टिकट बटँवारे से नाराज़ नेता को टिकट न मिलने से आखिर पार्टी से नाता तोड़कर क्यों बनाते है थर्ड फ्रंट

टिकट बटँवारे से नाराज़ नेता को टिकट न मिलने से आखिर पार्टी से नाता तोड़कर क्यों बनाते है थर्ड फ्रंट, rudraprayag vidhansabha chunav 2022,
खबर शेयर करें:

 रामरतन सिह पवांर/गढ़वाल 


टिकट बटँवारे  से नाराज़ नेता को टिकट न मिलने से आखिर पार्टी से नाता तोड़कर क्यों बनाते है थर्ड फ्रंट।



अक्सर हमेशा चुनाव के दौरान तीसरा मोर्चा ही बनता है एक दसरे के लिए गले की हड्डी।


उत्तराखण्ड के सामान्य विधानसभा चुनाव 2022 के लिए   चुनावी समर में उतरे प्रत्याशियों की परीक्षा उनके द्वारा किये गए कार्यों ओर उनके भविष्य की रणनीति क्या है इसका जबाब  मतदाता विचार करके  14 फरवरी 2022 को होने वाले मतदान के माध्यम से  देंगे।

 यही लोकतंत्र की जीत होगी की आमजन के द्वारा चुन कर अपने प्रतिनिधि सदन में भेजे जाएंगे जो कि जनहित के मुद्दे पर कार्य करके आम जनजीवन को सुलभ ओर सफल जीवन जीने के लिए प्रयासरत रहकर लक्ष्यों को हासिल करेंगे और करना भी चाहिए।

अब बात आती है कि इस बार देखा जा रहा है कि रुद्रप्रयाग विधानसभा में टिकट दावेदारों में असंतोष होने से तीसरे मोर्चे के रूप में अपना निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी मैदान में थर्ड फ्रंट के द्वारा उतारा गया है। तीसरे मोर्चे के बनने का मुख्य कारण यह था कि काग्रेंस हाईकमान मे जिन उम्मीदवारों ने अपनी दावेदारी पेश की थी उनको टिकट न दिये जाने से उन्होंने पार्टी से नाराज होकर तीसरा मोर्चा बना लिया।

और निर्दलीय चुनाव लड़ने मे अपनी अग्रणी भूमिका निभा रहे है, और पूरे दम खम के साथ चुनाव रण मे डटे हुए है।  यही तीसरा मोर्चा आज दोनो राष्ट्रीय पार्टियों के बीच का सन्तुलन खोने मे कामयाब होता हुआ प्रतीत होता दिखाई दे रहा।

अब जनता के मन मे सवाल है कुछ जिनका जबाब राजनीति की जलेबी की तरह घूम फिर के फिर वही पर आना हो रहा ऐसे सवाल जो मतदाता अभी तक नही समझ पा रहें है ऐसी परिस्थिति क्यों बनी ओर कारण क्या थे जो थर्ड फ्रंट के द्वारा प्रत्याशी उतारने का निर्णय लिया गया।
 उत्तराखंड में प्रत्येक विधानसभा में देखें तो पार्टी से टिकट दावेदारों की संख्या  लगभग 10 से 11 की थी। अब यह बात सबको पता है कि टिकट एक ही उम्मीदवार को मिलेगा। टिकट बंटवारे से पहले सभी उम्मीदवार सक्रिय होकर अपने पक्ष में मतदाताओं का रुझान बनाने में जी जान से जुट गए जो कि अच्छी बात भी है कि जनता से जुड़ाव सभी का हो और मतदाता भी अपने सामने चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों के चयन में अपनी राय को सोच समझकर  निर्णय लेने मे आसानी हो सके।
अब सवाल है-

1- जब तक सभी दावेदार पार्टी में थे तो पार्टी के प्रति अपनी समर्पण की भावना दिखा रहे थे टिकट आवंटन के बाद पार्टी के विरुद्ध क्यो खड़े हुए।

2-  क्या थर्ड फ्रंट का नैतिक कर्तव्य नही था कि अपने प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारने से पूर्व सामूहिक रूप से अपने पदों ओर पार्टी में अपनी प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे देते।

3- जब आप ही संगठन की बातें नही मान रहे हैं जिस संगठन ने आपको पद प्रतिष्ठा दी तो आप मतदाताओं की अपेक्षा पर खरा उतरेंगे यह कैसे सुनिश्चित होगा।

4- अवसरवादिता की राजनीति सिर्फ क्या पद ओर अपनी प्रतिष्ठा के लिए ही सीमित है।

5- संगठन के नियमों और संगठन की बात न मानकर और संगठन के निर्णय को धत्ता बताकर आप कल जनता की भावनाओं और अपेक्षाओं को भी धत्ता न बताएं इसकी गारण्टी क्या होगी।

6- राजनीति में विरोध और अवरोध चिरन्तर प्रक्रिया है यह मतदाता ओर दावेदार सबको पता है पर अपने लिए पद ओर प्रतिष्ठा की चाह रखना कितना सही है कितना गलत।

7- संगठन से जुड़े व्यक्ति यदि अपने संगठन के विरुद्ध अपना फ्रंट तैयार करते हैं और अपने संगठन को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से अपने उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारते हैं तो मतदाता के मन मे संशय पैदा हो  जाता है और मतदाता कृतव्यविमूढ़ होकर अपने लक्षित उम्मीदवार या पार्टी की विचारधारा से विमुख होता हो जाता है।

8- झंडा डंडा उठाकर चलने वाले जमीनी कार्यकर्ताओं में भी असंतोष की भावना होने का कारण व अपने संगठन के प्रति निष्क्रियता की भावना होती है।

9- क्या समाज सेवा चुनाव के लिए प्रत्याशी घोषित न होने पर नही की जा सकती है।

10- क्या समाज सेवा चुनाव के लिए प्रत्याशी घोषित  होने पर ही की जा सकती है।

जो समाज के पथ प्रदर्शक हैं यदि वह समाज के लिए जो नजीर हैं उन लोगों के लिए जो उनके लिए पलक पावड़े बिछा के रखते हैं कि भावनाओं से जो भावना उन्हें किसी भी दल के लिए होती है का निरादर करने का चलन यदि चलता रहेगा तो हमारे समाज का हित किस तरह से प्रभावित होगा यह विचारणीय प्रश्न है।

अब सवाल होगा कि सारे सवाल हम पर ही क्यो उठाये जा रहें हैं क्या हम चुनाव नही लड़ सकते हैं इसका जबाब है कि आप यदि किसी भी पार्टी से नही जुड़े होते तो आपकी विचारधारा और आपकी भविष्य की रणनीति क्या है पर विचार करके आपका स्वागत किया जाता।
आप जब तक किसी दल के लिए उम्मीदवारी कर रहे थे तब वह दल सबसे अच्छा था, टिकट कटने के बाद राजनीति  मे दल बदल ओर दल बदल न हुआ तो निर्दलीय बनकर चुनाव लड़ना है यह परंपरा मतदाताओं को उलझाने वाली है और मतदाता आप पर क्यो विश्वास करे यह बताना जरूरी है।

खबर पर प्रतिक्रिया दें 👇
खबर शेयर करें:

हमारे व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़ें-

WhatsApp पर हमें खबरें भेजने व हमारी सभी खबरों को पढ़ने के लिए यहां लिंक पर क्लिक करें -

यहां क्लिक करें----->