रामरतन पवांर/गढ़वाल ब्यूरो।
एशिया की सबसे ऊचाँई पर बनी लस्तर नहर को सालो से मरोम्मत की दरकार।
बेहतरीन इंजीनियरिंग का नमूना देखना है तो यह नहर अपने आप मे बेजोड़ इंजीनियरिंग का उदाहरण है।
तत्कालीन विधायक कामरेड विद्यसागर नौटियाल ने लस्तर नहर को स्वीकृति दिलाने मे निभाई थी अहम भूमिका।
यह नहर क्षेत्र के लिए वरदान साबित हो सकती थी पर प्रशासन के द्वारा अनदेखी करने से दुर्भाग्य का कारण बनी है।
विभाग द्वारा मात्र कपणिंया से आगे पटगाड गदेरे तक छोड़ा जाता हैं सिचांई के लिए पानी, उससे आगे वर्षो से खण्डर पड़ी है नहर, जबकि बजीरा तक जाना था लस्तर नहर का पानी।
जखोली- विकासखंड जखोली के अन्तर्गत लस्तर नहर का निर्माण वर्ष 1977-78 में हुआ था। तत्कालीन विधायक विद्यासागर नौटियाल ने जब देखा कि बांगर क्षेत्र में बहने वाली लस्तर नदी में खेतों की सिंचाई हेतू प्रर्याप्त पानी है तो विधायक ने लस्तर गाड़ पर सिंचाई नहर बनाने की स्वीकृति प्रदान करने मे अहम भूमिका निभायी थी। यह नहर किसानों को समृद्ध बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में कामयाब हो सकती है यह निर्णय बांगर, लस्या, सिलगढ़ तीन पट्टी के लगभग 1000 हेक्टेयर से अधिक भूमि को सिंचित बनाने के लिए लिया गया महत्वपूर्ण और भविष्य के लिए वरदान साबित करने वाला निर्णय था।
बताया जाता है कि लस्तर नहर के निर्माण मे लगभग एक करोड़ खर्च हुआ था जो कि पूर्व मे 29 किलोमीटर बांगर पट्टी के लस्तर गाड़ से और बमणगाँव तक बनायी गयी थी। बर्ष 2011-12 मे इस नहर का 1.8 किमी बजीरा गाँव तक विस्तारीकरण किया गया जिसकी लम्बाई वर्तमान समय मे 30.8 किमी है।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस नहर का कमाण्ड एरिया 1165 हेक्टेयर, सिंचन क्षमता 1040, हेक्टेयर है लेकिन अगर देखा जाय तो वर्तमान समय मे नहर की स्थिति कुछ समय से दयनीय बनी हुई है। रखरखाव के अभाव से आज यह एशिया की पहले नंबर की नहर दम तोड़ रही है। वही उतराखंड आन्दोलनकारी हयात सिह राणा ने कहा कि उतराखंड मे अविभाजित उतरप्रदेश के समय मे बनी इस नहर मे सिंचाई विभाग आज पूर्ण रुप से पानी चलाने को तैयार नही है।
क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता व वरिष्ठ उतराखंड आन्दोलनकारी हयात सिह राणा ने बताया कि खेतो की सिंचाई करने हेतू आखिर इस नहर का प्रयोजन क्या है ये बात आजतक जनता की समझ से परे है। राणा बताते है कि सिंचाई विभाग द्वारा बजीरा गांव तक विस्तारीकरण का मुख्य कारण ये भी था कि बजीरा के गैरगढ़ नामी तोक मे विभागीय अधिकारी के कहने के मुताबिक पन्नचक्की का निर्माण किया जाना था, लेकिन पन्नचक्की तो रही दूर बजीरा तक नहर विस्तारीकरण के 12 साल बीत जाने के बाद भी बजीरा मे लस्तर नहर का पानी नही पहुंचा, पानी केवल कपणिंया गांव तक ही सिंचाई विभाग द्वारा छोड़ा जाता है, जबकि कपणिंया से बजीरा गांव लगभग 03 किमी है ।
आज स्थिति ये है कि कपणिंया गांव से आगे सिंचाई विभाग की लापरवाही के चलते नहर खण्डर हो चुकी है, जबकि अधिकारियों के लिए सोने के अंडे देने वाली इस लस्तर नहर पर मरोम्मत के नाम पर लाखों रूपये खर्च किया जाता है। लेकिन नहर पर घटिया सामग्री का प्रयोग कर ठेकेदार कर्तव्य की इतिश्री कर लेते है। वही राणा का ये भी कहना है कि प्रदेश के पूर्व सिंचाई मंत्री मातबर सिह कंडारी के जाने के बाद आजतक नहर पर पानी नही चला। सिंचाई नहर को लेकर बार बार रखरखाव व मरोम्मत के बताया गया लेकिन जिला प्रशासन सहित विभागीय अधिकारी निष्क्रिय बैठे है।
आज इसे उतराखंड और खासकर रूद्रप्रयाग का सौभाग्य कहे दुर्भाग्य इस नहर की देखरेख करने वाला कोई नही है, करोड़ों रूपये की लागत से बनायी गयी इंजीनियरिंग के इस अदभुत, अनोखे प्रयोग को अगर जरूरत है तो महज इसके रखरखाव की, लेकिन रखरखाव के अभाव से आज यह लस्तर नहर दम तोड़ रही है।
वही दूसरी ओर इस नहर से सिचाई हेतु पानी छोड़ने के बाद भी लोग सिंचित खेतों में मंडुवा बुवाई को मजबूर हुए और अधिकतर लोगों ने मंडुवा बुवाई सिंचित खेतों में की इसका कारण यह है कि विभाग ने गदेरे पर बन्ध तो बना दिये पर नहर नही बना पाया जबकि विभागीय उच्चाधिकारी से अनुरोध किसानों द्वारा अनुरोध भी किया गया था जिसके लिए ठेकेदार ने गदेरे में दीवाल निर्माण कर दिया आगे पानी जाए न जाय इससे क्या फर्क पड़ता है।
एक तरफ पहाड़ से सुविधाओं के अभाव में पलायन होकर वीरान होते पहाड़ बचे खुचे लोगों को पलायन के लिए मजबूर कर रहे हैं दूसरी तरफ जंगली जानवरों का आतंक इस कदर हो गया कि जो लोग खेती करना चाहते हैं उन्हें जंगली जानवर खेती को नुकसान पहुंचाकर खेती से विमुख कर रहे हैं दूसरी तरफ जो हिम्मत दिखाकर नकद फसल उत्पादन करना चाहते हैं उन्हें सिंचाई की सुविधा नही मिल रही यह इस क्षेत्र के लिए दुर्भाग्य का विषय है जबकि लस्तर नदी से बजीरा गांव तक बनी नहर वरदान साबित होती अगर वर्ष भर इस नहर पर पानी छोड़ा जाता तो नकदी फसल उत्पादन में यह क्षेत्र अपने शिखर पर होता।
यदि सरकार चाहे तो यह नहर पर्यटकों के लिए ओर इंजीनियरिंग के बेजोड़ नमूने के चलते शोधार्थियों के लिए शोध का विषय बन सकती है जिससे पर्यटन बढ़ेगा और क्षेत्र की खुशहाली होगी।



