श्री कृष्ण जन्म व भगवान की बाल लीलाओं की कथा जीवन जीने की कला का माध्यम हैं- आचार्य बिपिन कृष्ण काण्डपाल।
सनातन संस्कृति में धर्म और कर्म को प्रधान माना गया है। धर्म क्या है निरपेक्ष ओर निष्काम प्रवृति के साथ जीवन यापन के लिए कर्म करना ही धर्म है।
विकासखण्ड जखोली के ग्राम डाँगी भरदार में श्रीमद्भागवत कथाज्ञान का आयोजन श्रीमति प्रेमा देवी के द्वारा अपने पति स्व0 श्री पुरुषोत्तम दत्त जी की स्मृति में आयोजित किया जा रहा है।
श्रीमद्भागवत कथा सभी धर्म ग्रन्थों का सार है जिसमें मानव को दैहिक दैविक ओर भौतिक तापों से बचने के लिए धर्म के आधार पर सत्कर्म करने की शिक्षा के साथ साथ शिक्षा के व्यापक असर तथा समय चक्र का प्रभाव किस प्रकार से होता है यह विस्तृत रूप से बताया गया है।
आज कथा के पांचवें दिन व्यासपीठ पर विराजमान आचार्य श्री बिपिनकृष्ण कांडपाल जी द्वारा श्री कृष्ण जी के जन्म लीला, श्री कृष्ण के द्वारा बचपन में की गयी लीलाओं का वर्णन किया गया और गोपीयों का निष्काम प्रेम आदि कथाओं को उपस्थित धर्म प्रेमियों को सुनाकर उनसे अपेक्षा की गई की श्रीकृष्ण की लीलाओं पर मनन करके अपने जीवन में अवश्य उतारें।
श्रीकृष्ण भगवान की बाल्य काल की लीलाएं जिनमें माखन चोर ओर चित्त चोर कहा गया। इसका कारण था भगवान के प्रति भक्त का समर्पण भाव जो कि जीवन का धेय होना आवश्यक है कि हम अभीष्ट तभी प्राप्त कर सकतें हैं जब हमारे मन अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण का भाव हो।


