उत्तराखंड सरकार उच्च न्यायालय की आड़़ लेकर देवभूमि के मूल निवासियों के जल, जमीन, जंगल को उजाड़ने की साजिश

अतिक्रमण हटाने को लेकर हंगामा,उच्च न्यायालय की आड़़ लेकर देवभूमि के मूल निवासियों के जल, जमीन, जंगल को उजाड़ने की साजिश,
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 रामरतन पवांर/गढ़वाल ब्यूरो

उत्तराखंड सरकार उच्च न्यायालय की आड़़ लेकर देवभूमि के मूल निवासियों के जल, जमीन, जंगल को उजाड़ने की साजिश - मनोज रावत पूर्व विधायक केदारनाथ।


एक तरफ इस बार बरसात सेे उत्तरखण्ड में हर हिस्से में त्राहिमाम-त्राहिमाम की स्थिति पैदा हो रखी है। दूसरी तरफ उत्तराखण्ड सरकार उच्च- न्यायालय की आड़ लेकर देवभूमि के  मूल निवासियों को उजाड़ने की हर साजिश कर रही है। यहां के मूल निवासियों के मतों से बनी सरकार इन दूरस्थ जिलों में बुग्यालों से लेकर गांवों- कस्बों तक में बसे हक- हकूक धारियों को अतिक्रमणकारी की संज्ञा देकर उजाड़ने का षड़यंत्र कर रही है। 

   राज्य के हर जिले में बचाव कार्य छोड़कर जिले के जिला अधिकारी, वन विभाग व पुलिस विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर उत्तराखण्ड के मूल निवासियों को अतिक्रमणकारी घोषित कर उन्हें,  उनकी जड़ों से उजाड़ने की रणनीति बना रहे हैं।

सरकार एक रणनीति के तहत दूरस्थ क्षेत्रों से रुद्रप्रयाग के केदारनाथ, चैमासी, फाटा, कालीशिला, गौण्डार (मद्महेश्वर घाटी), चोपता- तुंगनाथ और अन्य दूरस्थ स्थानों में बसे लोगों से लेकर चमोली के अनुसुया माता, डुमक- कलगोट, स्योंण-बेमरु, कल्पेश्वर, भ्यूंडार- घांघरिया- फूलों की घाटी, भविष्य बदरी से लेेेकर पिथौरागढ़ के मिलम- मुनस्यारी के मूल निवासियों को हर हाल में अतिक्रमणकारी सिद्ध करने पर तुली है।

       जबकि ये मूल निवासी अनादि काल से पंच बदरी- पंच केदार- पंच प्रयाग, कालीमठ- काली शिला, कार्तिक स्वामी,  अनुसुया माता, मद्महेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर, लक्ष्मण मंदिर, हेमकुण्ड साहिब और भविष्य बदरी के दुर्गम क्षेत्रों में निवास कर यहां की सनातन परम्परा- मानवता, संस्कृति और परंपराओं की रक्षा कर रहे हैं।

     इन मूल निवासियों ने अब एक होकर संघर्ष करने का निश्चय किया है। इस संघर्ष का नाम हमने ‘‘गौण्डार से भ्यूंडार संघर्ष’’ दिया है। ये क्षेत्र रुद्रप्रयाग वन प्रभाग रुद्रप्रयाग, केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग, गोपेश्वर और नन्दादेवी वायोस्पेयर रिजर्व वन प्रभाग जोशीमठ के अन्तर्गत पड़ते हैं। इन क्षेत्रों में दर्जनों तीर्थ स्थान हैं , सैकड़ो पुरातन मंदिर हैं, पर्यटक स्थल हैं और पीढ़ियों से जंगलों के बीच बसे सैकड़ो गांव हैं । 

    इनके पूर्वज इन गांवो से लगे जंगलों में ही पशुपालन करते थे और इनका जीवन ही इन जंगलों पर आधारित था। उत्तराखण्ड के इन क्षेत्रों का कोई निवासी ऐसा नहीं है जिसकी अपने नजदीकी जंगलों में गोठ, गौशाला और छानियां नहीं थी या नहीं हैं। 

   ‘‘गौण्डार से भ्यूंडार संघर्ष यात्रा’’ सरकार और अधिकारियों के इसी षड़यंत्र के विरोध में है। भविष्य मे हम इस संघर्ष से राज्य के सभी मूल निवासियों और जंगलों के नजदीक रहने वाल गांवो को भी जोड़ने का प्रयास करेंगे।

       हम सरकार से भीख नहीं मांग रहे हैं हम देश के प्रचलित कानून के अंतर्गत हक मांग रहे हैं। भारत की संसद में मनमोहन सिंह सरकार ने 2006 में जंगलों में या जंगलों के नजदीक बसे इन गांवों के निवासियों को और समुदायों को इनके अधिकार दिलाने के लिए शेड्यूल ट्राइब और अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट डेव्येलर (रिकॉग्निशन का फॉरेस्ट राइट ) एक्ट  या अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम- 2006 पास कराया और कानून बनाया। 

   इस कानून के द्वारा वनों (जिसमें रिजर्व वन और अभ्यारण्य क्षेत्र तक आते हैं) में बसे निवासियों को व्यक्तिगत भूमिधरी अधिकार और समुदायिक अधिकार भी दिलाने के स्पष्ट प्राविधान हैं।

    अफसोस की बात है कि, जिन दो जिलों रुद्रप्रयाग और चमोली की बात हम कर रहे हैं उनमें इस कानून के तहत एक भी मामले का निस्तारण नहीं हुआ है। इस कानून के तहत ग्राम, ब्लाक स्तरीय और जिला स्तरी समितियों का गठन होना था। इन दो जिलों में हमारी जानकारी के अनुसार 2006 में पास हुए कानून के अनुसार अभी तक ग्राम समितियों का गठन ही नहीं किया गया है वादों का निस्तारण कंहा से होता ?

      हमारा साफ मानना है कि, यदि यह कानून गलत था तो इसे रद्द करने के लिए सरकारें माननीय उच्चतम न्यायालय जाती । जब ये कानून देश के अन्य प्रदेशों और बहुत सूक्ष्म मात्रा में हमारे राज्य के कुछ जिलों में जंगलों पर आश्रित मूल निवासियों के व्यक्तिगत और सामूहिक दावों का निस्तारण कर सकता था तो रुद्रप्रयाग और चमोली जनपद में इस कानून को क्यों लागू नहीं किया गया ?  

     इन मूल निवासियों के हर गांव के हर व्यक्ति के मामले अलग हैं। कोई पीढ़ियों से वन पंचायत भूमि में निवास कर रहा है, कोई सिविल भूमि में, कोई सिविल फारेस्ट में , कोई रिजर्व वनों मे ंतो कोई अभ्यारण्यों में और अब कुछ हिस्सों को कथित रुप से राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित कर दिया गया है तो कुछ इस पर भी निवासित हैं। 

    इन सभी में एक समानता है कि ये पीढ़ियों से इन स्थानों में  किसी न किसी रुप में निवास कर रहे हैं। यही तो शेड्यूल ट्राइब और अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट डेव्येलर (रिकॉग्निशन का फॉरेस्ट राइट ) एक्ट या अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी(वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम- 2006  के तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार पाने की शर्त थी। 

    इस एक्ट के अनुसार दावे सही पाए जाने पर जिला अधिकारी को भूमिधरी तक देने तक के अधिकार थे। लेकिन अफसोस है कि रुद्रप्रयाग और चमोली जिले में एक भी ग्राम स्तरीय समिति नहीं बनी या सरकार ने फर्जी रुप सेे कागजों में बनायी हो तो यह कहा नहीं जा सकता। लेकिन मीडिया बंधुओं यदि आपकी नजर में कभी इस एक्ट के अन्र्तगत किसी स्तर की समिति का जिक्र आया हो तों आप हमें अवगत कराऐं।

     मामले बहुत है इसलिए आज हम गौण्डार (मद्महेश्वर घाटी), चोपता- तुंगनाथ और भ्यूंडार- घांघरिया- फूलों की घाटी के तीन माडलों की चर्चा आपके सामने कर रहे हैं।

   हमने निश्चय किया है कि ,  अब हम भीख नहीं मांगेगे हम देश के कानून के तहत अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं। 

   हम सरकार से मांग कर रहे है कि पहले शेड्यूल ट्राइब और अदर ट्रेडिशनल फॉरेस्ट डेव्येलर (रिकॉग्निशन का फॉरेस्ट राइट ) एक्ट  या अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम- 2006के अन्र्तगत हर गांव की समिति बनाऐ इन हक- हकूकधारी मूल निवासियों के दावों को ईमानदारी से सुने और जिला अधिकारी स्तर पर इनका निस्तारण करे। इस एक्ट के अन्र्तगत दावों के निस्तारण से पहले यहां के हक-हकूकधारी मूल निवासियों को अतिक्रमणकारी कहकर उजाड़ने की सजिश हम सफल नहीं होने देंगें और इसके विरुद्ध अंतिम क्षणों तक मिलकर संघर्ष करेंगें।











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