जखोली में मनरेगा भ्रष्टाचार का खेल

विकासखण्ड जखोली में मनरेगा ओर वित्त में धांधली,
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 आंगनवाड़ी केंद्र: कागजों में 'संपूर्ण', जमीन पर 'अधूरा' - मनरेगा में भ्रष्टाचार का खेल।

 हवामहल" (आंगनवाड़ी केंद्र) केवल छत पड़ जाने से कार्यपूर्ण नहीं माना जा सकता है। देखना यह है कि वसूली होकर कार्य पूर्ण किया जाता या कोई नया बजट इस कार्य को पूर्ण करने के लिए दिया जाएगा।

यह पूरा प्रकरण मनरेगा के कार्यान्वयन, सोशल ऑडिट की खानापूर्ति, और सरकारी धन के सदुपयोग पर गंभीर सवाल खड़े करता है, जिसकी उच्च-स्तरीय और निष्पक्ष जांच अत्यंत आवश्यक है।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के ग्राम कोठियाड़ा में केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) में व्याप्त गंभीर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का एक ज्वलंत उदाहरण सामने आया है। यहां, एक आंगनवाड़ी केंद्र का निर्माण कार्य लगभग चार साल पहले, यानी 2021-22 में ही, मनरेगा के आधिकारिक MIS (प्रबंधन सूचना प्रणाली) और अन्य सरकारी कागजातों में 'कार्यपूर्ण' घोषित कर दिया गया है, जबकि जमीन पर हकीकत इसके ठीक विपरीत है। यह भवन आज भी अधूरा है और बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है।

 वित्तीय अनियमितता और मनरेगा की हकीकत

कोठियाड़ा में बना यह "हवामहल" (आंगनवाड़ी केंद्र) केवल छत पड़ जाने से कार्यपूर्ण नहीं माना जा सकता। नियमानुसार, एक पूर्ण भवन में दरवाजे, खिड़कियां, फर्श, टॉयलेट, बिजली और पानी की व्यवस्था, साथ ही रंग-रोगन भी होना अनिवार्य है। लेकिन मनरेगा के "महारथी" अधिकारियों ने इन सभी मानकों को दरकिनार करते हुए, अधूरे कार्य को ही पूर्ण दिखा दिया। यह स्पष्ट रूप से जनता के धन का दुरुपयोग और वित्तीय भ्रष्टाचार का प्रमाण है।

मनरेगा योजना जिसे ग्रामीण गरीबों को आसानी से रोजगार प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, वह यहां भ्रष्टाचार का एक साधन बन गई है। कार्य पूर्ण दिखाए जाने का मतलब है कि उस पर पूरा भुगतान किया जा चुका होगा। सवाल यह है कि जब निर्माण कार्य अधूरा है, तो शेष राशि का क्या हुआ? यह दर्शाता है कि भुगतान की प्रक्रिया में बड़ा झोल है, जहां धन की हेराफेरी करके कार्य को जल्दबाजी में कागजों में निपटा दिया गया।

 जांच और जवाबदेही पर सवाल

यह मामला केवल कोठियाड़ा का नहीं हो सकता; ऐसी आशंका है कि देशभर में ऐसे अनेक कार्य होंगे जिन्हें कागजों में पूर्ण दिखाया गया होगा, जबकि वे जमीन पर अधूरे पड़े होंगे।

  • जनता दरबार में मुद्दा: यह अनियमितता जिला प्रशासन रुद्रप्रयाग द्वारा आयोजित जनता दरबार में भी क्षेत्र पंचायत सदस्य शम्भू प्रसाद कोठारी द्वारा उठाई गई थी। अधिकारियों ने निरीक्षण भी किया, लेकिन तीन माह बाद भी कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई, जिससे प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े होते हैं।

  • सोशल ऑडिट पर प्रश्न: मनरेगा में सोशल ऑडिट (सामाजिक अंकेक्षण) का प्रावधान पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए है। यदि ऑडिट हुआ था, तो अधूरे भवन को 'पूर्ण' कैसे घोषित किया गया? यदि सोशल ऑडिटर ने जानबूझकर गलत रिपोर्ट दी है, तो उसे भी इस भ्रष्टाचार में भागीदार मानते हुए जांच के दायरे में लाना आवश्यक है।

  • मीडिया में प्रकाशन: यह खबर 07 जुलाई 2025 के अमर उजाला अंक में "निर्माण पूरा नही हुआ कागजों में दिखा दिया" शीर्षक से प्रकाशित भी हुई, लेकिन इसके बावजूद भी कोई कार्यवाही न होना यह सिद्ध करता है कि भ्रष्ट अधिकारियों को किसी का डर नहीं है।

यह पूरा प्रकरण मनरेगा के कार्यान्वयन, सोशल ऑडिट की खानापूर्ति, और सरकारी धन के सदुपयोग पर गंभीर सवाल खड़े करता है, जिसकी उच्च-स्तरीय और निष्पक्ष जांच अत्यंत आवश्यक है।


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