जोशीमठ की पीड़ित संघर्षशील जनता को राहत देने के बजाय भाजपा नेता द्वारा आन्दोलन को माओवादियों का आन्दोलन कहना अनुचित एवं गैर जिम्मेदाराना

जोशीमठ की पीड़ित संघर्षशील जनता को राहत देने के बजाय भाजपा नेता द्वारा आन्दोलन को माओवादियों का आन्दोलन कहना अनुचित एवं गैर जिम्मेदाराना।उत्तराखंड की
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रामरतन पवांर/गढ़वाल ब्यूरो

जोशीमठ की पीड़ित  संघर्षशील जनता को राहत देने के बजाय भाजपा नेता द्वारा आन्दोलन को माओवादियों का आन्दोलन कहना  अनुचित एवं गैर जिम्मेदाराना।

उत्तराखंड की जनता को चहिए सुनियोजित विकास- अनन्त आकाश।

 वैसे भी चमोली जिले से  कम्युनिस्ट पार्टी का आन्दोलनों से रहा पुराना नाता।

अब फिर से धीरे धीरे भाजपाइयों का चेहरा जनता के बीच बेनकाब हो रहा है ।जोशीमठ की संघर्शशील जनता की समस्याओं का समाधान निकालने के बजाय उनको माओवादी कहना गैरजिम्मेदाराना बयान है, ये पहली बार नहीं ,जेएनयू ,जामिया के छात्र आन्दोलन,  किसान आन्दोलन से लेकर नागरिक संशोधन कानून के खिलाफ ऊपजे जन आन्दोलन को बदनाम  करने की साजिश कर  चुके हैं।

    कोविड काल में जमातियों के खिलाफ इनकी साजिश का चिठ्ठा दुनियाभर के सामने है । अडाणी के मित्र आज अडाणी की करतूतों पर चुप्पी साधे हैं ।

नीति पास में  पहली बार नहीं बल्कि कई दशकों से कम्युनिस्ट जनता के हकहकूकों की लड़ाई लड़ते आये हैं ,और आगे भी लड़ते रहेंगे। भाजपा के अध्यक्ष जो कि प्रभावित क्षेत्र से विधायक भी रहे हैं,आज राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर आन्दोलनकारियों के बारे में अनर्गल बयान दे रहे है ? जो कि उनकी हताशा को ही दिखाता है । अब समय आ गया है कि इस साजिश के खिलाफ राज्य की जनता को एकजुट किया जाऐ ।

  भाजपा नेताओं द्वारा इस प्रकार गैरजिम्मेदाराना कार्य पहली बार नहीं किया जा रहा है ,अपितु अनेकों आन्दोलनों पर वे पहले भी छीटाकशी एवं कानून का दुरप्रयोग आन्दोलकारियों के खिलाफ कर चुके हैं । इसका मुख्य मकसद जनता का ध्यान मुख्य मुद्दों से भटकाना एवं अपनी विफलताओं को छुपाना है  ।

    जहाँ तक कम्युनिस्ट एवं माओवादी विचार का सवाल है ? उनका विचार शोषण से मुक्त समाज की स्थापना का है। फिलहाल जोशीमठ के आन्दोलकारियों को किसी विचार से जोड़ना ठीक नहीं है, जोशीमठ की संघर्शशील जनता अपने जीवन की रक्षा के लिए लड़ रही है, और कम्युनिस्ट उनके संघर्ष में कन्धे से कन्धा मिलाकर चल रहे हैं । यही बात समझने की आवश्यकता है ।

        आज देश के शासकों खासकर वर्तमान हुकमरानों को पूर्ण विनाश से पहले यह समझ में नहीं आऐगा कि पर्यावरणीय या सामाजिक मुद्दों को सम्बोधित किये बिना अधांधुंध विकास सेदेश की प्रगति नहीं हो सकती। जोशीमठ पवित्र बद्रीनाथ मन्दिर का द्वार होने के कारण खुद ही धार्मिक महत्व का शहर माना जाता है जो आज सदी की भंयकर त्रासदी से गुजर रहा है।

     उत्तराखण्ड में त्रासदी की लम्बी श्रृंखला है, जो नाजुक पहाड़ियों में बेरोकटोक निर्माण  बुनियादी ढा़चागत निर्माण बढ़ते शहरीकरण के कारण आया है । इन क्षेत्रों में आ रही आपदाओं के पीछे जलवायु परिवर्तन भी प्रमुख कारकों में से एक है ।

   यह कहना उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री धामी का उचित नहीं है कि जोशीमठ की यह आपदा केवल प्राकृतिक है। जबकि एनटीपीसी   की तपोवन बिष्णु गाढ़ परियोजना, नदी प्रवाह आधारित परियोजना जिसका कारण भी जोशीमठ के धसाव के लिए जिम्मेदार है।

    विगत दिनों भी  सत्तापक्ष भाजपा अपनी विफलताओं को छुपाने के लिए राष्ट्रीय डिजास्टर मैनेजमेंट के  दिशा निर्देशों को कवच के रूप में इस्तेमाल कर चुकी  है। इसके प्रदेश अध्यक्ष जो कि 2019 में ओली में आयोजित गुप्ता बन्धुओं शादी समारोह के कर्ताधर्ता बने थे ,एक अनुमान के अनुसार इस समारोह में लगभग 200 करोड़ खर्च हुऐ । इस समारोह ने क्षेत्र के पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाने का कार्य किया तथा एक साफ सुथरे स्थान को कूड़ाघर में तब्दील कर दिया था ।

      कम्युनिस्टों का इस नीति घाटी में सतत संघर्षों का इतिहास रहा है, 1974 में बद्रीनाथ मन्दिर की मरम्मत के नाम पर किये जा रहे परिवर्तन पर रोक हो तथा हकहकूकों की रक्षा के लिए चाहे रैणी गांव से शुरू चिपको आन्दोलन हो या फिर चांई गांव को बचाने की लड़ाई हो या फिर भीमकाय परियोजनाओं का विरोध हो  2021 की आपदा के समय जनता के दुखदर्दों में हिरावल भूमिका भी कम्युनिस्टों ने निभाई है।

    आज जहाँ भी जनपक्षीय संघर्ष है, वहाँ कम्युनिस्ट ही बडे़ ही सिद्दत के साथ लड़ रहे हैं। बावजूद इसके आज उत्तराखण्ड बेहद अनियोजित तथा अनियंत्रित विकास के कारण भारी क्षति के कगार पर खड़ा है । आज जोशीमठ की त्रासदी एवं बद्रीनाथ मास्टर प्लान, केदारनाथ मेंं चल रहे भारी भरकम निर्माण चर्चाओं के केन्द्र में है ।

      बद्रीनाथ के मास्टर प्लान को ही धाम की मौलिकता के साथ नैसर्गिकता के खिलाफ माना जा रहा है ,यहाँ हर तीसरे चौथे साल एक एवरलान्च आते रहते हैं। 1978 में आये लान्च ने बद्रीनाथ का पुराना बाजार ही तबाह कर दिया था।

    नीति पास में जन्मे चिपको आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य ही क्षेत्र में  जल, जगंल, जमीन की रक्षा का संदेश था जो रैणीगांव की महिलाओं ने गौरादेवी के नेतृत्व में  दशकों पहले कर दिखाया था। उस जमाने में  वाईस आफअमेरिका, बीबीसी तथा रेडियो बीजिंग से चिपको आन्दोलन की काफी चर्चा रही ।

       1962 में भारत चीन युद्ध के बाद भारत सरकार तेजी से इस क्षेत्र में सामरिक जरूरतों को देखते हुऐ जमीनों का अधिग्रहण कर रही थी तथा परिणामस्वरूप अनियोजित योजनाओं के खिलाफ चिपको आन्दोलन की भूमिका की शुरूआत हुई । इसी दौरान नीतिपास के गांव तपोवन, गोबिन्द घाट तथा फूलों की घाटी में आने वाले गांवों जो कि नन्दादेवी के रास्ते पर पड़ते थे, जिनमें रैणीगांव, पोलना, म्यूंदार आदि जनजागृति अभियान चलाया जाता रहा  है। जिसकी अगवाई कामरेड गोबिंद सिंह रावत  किया करते थे। जो बाद को जोशीमठ के ब्लाक प्रमुख रहे तदोपरांत कामरेड बचनसिंह रावत  उनके पद पर चुने गये।

कामरेड गोबिंद सरकारी सेवा छोड़कर समाज के लिए समर्पित हुऐ राजस्व विभाग में पटवारी होने के कारण उन्हें क्षेत्र का काफी कुछ ज्ञान था। वे चिपको आन्दोलन के बारे में पहले से ही जानते थे, क्योंकि इससे पहले राजस्थान यह आन्दोलन हो देख चुका था। गौरादेवी जो कि मूलरूप से रैणीगांव की थी, जिनके गांव  देवदार के घने बृक्षों से आच्छादित था।

   जंगली जड़ी, बुटियों  को बचाने के लिए जब वन विभाग व ठेकेदार पेड़ों का कटान करने आया तब पेड़ों से चिपटकर पेड़ों की रक्षा की तथा चिपको आन्दोलन का सन्देश दुनिया को पहुंचाया । यदि हमारे व्यवस्था के लोग इस आन्दोलन से सबक लेते तो निश्चित तौर पर हम बार बार आ रही आपदाओं के रूबरू  हो रहे हैं ।

     प्रकृति से छेड़छाड़ का यह पहला वाक्या नहीं है ,फरवरी 2021 में जोशीमठ के पास ही धौलीगंगा -ऋषिगंगा में बन रहे  बिजली प्रोजक्टों को बाढ़ ने  हटाकर  सन्देश दिया था कि संवेदशनशील हिमालयी क्षेत्र में प्रकृति  के ज्यादती करोगे तो हाल ही होगा । इस हादसे में 200 से भी अधिक लोग जिन्दा दफन हो गये थे ।

2013 में केदारनाथ में अकल्पनीय बाढ़़ आयी ।

825 किलोमीटर आलवेदर रोड़ 40 हजार से भी पेड़ कटान तथा पहाड़ों को काट-काट कर पुराने भूस्खलनों  को जगा दिया है।2013 के बाद 395 गांव खतरे में हैं, तथा 73 अत्यधिक संवेदनशील हैं ।

 उत्तराखण्ड में जनसरोकारों से जुड़े अनेक लोगों का मानना है कि जोशीमठ ही नहीं बल्कि पूरे  हिमालयी राज्यों पर इस जनविरोधी  विकास का दुष्प्रभाव पड़ रहा है , इसके विरूद्ध बड़ा जन आन्दोलन बनाने की आवश्यकता है, उनका मानना है कि। "उत्तराखण्ड सहित सभी हिमालयी राज्यों के अनुभवी लोगों ,देश के बिशेषज्ञ वैज्ञानिकों को आमन्त्रित कर जनपक्षीय विकास  की दिशा तय की जाऐ "

विशेषज्ञों का मानना है कि जोशीमठ में ढ़लान के साथ अब ज्यादा छेड़छाड़ न की जाऐ ,पानी निकासी एवं सीविरेज की समुचित व्यवस्था की जाने की आवश्यकता है ।

"बात सत्य साबित हुई है कि अंग्रेजों ने बसाया है ,और हमने उजाड़ा है ,भूस्खलनों को रोकने के लिऐ अंग्रेजों ने खास किस्म की घास रोपी तथा चाय बागान लगाये और हम इन चाय बगानों की भी रक्षा नहीं कर पाये। इन तमाम अनदेखियों ने हमें बेघरबार कर दिया। सरकार एवं भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को अपनी गलतियों पर लीपापोती करने एवं अनरगल बयानबाजी के जोशीमठ की मौजूदा तबाही से निपटने के लिए समुचित कदम उठाने चाहिए । 

     आज बेहद नाजुक पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में बुनियादी ढांचे  और दूसरी निर्माण गतिविधियों की एक सर्वसमावेशी समीक्षा आवश्यक है, जरूरत इस बात की है कि  संवेदनशील विकास की दिशा में बेहद सोचा समझा रास्ता  अख्तियार किया जाऐ,जो स्थानीय वाशिंंदों तथा वहाँ  जाने वालों के लिए कम से कम नुकसानदेह हो ।

आज फिर से जनपक्षधरता वाले लोगों को आगे आकर अपनी निर्णायक भूमिका निभानी की आवश्यकता जिसमें निम्मानुसार ध्यान देने की आवश्यकता है :-

     जोशीमठ के लोगों का व्यवसाय और आर्थिकी तीर्थाटन पर निर्भर है इसलिए जोशीमठ के निवासियों का इसी के अनुरूप तत्काल सुरक्षित स्थान पर बिस्थापन कर उनकी नष्ट हुई चल अचल संपत्ति का आंकलन कर उचित  समुचित मुआवजा सरकार दे ।

    उच्च हिमालयी क्षेत्रों में चल रही जल विधुत परियोजनाओं ,सड़क चौड़ीकरण आदि परियोजनाओं को तत्काल प्रभाव से रोका जाये ।

उत्तराखण्ड राज्य का निर्माण पहाडी राज्य की प्रकृति के अनुरूप विकास की नीतियों को बनाने स्थानीय निवासियों की भागेदारी सुनिश्चित हो, अति केन्द्रीयता के चलते तथाकथित विकास योजनाओं को थोपने प्रक्रिया पर रोक लगे । यहाँ हरेक निर्माण पहाड़ की क्षमता के अनुरूप हो जिसके लिए सत्ता का विक्रेद्रीकरण जरूरी है।

आल वेदर रोड़ के निर्माण के लिए पहाडों का कटाव,मलवे का निस्तारण, रेल परियोजनाओं के लिऐ सुंरगों का निर्माण और विस्फोट हिमालय की पारिस्थितिकी के विपरीत है ।इसे से होने वाले प्रभाव का वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन किया जाना चाहिए ।

    तीर्थाटन पर आने वाले यात्रियों को यहाँ की वहनीय क्षमता के अनुरूप नियन्त्रित करने के साथ ही धार्मिक पयर्टन के लिए नीजि वाहनों का आवागमन सीमित कर सार्वजनिक यातायात की व्यवस्था हो ।हैली सेवाओं से पड़ने पर्यावरणीय प्रभाव का आंकलन हो ।

    उत्तराखण्ड के विकास की जनपक्षीय नीति निर्धारण के लिए भूवैज्ञानिकों , पर्यावरणीय विशेषज्ञ, जनप्रतिनिधियों को शामिल करते हुऐ हाईपावर कमेटी का गठन किया जाऐ ।

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