अतीक, अशरफ और संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की एक ही तरीके से मौत।
पुलिस देहदान करने के लिए नहीं बनी है। गोली, बम और तमंचे का खेल खेलने वालों को इन्ही माध्यमों से शरीर मुक्ति मिली है।
पुलिस को चाहिए जो भी अपराधी पुलिस पर हथियार उठाये उसे किसी पुलिस वाले की हत्या करने से पहले ही भून लिया जाए।
गैंगस्टर माफिया बाहुबली तमाम जैसी तमाम उपाधियों को अंगीकृत किये अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या की गुत्थी सुलझी भी नहीं थी कि गैंगस्टर संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की लखनऊ के कोर्ट में पेशी के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई। सवाल इस बात का नहीं है की इनमें कोई शरीफ इंसान रहा होगा जिससे समाज को इनके जाने बाद कोई क्षति हुई होगी इन दुर्दांतों के कारनामों से निकली कराहों को मरहम जरूर लगा है।
भारत के संविधान को इन हत्याओं से नुकसान हुआ है यह कहना राजनैतिक स्वार्थों के प्रति समर्पित स्व घोषित और आत्ममुग्ध नेताओं का है। आपको बताते चले कि अतीक अहमद की हत्या 15 अप्रैल 2023 को प्रयागराज मे अदालती फैसले के बाद जेल से अस्पताल पहुंचने पर मिडिया कर्मियों के भेष में आये हत्यारों के द्वारा की गयी थी जिसके बाद तमाम तरह की अटकलें लगाई गयी पर अतीक और अशरफ जिसे मिडिया ने सर आँखों पर टीआरपी चक्कर में बिठाये रखा उनकी हत्या उसी मिडिया सामने हो जाती है तो मामला आया हो गया।
अब मुख़्तार की आँख का तारा संजीव जीवा की हत्या 06 मई को कर दी जाती है दोनों समय हुई हत्या में फर्क इतना है कि अशरफ की हत्या अस्पताल के बाहर हुई थी और संजीव जीवा का मर्डर कोर्ट रूम के बाहर हुआ। अगर दोनों केस की बात करें तो दोनों ही शूटआउट केस में कई समानताएं देखने को मिल रही है। अतीक और अशरफ मर्डर केस में जांच जारी है और अब संजीव जीवा मर्डर केस में भी एसआईटी ने अपनी जांच शुरू कर दी है।
कुख्यात शूटर संजीव जीवा वही है जिसने उत्तरप्रदेश की राजनीति में बड़े नामो में दो की हत्या की थी। कृष्णानंद राय हत्याकांड में गवाहों का न पहुंचना साक्ष्यों का न मिलने से अपराधी दोष मुक्त हो गए थे लेकिन गाडी पर चढ़कर रायफल लहराकर जिस तरह से कृष्णानंद राय की हत्या की गयी थी इतना ही नहीं फरवरी 1997 बर्ह्मादत्त दुबे को उनके शहर फरुखाबाद में चौराहे पर मार दिया गया था तब भी जीवा ही था।
अतीक और अशरफ का शूटआउट जो प्रयागराज में अस्पताल के बाहर पुलिस अभिरक्षा में हुआ था और दोनों को मारने के लिए हत्यारें पत्रकार के भेष में आए थे। वहीं दूसरी तरफ संजीव जीवा का हत्यारा वकील बनकर कोर्ट में आया था। कोर्ट के बाहर उसने संजीव जीवा पर 6 राउंड फायरिंग की और जीवा का जीवन 6 राउंड नहीं झेल पाया जिसने न जाने कितने राउंड गोलियों से आतंक फैलाया होगा कल्पना से परे की बात है। दोनो समय माफियाओं की हत्या बड़ी नौटंकी के साथ की गयी। जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी और हत्यारे अपना काम कर गए।
आमतौर पर देखने से लगता है की दोनों समय हत्या करने वाले सामान्य परिवार से थे और जरायम दुनिया में इनका इतना बड़ा नाम रहा होगा यह इनको देखने से आमतौर पर लगता नहीं है। दोनों ही हत्याकांड में वारदात को अंजाम देने के लिए विदेशी पिस्टल का इस्तेमाल हुआ था। अब सवाल उठ रहा है कि दोनों ही शूटआउट केस में हत्यारों के पास इतने महंगे हथियार आए कहां से आये। क्या अपराध की दुनिया में ऐसे मोहरों को खड़ा करके ऐसे कार्य करवाए जा रहे हैं यह समाज के चिंतक वर्ग के लिए चिंता का विषय है।
- दोनों ही केस में हत्यारे साधारण परिवार से थे और उनका कोई बड़ा आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और सबसे अहम बात यह कि शूटर्स को विदेशी पिस्टल और उसकी ट्रेनिंग भी दी गयी अब सवाल ये उठ रहा है कि आखिर यूपी में भी क्या कोई गैंगवॉर चल रही है, क्योंकि यह कोई इत्तेफाक नहीं हो सकता। अब तो ऐसा लग रहा है कि दोनों ही मामलों में पकड़े गए सभी शूटर्स मोहरे की तरह काम कर रहे हैं, जिनके निशाने पर यूपी के टॉप मोस्ट माफिया हैं। हालांकि इनके पीछे कौन सा गैंग काम कर रहा है और किसके इशारों पर काम हो रहा है दोनों ही केस में मामले की जांच चल रही है।
पाठकों को स्मरण होगा की उत्तरप्रदेश में हाई लेबल की मीटिंग में 61 नामों पर मुहर लगी थी जो दुर्दांत माफिया, गैंगस्टर बवाली टाइप के अपराधी थे और अब इनकी संख्या 54 रह गयी है कारण अतीक अशरफ जीवा की तरह सब दुनिया से उठ गए।
यहां पर सबसे बड़ा सवाल उठता है की नेताओं की सुरक्षा के लिए जेड प्लस हो वाई श्रेणी की सुरक्षा होती है परिंदा भी पर नहीं मार सके ऐसी सुरक्षा है तो गिने चुने 61 अपराधियों को जिन्हे सिर्फ जेल से अदालत और अदालत से जेल है उनकी सुरक्षा में सिर्फ गिने चुने सुरक्षाकर्मी क्यों।


