडी का नेतृत्व स्वयं के वजूद को बचाने में व्यस्त है आमजन तक सिर्फ मुद्दों को लेकर आंदोलन करने से पकड़ नही बनती आपको जन समर्थन जुटाने के लिए अपने संगठन को मजबूत करना होगा प्रत्येक व्यक्ति तक अपनी बात पहुंचाई जाय के लिए समय देना होगा।

निर्दलीय प्रत्याशी त्रिभुवन सिंह चौहान के द्वारा जन मुद्दों को उठाया जांना और आमजन को अपनेपन का अहसास ओर विपक्षियों को तीखे सवाल पूछने से मतदाताओं का रुझान अपनी तरफ मोड़ना है अब देखना यह है कि त्रिभुवन चौहान के प्रति मतदाताओं का झुकाव कितना है। अभी तो स्पष्ट रूप से भाजपा के अधिक ओर कांग्रेस के थोड़ा कम वोट बैंक को प्रभावित कर रहे हैं।

एक ओर प्रत्याशी डेमोक्रेटिक से पी के रुदीयाल हैं वह कांग्रेस के कोर वोट बैंक को प्रभावित कर रहे हैं अब देखना यह है कितना वोट बैंक प्रभावित होता है और प्रभावित वोट बैंक कहा शिफ्ट होता है।

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